केंद्र सरकार ने इन संरक्षित जनजातियों के परिवार नियोजन पर प्रतिबंध लगा रखा है, लेकिन यह प्रतिबंध बेअसर साबित हो रहा है। प्रसव के दौरान माताओं की मृत्यु होना इसकी सबसे बड़ी वजह माना जा रहा है।
पंडित रविशंकर शुक्ल विश्वविद्यालय के अर्थशास्त्रियों ने साल 1901 से लेकर 2011 के बीच 110 सालों में प्रदेश की जनसंख्या वृद्धि को लेकर शोधपत्र तैयार किया है। इसमें अभी की स्थिति विस्फोटक जनसंख्या वृद्धि दर्ज की जा रही है।
अर्थशास्त्रियों का कहना है कि जनसंख्या वृद्धि दर पर लगाम लगाना जरूरी है। वहीं जनगणना 2011 के ताजा आंकड़ों से पता चलता है कि राज्य के बस्तर, नारायणपुर, बीजापुर, दंतेवाड़ा और कांकेर के आदिवासियों की जनसंख्या दर घट रही है।
110 सालों में छत्तीसगढ़ के अंचल में जनसंख्या दर की स्थिति
क्रम – दशक वृद्धि दर प्रतिशत – दशक
धीमी वृद्धि – 5 प्रतिशत से कम – 1911-21
मध्यम वृद्घि – 5 से 10 प्रतिशत – 1941-51
तीव्र वृद्धि – 10 से 15 प्रतिशत – 1921-3-, 1931- 41
अति तीव्र वृद्धि – 15 से 20 प्रतिशत – 1971-81,1991-2001
विस्टफोटक वृद्धि – 20 प्रतिशत से ज्यादा – 1901-11, 1951-61, 1961-71, 1981-91 और 2001-11
आदिवासी इलाकों में जनसंख्या दर घटी
जिले का नाम – दशक 1991-2000 – दशक 2001-2011
बस्तर – 18.18 – 17.8
नारायणपुर – 23.4 – 19.49
बीजापुर – 19.3 – 8.76
दंतेवाड़ा – 14.9 -11.9
कांकेर – 18.68 – 15.00
बढ़ रही मातृ मृत्यु दर
साल 2012 में – 2014 में
बस्तर – 26 – 77
नारायणपुर – 5 – 13
दंतेवाड़ा – 2 -15
कांकेर – 13 – 17
आदिवासियों के घटने के कारण
अर्थशास्त्रियों की माने तो आदिवासियों के घटने का प्रमुख कारण यहां स्वास्थ्य सुविधाओं का अभाव, शिशु मृत्यु दर, गरीबी, अज्ञानता, अशिक्षा, अंधविश्वास, अस्वास्थ्यकर सामाजिक सेवाएं और प्रसव के दौरान माताओं की अत्यधिक मौत है।
जनसंख्या वृद्धि दर में नौवां स्थान
जनगणना 2011 के ताजे आंकड़ों के अनुसार परिवार नियोजन के लिए शहरी और ग्रामीण इलाकों में जनजागरुकता अभियान लाने के बाद भी देशभर में छत्तीसगढ़ की जनसंख्या वृद्धि दर 22.59 है। जो कि देश की जनसंख्या वृद्धि दर 17.64 है। जनसंख्या वृद्धि में राज्य देश भर में नौवें स्थान पर है। खासकर दुर्ग, भिलाई, बिलासपुर, कोरबा आदि इलाकों में जनसंख्या तेजी से बढ़ रही है। वर्तमान में छत्तीसगढ़ की जनसंख्या 2, 55, 40, 196 है।
एक तरफ हम जनसंख्या वृद्घि रोकने का प्रयास कर रहे हैं वहीं दूसरी ओर जिन आदिवासी क्षेत्रों में जनसंख्या घट रही है। वहां परिवार नियोजन को लेकर कोई जोर नहीं दे रहे हैं। इस तरह अंतराल को खत्म करने के लिए कोशिश की जा रही है।आदिवासियों की संख्या घटने की वजह यहां शिशु मृत्यु दर एवं प्रसव के दौरान माताओं की मौत अधिक होने का कारण है। स्वास्थ्य और यातायात की सुविधाएं न होने से ये स्थिति बनी है। – डॉ. अखिलेश त्रिपाठी, नोडल ऑफिसर, राज्य परिवार नियोजन।
हम लगातार स्वास्थ्य सुविधाएं बेहतर बनाने के लिए प्रयास कर रहे हैं। आदिवासी इलाकों में आउटसोर्सिंग के जरिए अस्पतालों में नर्स की भर्ती की जा रही है। पहले से अभी बहुत कुछ सुधार हो चुका है। – आर प्रसन्ना , स्वास्थ्य सेवाएं छत्तीगसढ़
पिछले सालों में जिस तरह से आदिवासी इलाकों मे जनसंख्या दर घटी है उसके पीछे की प्रमुख वजह यहां शिशु मृत्युदर अधिक होना और प्रसव के दौरान माताओं की मृत्यु होना भी तथ्य में सामने आया है। अर्थशास्त्रियों से इसमें एनॉलिसिस किया है। – डॉ. अमरकांत पाण्डेय, एचओडी, अर्थशास्त्र, रविवि।
पिछले 110 सालों के अगर जनसंख्या वृद्घि के आंकड़े देखें तो अभी का दशक विस्फोटक दशक है। इस पर शोधपत्र तैयार किया गया है। हालांकि जनगणना 2011 के मुताबिक राज्य के माओवाद प्रभावित आदिवासी इलाकों की जनसंख्या दर घट रही है। – डॉ. आरके ब्रम्हे, प्रोफेसर, अर्थशास्त्र रविवि।