ये तस्वीर न्याय मांग रही है…– रुचिर गर्ह

रायपुर के औद्योगिक इलाके की इस भयानक दुर्घटना के साथ ही छत्तीसगढ़ के औद्योगिक हादसों में एक काला धब्बा और जुड़ गया है। इस हादसे में तीन गरीब जिंदा जल गए ! इन्हीं में से किसी एक के अवशेष की यह तस्वीर विचलित कर सकती है, लेकिन हम इसे प्रकाशित कर रहे हैं। इसे प्रकाशित करते हुए हमारे जेहन में प्रसिद्ध फोटोग्राफर रघु राय की खींची भोपाल गैस काण्ड का शिकार बने एक मासूम बच्चे की तस्वीर घूम रही है जो आज भी दुनिया को झकझोर देती है और याद दिलाती है कि वो हादसा कितना भयानक था।

इस तस्वीर को छापते हुए भी यही लगता है कि यह शायद उस सरकारी अमले को झकझोरे जिसकी जम्मेदारी यह सुनिश्चित करना है कि उद्योगों में श्रमिकों की सुरक्षा के समुचित इंतजाम हों। हादसे होते हैं, खून बिखरता है, मजदूरों के चिथड़े उड़ जाते हैं, परिवार उजड़ जाते हैं, लेकिन कोई सबक नहीं लेता ! ना उद्योगपति, ना सरकार, ना सरकारी अमला ! अगर हादसों का शिकार ठेका श्रमिक हो तो उसकी जान की तो कोई कीमत ही नहीं होती !

दरअसल ऐसे हादसों का जो शिकार होते हैं उनकी कोई आवाज ही नहीं है। यह गुमनाम जिंदगियां अधकचरा सुरक्षा इंतजामों के साथ चल रहे ऐसे उद्योगों की आपराधिक लापरवाही का शिकार बनने के लिए ही होतीं हैं ! यह श्रमिक इंसान नहीं केवल संख्या होते हैं ! इनके चिथड़े भी उड़ कर मंत्रालय तक नहीं पहुंच पाते ! छत्तीसगढ़ का दामन ऐसे औद्योगिक हादसों में बहे खून के छींटों से दागदार है। आज तक यह तय नहीं हुआ कि बाल्को चिमनी हादसे का जिम्मेदार कौन है? सजा तो दूर की बात है !

अभनपुर के पास एक फैक्टरी नवभारत एक्सप्लोसिव्स में हुआ विस्फोट हो या बलौदाबाजार के पास अम्बुजा सीमेंट फैक्टरी की औद्योगिक दुर्घटना या भिलाई स्टील प्लांट में गैस के रिसाव से हुईं मौतें …औद्योगिक सुरक्षा से लेकर श्रम कानूनों के पालन तक की हकीकत बयां करती हैं। लेकिन क्या फर्क पड़ता है? बहुत फर्क पड़ा तो कोई जांच हो जाएगी जिसकी लिपीपुती रिपोर्ट भी कूड़ेदान में ही होगी। इस तरह के हादसे एक के बाद एक होते रहें और हर हादसे में औद्योगिक सुरक्षा की खामियां नजर आएं तो साफ है कि इनकी रोकथाम में किसी की रुचि नहीं है। साफ है कि सिस्टम समर्थ के साथ है।

छत्तीसगढ़ सरकार दुनिया को उद्योग मित्र सरकार का सन्देश देना चाहती है। यहां अधिक से अधिक निवेश चाहती है। सरकार उद्योगों के लिए प्राकृतिक संसाधनों के द्वार खोल रही है, तमाम सुविधाएं दे रही है,लेकिन सवाल यह है कि क्या छत्तीसगढ़ के मानव संसाधन की कोई कीमत नहीं है? इस झकझोर देने वाली तस्वीर की पीड़ा तो यही है। यह बहुत विचलित कर रही है और न्याय मांग रही है।

यह उन तमाम मौतों का हिसाब मांग रही है जो कारखानों की दुर्घटनाओं में हुई हैं, यह उन लोगों के लिए न्याय मांग रही है जो इस देश के औद्योगिक उत्पादन में, इस देश के विकास में अपना हिस्सा दर्ज करते हुए सिर्फ इसलिएमारे गए क्योंकि उनकी सुरक्षा के इंतजाम या तो थे ही नहीं या अधकचरे थे ! क्या सरकार से इन्हें न्याय मिलेगा ?

 

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