शासन प्रक्रियाओं में प्रौद्योगिकी के समावेश से तीन चीजें होंगी-पहली, यह सरकार को ज्यादा पारदर्शी बनाएगी। दूसरी बात, इससे नागरिकों के जीवन में बदलाव आएगा, खासकर गरीब तबकों के जीवन में। और तीसरी बात, यह हमारी अर्थव्यवस्था को ज्यादा कुशल और प्रतिस्पर्धी बनाएगी। मैकिंजी ग्लोबल इंस्टीट्यूट की वर्ष 2014 की एक रिपोर्ट भी बताती है कि डिजिटल इंडिया के माध्यम से शासन में बड़े पैमाने पर प्रौद्योगिकी रूपांतरण से देश में आर्थिक विकास में तेजी लाने के लिए अब तक का सबसे बड़ा अवसर पैदा होगा।
ई-गवर्नेंस और सरकार में प्रौद्योगिकी का समावेश कोई नया विचार नहीं है। इसका विकास वर्षों पहले टाइपराइटर की जगह पर्सनल कंप्यूटर को लाने से हुआ। हालांकि पिछले एक दशक में ई-गवर्नेंस और उसकी कुशलता के नाम पर हजारों करोड़ रुपये खर्च किए गए, लेकिन इस निवेश से सरकारी कामकाज में मामूली परिवर्तन ही आया। इसकी मुख्य वजह यह थी कि सरकार में प्रौद्योगिकी के समावेश की प्रक्रिया वर्षों तक छोटे स्तर पर चली। अलग-अलग विभागों और कार्यालयों ने इसे एक-दूसरे स्वतंत्र होकर अपनाया। इस प्रकार से करोड़ों रुपये ऐसी प्रणाली और परियोजना पर खर्च किए गए, जो असंगत है और एक-दूसरे के साथ काम नहीं कर सकते। इसने ई-गवर्नेंस के उद्देश्यों को ही खत्म कर दिया और ये निवेश स्थानीय कंप्यूटरीकरण तक सिमटकर रह गए।
मसलन, विशाल डाटा कलेक्शन कवायद और डाटाबेस को ले लीजिए-बायोमेट्रिक्स पहचान पत्र देने वाले ‘आधार’ का डाटाबेस संरचना और हार्डवेयर के लिहाज से वित्त एवं गृह मंत्रालय की देखरेख में संचालित इसी तरह के दूसरे विशाल डाटाबेस से अलग है। या डाटा सर्वर और नेटवर्क को ही देखें-विभिन्न विभागों में इनकी सुरक्षा और विशिष्ट संरचना अलग-अलग है। नतीजतन साइबर हमले की स्थिति में विभिन्न सरकारी एजेंसियों के लिए जोखिम का स्तर अलग-अलग होता है। इसके अलावा, सीमित विभागों में प्रौद्योगिकी के समावेश से डाटा संचालन, शासन प्रक्रियाओं का समयबद्ध विश्लेषण और नीतिगत कार्रवाई संभव नहीं है या वह सटीक नहीं हो सकता। यह रवैया खरीद संबंधी लागत के हिसाब से खर्चीला तो है ही, पुराना भी है और प्रशासनिक लिहाज से अप्रभावी है। छोटे स्तर पर या विभाग आधारित प्रौद्योगिकी के समावेशन का दृष्टिकोण भी दूसरी बड़ी विफलता है। ऐसे में यह सरकार के नीति निर्माण के सर्वोच्च स्तर पर कुशलता और सुधार प्रक्रियाओं का सृजन नहीं कर सकता, जहां इसकी सबसे ज्यादा जरूरत है।
अमेरिका जैसे अधिक परिपक्व लोकतंत्र ने एक मुख्य प्रौद्योगिकीपदाधिकारी (सीटीओ) की जरूरत को स्वीकार करने में भारत को पीछे छोड़ दिया है। वहां के राष्ट्रपति ओबामा ने 2007 के चुनाव प्रचार में इस नियुक्ति को एक प्रमुख मुद्दा बनाया। ओबामा ने सीटीओ की भूमिका की परिकल्पना एक ऐसे व्यक्ति के रूप में की, जो पारदर्शिता पर ध्यान केंद्रित करे और यह सुनिश्चित करे कि संघीय सरकार का हर विभाग ई-गवर्नमेंट ऐक्ट की जरूरत के मुताबिक अपने रिकॉर्ड सार्वजनिक करे, जो आम लोगों की पहुंच में हो। भारत को इसी तरह का दृष्टिकोण अपनाने की जरूरत है और डिजिटल इंडिया कार्यक्रम के साथ आगे बढ़ते हुए गंभीरतापूर्वक इसे एक नजीर के तौर पर इस्तेमाल करना चाहिए।
सरकार विभिन्न विभागों का समुच्चय होती है। इस समय इसके कुछ हिस्से कुशल और तकनीकी रूप से सक्षम हैं, जबकि बाकी या तो कम सक्षम या प्रौद्योगिकी से वंचित हैं। नतीजतन सरकारी विभागों को कम कुशल और कम जवाबदेह माना जाता है। ठीक उसी तरह, जैसे एक सरकार अपने सबसे खराब मंत्री से जानी जाती है, न कि सबसे अच्छे मंत्री से।
एक एकीकृत मशीनरी के रूप में सरकार के कामकाज के लिए एक बेहतर सीटीओ जरूरी है, जो निरंतर कुशलता, पारदर्शिता और जवाबदेही के मानक को बनाए रखे। ‘अधिकतम शासन, न्यूनतम सरकार’ के एहसास के लिए यह महत्वपूर्ण है। सीटीओ का ध्यान एक ऐसी संरचना के निर्माण पर केंद्रित होना चाहिए, जो तीन बड़े लक्ष्य हासिल करे-पहला-नागरिकों और व्यवसायियों की सरकार तक और सरकार की नागरिकों व व्यवसायियों तक पहुंच आसान व पारदर्शी बनाना, दूसरा-सरकारी विभागों को पारदर्शी एवं कुशलतापूर्वक काम करने में सक्षम बनाना, और तीसरा-विभिन्न विभागों के बीच तालमेल बनाना, ताकि यह सुनिश्चित हो कि सरकार और नीति-निर्माता सहज, पारदर्शी और जवाबदेहीपूर्वक काम कर सकते हैं।
इसके लिए सीटीओ को सरकार के मौजूदा प्रौद्योगिकी निवेश, कनेक्टिविटी और पहुंच तंत्र को फिर से तैयार करना होगा। एक मानकीकृत संरचना के निर्माण से खरीद और प्रशासनिक कुशलता पर खर्च होने वाले हजारों करोड़ रुपये की बचत होगी। डिजिटल इंडिया ‘देश को एक डिजिटल अधिकार प्राप्त समाज और ज्ञानाश्रित अर्थव्यवस्था में बदलने का वायदा करता है’। मोदी सरकार ने अब तक खुद को प्रौद्योगिकी समर्थक सरकार के रूप में दिखाया है। इस सरकार की टीम में एक मुख्य प्रौद्योगिकी पदाधिकारी न्यूनतम सरकार, अधिकतम शासन के लक्ष्यों को हासिल करने में मदद कर सकता है।
-राज्यसभा सांसद एवं प्रौद्योगिकी उद्यमी