पिंजरे का तोता या शेर- सुभाषिनी सहगल अली

कहते हैं कि चीजें जितनी बदलती हैं, उतनी ही पहले जैसी रहती हैं। आज जो कुछ सीबीआई के जरिये मौजूदा केंद्र सरकार कर रही है, उसके संदर्भ में यह कहना पड़ेगा कि चीजें जितनी बदलती हैं, उतनी ही वैसी तो रहती हैं, पर और भी ज्यादा भोंडी और खतरनाक हो जाती हैं। पिछले एक पखवाड़े में तीन बड़ी घटनाएं घटी हैं।

मध्य प्रदेश के व्यापम घोटाले की जांच करने वाले एक बड़े चैनल के पत्रकार की अचानक संदिग्ध परिस्थितियों में मौत हो गई। इस घोटाले से संबंधित (आरोपी अथवा जांचकर्ता) लोगों के मरने का सिलसिला 2007 से ही चल रहा है। और जबसे इसकी शुरुआत हुई है, तब से इन दोनों प्रक्रियाओं के साथ मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री का नाम जोड़कर लोग देख रहे हैं। इसलिए पिछले कई वर्षों से विपक्ष, घोटाले के बारे मे खुलासा करने वाले ह्विसल ब्लोअर और तमाम भ्रष्टाचार-विरोधी कार्यकर्ता यह मांग करते रहे कि इस घोटाले की सीबीआई जांच आवश्यक है। लेकिन मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री ने लगातार यह मांग ठुकराई। जबकि इस मामले में कितने बड़े नाम जुड़े हुए हैं, इसका अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि इसमें एक नाम मध्य प्रदेश के राज्यपाल का भी है, जो शुद्ध कांग्रेसी होने के बाद भी आज तक राजभवन में डटे हुए हैं। हालांकि अब सर्वोच्च न्यायालय ने सीबीआई जांच की मांग करने वाली याचिका स्वीकार कर ली है, पर इस आदेश को करीब 10 दिन होने के बाद भी केवल जांच के बड़े अधिकारी ही भोपाल पहुंचे हैं, उनके साथ काम करने वाली टीम का गठन अब तक नहीं हुआ है।

इसी तरह एक मामला आसाराम बापू से जुड़ा है। उन पर नाबालिग लड़की के साथ यौन हिंसा का आरोप है। बीते दिनों इस मामले के एक गवाह कृपाल सिंह को दो बाइक सवारों ने गोलियों से भून डाला। आसाराम केस में कृपाल सिंह नौवें गवाह थे, जिन पर हमला किया गया, जबकि तीन-चार गवाहों को मौत के घाट उतारा भी जा चुका है। हालांकि उस लड़की ने, जो आसाराम की हवस का शिकार बन चुकी है, कहा कि वह समझौता नही करेगी, भले ही उसे और उसके परिवार को घमकियां ही क्यों न दी जाएं। पीड़िता की मांग है कि चूंकि आसाराम और उनके लड़के के खिलाफ बलात्कार के मामले देश के कई राज्यों मे उजागर हुए हैं, इसलिए सीबीआई जांच आवश्यक है। इसी संदर्भ में यह भी याद रखना चाहिए कि आसाराम के खिलाफ हवाला द्वारा काले धन को सफेद बनाने का चमत्कार दिखाने के भी गंभीर आरोप हैं। मगर सीबीआई जांच की मांग लगातार ठुकराई जा रही है।

आखिर सीबीआई व्यस्त कहां है? शायद तीस्ता सीतलवाड़ की जांच करने में। यह वह महिला है, जिसने पिछले दस वर्षों से गुजरात दंगों में मारे गए लोगों को न्याय दिलाने का अथक प्रयास किया है। अब उसकी ‘करतूतों’ की जांच सीबीआई कर रही है। दो दिन पहले सीबीआई के दर्जन भर अधिकारियों के दस्ते ने उनके घर पर धावा बोला और करीब 20 घंटों की तलाशी ली। उनके हाथ वही दस्तावेज लगे, जो तीस्ता उन्हें पहले हीदे चुकी है।

जब कांग्रेस की सरकार थी, तब सीबीआई को ‘पिंजरे मे बंद तोता’ कहा गया था। अब जबकि भाजपा सत्ता में है, तो उसने दिखा दिया है कि सीबीआई पिंजरे में बंद शेर है, जिसे वह अपने शत्रुओं का वध करने के लिए समय-समय पर छोड़ देती है।

-पूर्व सांसद और माकपा पोलित ब्यूरो सदस्य

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *