इसके बाद कॉमनवेल्थ ह्यूमन राइट्स इनिशिटिव ने कहा कि इस रिपोर्ट से यह जाहिर होता है कि इन 15 वर्षों में हर साल औसतन 186 लोगों को मौत की सजा दी गई।
रिपोर्ट में बताया गया है कि ‘भारतीय अदालतों ने साल 2007 में सबसे ज्यादा मौत की सजा दी, जिसकी संख्या 186 थी। 2000 में 165 लोगों को मृत्युदंड मिली, वहीं 2005 में अदालतों ने 164 को मौत की सजा सुनाई। सबसे कम मौत की सजा 1998 में सुनाई जिनकी संख्या 55 थी।’
फांसी सुनाने में आगे, पर सजा देने में पीछे
नोएडा के निठारी कांड मामले में मौत की सजा पाए सुरेंदर कोली को अब तक फांसी पर लटकाया नहीं जा सका है। हर बार उसे अदालत से स्टे मिल जाता है।
ऐसी ही कहानी मुंबई बम धमाकों के आरोपी याकूब मेनन की भी थी। उसकी सजा पर भी कई बार रोक लगी। हालांकि, इसी साल अप्रैल महीने में सुप्रीम कोर्ट ने उसकी सजा पर लगे स्टे को हटा दिया था।
सजा सुनाने में भारत टॉप पर
आपको जानकर आश्चर्य होगा कि सजा-ए-मौत की सजा सुनाने के मामले में भारत की गिनती दुनिया के शीर्ष 5 देशों में होती है। लेकिन फांसी की सजा यहां दुर्लभ ही मिलती है।
वर्ष 2014 में दुनियाभर की अदालतों ने 2466 लोगों को फांसी की सजा सुनाई थी। वहीं भारत में 64 लोगों को यह सजा सुनाई जा चुकी है। वर्ष 2001 से 2011 के बीच देश की अदालतों ने 1455 अपराधियों को मौत की सजा सुनाई थी।
साल दर साल सजा का आंकड़ा
2001 से 2014 के बीच पूरे भारत में 1741 लोगों को मौत की सजा सुनाई गई है।
लेकिन फांसी की सजा देने के मामले में आंकड़ा एकदम उलट है।