मां के दूध में मिले अंदाजे से 100 गुना ज्यादा पेस्टिसाइड

सिरसा (हरियाणा): क्या नवजात के लिए सबसे ज्यादा फायदेमंद माना जाने वाला मां का दूध भी सुरक्षित नहीं रहा? एक रिपोर्ट में मां के दूध में पेस्टिसाइड के अंश मिलने की बात सामने आई है। सिरसा में एक किलो दूध में 0.12 मिलीग्राम पेस्टिसाइड मिला। यह वर्ल्ड हेल्थ ऑर्गनाइजेशन के अंदाजे से 100 गुना ज्यादा है।
रिपोर्ट के मुताबिक, अगर सरकार ने खाने-पीने की चीजों में हानिकारक कीटनाशकों का इस्तेमाल नहीं रोका तो आने वाले वक्त में इसका बुरा असर नवजातों पर पड़ सकता है। बता दें कि केंद्र सरकार ने ब्रेस्ट फीडिंग को लेकर बड़े पैमाने पर अभियान चलाया है।
क्या है रिसर्च में
सिरसा स्थित चौधरी देवी लाल यूनिवर्सिटी के डिपार्टमेंट ऑफ एनर्जी एंड एनवायरन्मेंटल साइंसेस ने अपनी रिसर्च के नतीजे पब्लिश किए हैं। सिरसा में ह्यूमन मिल्क में पेस्टिसाइड्स की मौजूदगी को लेकर डॉ. रिंकी खन्ना ने रिसर्च किया। उन्होंने पाया कि बच्चों में उनकी मां के दूध के जरिए पेस्टिसाइड्स पहुंच रहा है। डॉ. रिंकी ने ह्यूमन मिल्क का सैंपल 40 महिलाओं से लिया। यह स्टडी तीन साल तक की गई। रिसर्च में 8 महीने से 2 साल तक की उम्र वाले 80 बच्चे शामिल थे।
क्या है वजह?
जानकारों के मुताबिक, गाय या भैंस को दिए जाने वाले चारे में पेस्टिसाइड्स की काफी मात्रा होती है। पशुओं को ऐसा चारा खिलाने से उनके दूध पर असर पड़ता है। यही दूध इंसान के शरीर में पहुंचता है तो उसमें मौजूद पेस्टिसाइड्स रिएक्ट करते हैं। मां के शरीर में फैट सॉल्युबल केमिकल्स के घुलने से भी उनके दूध में पेस्टिसाइड्स की मात्रा बढ़ती है।
पूरे राज्य में चिंताजनक स्थिति
डिपार्टमेंट ऑफ एनर्जी एंड एनवायरन्मेंटल साइंसेस से जुड़ी डॉ. रानी देवी के मुताबिक, रिसर्च में पाया गया कि दूध पिलाने के बाद बच्चों में पहुंचने वाली पेस्टिसाइड्स की मात्रा दस गुना बढ़ गई। देवी ने बताया कि सिरसा के आंकड़े चौंकाने वाले हैं। मुमकिन है कि राज्य के दूसरे हिस्सों में भी महिलाएं पेस्टिसाइड्स के अंश वाला दूध अपने बच्चों को पिला रही हैं। डॉ रानी ने कहा, ”हम मां के दूध में पेस्टिसाइड्स की मौजूदगी की डिटेल्ड स्टडी कर रहे हैं। हालात चिंताजनक है, इसलिए हम डिपार्टमेंट ऑफ साइंस एंड टेक्नोलॉजी को जल्द ही एक प्रोजेक्ट भेज रहे हैं।”
क्या पहले भी सामने आए हैं ऐसे मामले?
– जून 2009 में राजस्थान यूनिवर्सिटी ने भी इसी तरह की रिसर्च की थी। श्रीगंगानगर जिले के अनूपगढ़ में यह रिसर्च 50 महिलाओं पर की गई। सैम्पल्स में ऑर्गेनोक्लोरीन पेस्टिसाइड ज्यादा पाया गया। यह केमिकल खाने-पीने की चीजों से हमारे शरीर में जाता है और बॉडी फैट में घुल जाता है। अनूपगढ़ से लिए सैम्पल्स में यह पेस्टिसाइड 3.319 से 6.253 एमजी/लीटर पाया गया था।
– मई 2013 में यूनाइटेड नेशंस एन्वायर्नमेंट वर्किंग ग्रुप ने अपनी एक रिपोर्ट में कहा कि ज्यादातर बच्चों की बॉडी में जन्म के वक्त पेस्टिसाइड्स या बाकी केमिकल्स पाए जा रहे हैं। यही नहीं, 220 प्रेग्नेंट महिलाओं पर यूएन की इस रिसर्च में पाया गया कि डिलिवरी के बाद बच्चे से जुड़ी अम्बिलिकलकॉर्ड (गर्भनाल) में 21 अलग-अलग तरह के पेस्टिसाइड्स के अंश पाए गए।
क्या हैं इसके खतरे?
राजस्थान यूनिवर्सिटी के जूलॉजी डिपार्टमेंट के इंदरपाल सोनी ने अपनी रिसर्च में कहा था कि पेस्टिसाइड्स मिला मां का दूध पीने से बच्चों का स्टेमिना कम हो सकता है। बड़े होने के बाद उन्हें आम लोगों के मुकाबले मेमोरी लॉस की समस्या ज्यादा हो सकती है। ऐसा दूध बच्चे के विकास के लिए जरूरी चीजें रोक सकता है।

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