न्यूयॉर्क। गरीबी के परिवेश में पैदा होने वाले बच्चे बेशक अपनी मेहनत से सफलता की सीढ़ियां चढ़ जाते हैं, लेकिन यह सफलता अक्सर उन्हें उनकी सेहत की कीमत पर मिलती है।
एक नए शोध के अनुसार गरीबी में पैदा होने के बाद सफलता का मुंह देखने वाले युवाओं में बुढ़ापे के चिह्न भी जल्द दिखने लगते हैं। कई मामलों में तो ऐसे युवाओं का जीवन उनके समकालीनों की अपेक्षा काफी छोटा भी रह जाता है।
इस बारे में अमेरिका में एक शोध के अंतर्गत 17 से 22 आयुवर्ग के 500 अफ्रीकी-अमेरिकी लड़कों व लड़कियों का आकलन किया गया। इन युवाओं से नशा, सिगरेट, शराब के इस्तेमाल के साथ-साथ उनकी मानसिक दशा से जुड़े प्रश्न भी पूछे गए। इसके अलावा खुद पर नियंत्रण रखने से जुड़ी एक प्रश्नावली का उत्तर भी देने को कहा गया। खुद पर नियंत्रण रखने की प्रवृत्ति को सफलता के लिए जरूरी समझा जाता है।
शोध के नतीजों में बताया गया है कि युवा अमीर परिवार से आया हो या गरीब परिवार से, खुद पर नियंत्रण रखने वाले युवा कम उग्र और बेहतर मानसिक स्वास्थ्य वाले होते हैं। लेकिन वह धूम्रपान और नशा करते हैं। शराब का सेवन ऐसे युवा कम ही करते हैं।
शोध के सबसे जरूरी पक्ष में बताया गया है कि खुद पर नियंत्रण रखने में सफल गरीबी के परिवेश से आने वाले युवाओं में सेहत से जुड़ी दिक्कतें जल्द सिर उठाने लगती हैं। इलिनॉय की नॉर्थवेस्टर्न यूनिवर्सिटी के शोधकर्ता ज्योफ्री मिलर के अनुसार, "आत्म-नियंत्रण से मिली सफलता के छुपे हुए भौतिक असर होते हैं।"
गरीबी के परिवेश से आने वाले युवाओं के लिए आत्म-नियंत्रण दोधारी तलवार की तरह काम करता है। ऐसे युवाओं के लिए सफलता के बाद अपनी पृष्ठभूमि को भूल पाना अक्सर कठिन होता है। मिलर के अनुसार यह युवा विश्र्वविद्यालयों या दफ्तरों का हिस्सा तो बन जाते हैं, लेकिन वहां भी वह अलग-थलग ही दिखते हैं।
वहीं रंगभेद जैसी समस्याएं भी जब-तब अपना असर दिखाती हैं। इस कारण हार्मोन में भी परिवर्तन आता दिखता है। मिलर कहते हैं, "नतीजे बताते हैं कि आर्थिक तौर पर कमजोर पृष्ठभूमि से आने वाले युवाओं में विचारों का लचीलापन बहुत कमजोर साबित होता है, जबकि सफलता से जुड़े बाहरी हालात सीधे उनकी सेहत पर असर डालते हैं।"
उल्लेखनीय है कि अमेरिका जैसे विकसित देश में किए गए इस शोध के नतीजे भारत जैसे विकासशील देश के लिए भी बहुत सटीक बैठते हैं।