ऐसे में जैम के तीन घटक यानी जन-धन, आधार और मोबाइल बदलाव लाने के लिहाज से महत्वपूर्ण हैं। जन-धन योजना के तहत करीब 11.8 करोड़ लोगों के बैंक खाते खोले गए। आधार के जरिये लगभग एक अरब नागरिकों को बायोमेट्रिक पहचान पत्र जारी किया गया। और अब करीब आधे भारतीयों के पास मोबाइल फोन हैं, जबकि महज 3.7 फीसदी लोगों के पास ही लैंडलाइन टेलीफोन हैं। ये तीनों मिलकर कितने उपयोगी हो सकते हैं, इसका एक उदाहरण काफी होगा। केंद्र सरकार रसोई गैस की खरीद पर सब्सिडी देती है। पिछले वर्ष इस सब्सिडी की रकम करीब आठ अरब डॉलर थी। अभी हाल तक लाभार्थियों को बाजार से कम मूल्य पर रियायती रसोई गैस दी गई। लेकिन अब रसोई गैस पर सब्सिडी सीधे योग्य लाभार्थियों के बैंक खातों में दी जाती है, जिसे मोबाइल से जोड़ दिया गया है। इसलिए अब केवल योग्य लाभार्थियों को ही इसका लाभ मिलता है।
जबकि पहले की व्यवस्था मेंसब्सिडी और बगैर सब्सिडी के बीच भारी अंतर से कालाबाजार फल-फूल गया था। कोलंबिया विश्वविद्यालय के अर्थशास्त्री प्रभात बर्नवाल का ताजा शोध बताता है कि नकद हस्तांतरण से रिसाव में कमी आई है और इससे अनुमानतः दो अरब डॉलर की बचत हुई है। इन लाभों को विस्तार देने की काफी गुंजाइश है। अलग-अलग सब्सिडियों को एक ही नकद हस्तांतरण में बदलने का विचार दशकों पहले दिग्गज अर्थशास्त्री मिल्टन फ्रीडमैन ने दिया था, जो भारत में जैम के जरिये साकार हो रहा है।
जैम का पूरा फायदा उठाने के लिए सरकार को इससे जुड़ी दो चुनौतियों से निपटने की जरूरत है, हालांकि इस पर काम शुरू हो चुका है। इसकी पहली चुनौती योग्य लाभार्थियों की पहचान और राज्यों व सरकारी विभागों के बीच तालमेल बनाने की है। नकद हस्तांतरण का लाभ देने के लिए सरकार को गरीबों की पहचान का एक तरीका ढूंढने और लाभार्थियों को बैंक खातों से जोड़ने की जरूरत होगी। फिर पात्रता मानदंड और लाभार्थियों के रोस्टरों में फर्क होता है, और प्रौद्योगिकी भी ऐसे मामलों में सूचनाओं के आदान-प्रदान में सक्षम नहीं हो सकती। इसलिए केंद्र सरकार को व्यापक तालमेल बनाने की जरूरत है, जो राज्यों को वित्तीय बचत के लिए प्रोत्साहित कर सके।
अंतिम व्यक्ति तक पहुंचने की चुनौती इसलिए पैदा होती है, क्योंकि नकद हस्तांतरण में वास्तविक लाभार्थी के छूट जाने का खतरा रहता है, यदि उसके पास बैंक खाता न हो। बैंक खाता होने पर भी वे बैंक से बहुत दूर हो सकते हैं। भारत में छह लाख गांवों में बैंकों की मात्र 40 हजार शाखाएं हैं। दूरस्थ एवं गरीब लाभार्थियों तक वित्तीय समावेशन के विस्तार के लिए बैंकों को मोबाइल के जरिये भुगतान की सुविधा उपलब्ध करानी होगी, जिसमें केन्या जैसे देशों ने सफलता पाई है।
कुल मिलाकर, जैम सरकार, अर्थव्यवस्था और खासकर गरीबों को पर्याप्त लाभ प्रदान करता है। सब्सिडी का बोझ घटने से जहां सरकार की वित्तीय स्थिति सुधरेगी, वहीं विश्वसनीय तरीके से तेजी से नागरिकों को संसाधन मुहैया कराने की क्षमता से उसे मजबूती मिलेगी। सुबूत के तौर पर, दुनिया के सबसे बड़े रोजगार कार्यक्रम मनरेगा के तहत आधार प्रमाणित भुगतान प्रणाली से भ्रष्टाचार में कमी आने के साथ श्रमिकों को भुगतान भी तेजी से हुआ है। नकद हस्तांतरण गरीबों की मुश्किलों को दूर करने वाला रामबाण बेशक नहीं है, पर उनके जीवन को बेहतर बनाने में तो समर्थ हो ही सकता है।
-सिद्धार्थ जॉर्ज हार्वर्ड में अर्थशास्त्र में डॉक्टरेट कर रहे हैं। अरविंद सुब्रमण्यन भारत सरकार के मुख्य आर्थिक सलाहकार हैं।