सीपीसीबी ने 2005 से लेकर 2013 तक के आंकड़ों को आधार बनाया है। इस अवधि में 40 नदियों की 83 स्थानों पर निगरानी की गई जिसमें चार मानकों का ध्यान रखा गया। एक बायोकेमिकल आक्सीजन डिमांड (बीओडी) दूसरा, डिजाल्व आक्सीजन (डीओ) तीसरा, टोटल कोलिफार्म (टीसी) तथा चौथा मानक टोटल डिजाल्व्ड सालिड (टीडीएस)। मूलत बीओडी पानी में आक्सीजन को इस्तेमाल करने वाले तत्वों को दर्शाता है। जबकि डीओ कुल आक्सीजन की मात्रा को। टीसी कुल बैक्टीरिया की उपस्थिति और टीडीएस पानी में मौजूद ठोस तत्वों को दर्शाता है।
पानी में बैक्टीरिया की मात्रा ज्यादा-विभिन्न स्थानों की जांच में पाया गया है कि पानी की गुणवत्ता सबसे ज्यादा खराब इसमें कोलिफार्म की मौजूदगी से हुई है। सिर्फ 11 फीसदी स्थानों पर ही कोलिफार्म बैक्टीरिया मानकों के अनुरूप मिले। बााकी जगहों पर यह तय मानक से ज्यादा थे। नियमों के तहत 100 मिलीलीटर पानी में इस बैक्टीरिया की संख्या 500से ज्यादा नहीं होनी चाहिए। लेकिन अधिकतम संख्या यमुना में कई स्थानों पर 17 करोड़ तक पाई गई है।
इसी प्रकार 51 नमूनों में बीओडी की मात्रा ज्यादा पाई गई जबकि 57 स्थानों पर डीओ की अधिकता के कारण पानी की गुणवत्ता खराब निकली। इसी प्रकार 39 स्थानों पर पानी की गुणवत्ता टीडीएस के कारण खराब थी। प्रति लीटर पानी में डीओ 5 मिग्रा एवं बीओडी 3 मिग्रा प्रति लीटर या इससे ज्यादा होना चाहिए। जबकि टीडीएस की मात्रा 500 एमजी से ज्यादा होनी चाहिए। सर्वेक्षण के दौरान सिर्फ पांच नदियां ही ऐसी निकली जिकली जो उपरोक्त सभी पैरामीटरों पर खरी उतरती हैं।
ये नदियां फेल-
गंगा, सतुलज, मार्कंडा, घग्घर, यमुना, चंबल, ढेला, किच्छा, कोसी, बहेला, पिलाखर, सरसा, रावी, माही, रामगंगा,बेतवा, सोन, स्वान, वर्धा, भीमा, साबरमती, मंजीरा, ताप्ती, नर्मदा, वाणगंगा, दमनगंगा, इंद्रावती, महानदी, चुरनी, दामोदर, सुबर्नरेखा,कृष्णा, तुंगभद्रा।
ये नदियां पास- गोदावरी, कावेरी, पेन्नार, उत्तरा पिनकानी तथा धनसारी
खतरा क्या है ?
पानी में बैक्टीरिया की मौजूदा ज्यादा होना सबसे खतरनाक है। दरअसल,बैक्टीरिया जितने कम होते हैं, उतना ही उस पानी को प्रोसेस करके पीने योग्य बनाना आसान है। यदि बैक्टीरिया ज्यादा हैं तो शुद्धीकरण की तमाम प्रक्रिया के बावजूद उनकी मौजूदगी रह जाती है। ऐसे में नहाने के दौरान कुछ पानी शरीर में चला जाता है। इसी प्रकार ऐसे पानी से सिंचित फल सब्जियों को यदि ठीक से धोए बगैर खा लें तो बैक्टीरिया या कोलीफार्म हमारे शरीर में प्रवेश कर जाएंगे। हैजा का कोलिफार्म इकोलाई इसी तरीसे से फैलता है। पानी में आक्सीजन की कमी और अन्य ठोस तत्वों की मौजूदगी भी उसकी गुणवत्ता को बिगाड़तीहै।