ओबीसी में 81 जातियां, नौकरियां हासिल करने में पांच सबसे आगे

जयपुर। राजस्थान में ओबीसी कैटेगरी में यूं तो 81 जातियां है लेकिन आरक्षण का सर्वाधिक फायदा सिर्फ पांच ही उठा रही हैं। राज्य पिछड़ा आयोग की रिपोर्ट से यह खुलासा हुआ है। रिपोर्ट के अनुसार 2001 से 2012 के बीच यानी 12 सालों में ओबीसी के लिए आरक्षित 70 से 75 फीसदी सरकारी नौकरियों में इन्हीं पांच जातियों का वर्चस्व रहा है। बाकी 76 जातियों को सिर्फ 20 से 25 फीसदी नौकरियां ही मिली हैं।

ओबीसी में शामिल आठ जातियों को तो इन 12 साल में एक भी सरकारी नौकरी नहीं मिली। 17 जातियां नौकरियां पाने के मामले में दहाई का आंकड़ा भी नहीं पार कर सकी। ओबीसी श्रेणी में नौकरियां पाने में जाट समाज सबसे आगे रहा। इस समाज ने 29.74 फीसदी नौकरियां हासिल की। दूसरा नंबर माली (सैनी), तीसरे पर कुमावत (कुम्हार), चौथे पर यादव (अहीर) व पांचवें स्थान पर गुर्जर रहे।

सामान्य की 22% सीटों पर भी ओबीसी का कब्जा
अगर मेरिट के आधार पर देखें तो जनवरी 2001 से 30 सितंबर 2012 के बीच सामान्य की 22 फीसदी सीटें भी ओबीसी के खाते में चली गईं। इस 22 फीसदी में भी इन्हीं पांच जातियों (जाट, माली, कुमावत, यादव और गुर्जर) का वर्चस्व रहा। इन्हीं समाजों के 85 फीसदी अभ्यर्थियों ने ये नौकरियां पाईं।

इन अाठ जातियों को एक भी सरकारी नौकरी नहीं
ओबीसी में सपेरा, हेला, खेरवा, कुंजड़ा, राइन, कोतवाल या कोटवाल, मुल्तानीज, मोग्या या मोगिया जाति भी हैं। पिछले 12 साल में इस समाज को एक भी सरकारी नौकरी नहीं मिली।
ये 17 जातियां दहाई के पार भी नहीं पहुंची
ओबीसी में शामिल चोबदार 2, मोची (गैर हिंदू जाति) 3, गाडीत नागौरी 6, खेलदार 2, चूनगर 3, नट 3, सोंधिया 2, गद्दी 5, फारुकी भटियारा 2, न्यारिया या न्यारगर 3, पटवा (फदाल) 3, सिकलीगर 6, जागरी 2, बागरिया 7, भड़भूंजा 4, सतिया सिंधी 8, दांगी समाज को 9 नौकरियां मिलीं।

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