विश्व स्वास्थ्य संगठन के पैमाने के मुताबिक, अगर प्रति एक लाख नवजात शिशु में संक्रमण को पचास बच्चों तक सीमित कर लिया जाए, तो भी माना जाता है कि संबंधित मुल्क ने जानलेवा संक्रमण पर काबू पा लिया है। लेकिन क्यूबा में वर्ष 2013 में पैदा हुए मात्र दो बच्चों में एचआईवी और मात्र पांच बच्चों में सिफलिस का संक्रमण पाया गया।
ऐसे समय में, जब एचआईवी संक्रमण और एड्स जैसी गंभीर बीमारी का खतरा बढ़ रहा है, तब यह खबर सुखद प्रतीत होती है। भारत में एचआईवी संक्रमितों की तीसरी बड़ी संख्या रहती है और एशिया-प्रशांत क्षेत्र में एड्स से होने वाली मौतों में से आधी भारत में होती हैं। ऐसे में भारत के लिए क्यूबा का उदाहरण प्रेरक हो सकता है। एचआईवी संक्रमण को अभी लाइलाज समझा जाता है, लेकिन यह सही नहीं है। यही वजह है कि एचआईवी संक्रमित लोगों के मानवाधिकारों का उल्लंघन होता रहता है। पिछले दिनों ही ऐसी खबर आई थी कि मेरठ के सरकारी अस्पताल में गर्भवती महिला के बिस्तर पर हाथ से लिखकर कागज चिपकाया गया था कि वह एचआईवी संक्रमित है और डॉक्टरों ने खुद उससे ही गंदगी साफ करवाई थी।
हमारे देश में पहले ही सार्वजनिक स्वास्थ्य पर सकल घरेलू उत्पाद का लगभग एक फीसदी खर्च किया जाता है, जो काफी कम है। पर विडंबना देखिए कि पिछले दिनों खर्च कटौती के नाम पर केंद्र सरकार ने एड्स/एचआईवी नियंत्रण कार्यक्रम के लिए आवंटित बजट में तीस फीसदी से अधिक कटौती की है।
क्यूबा में मां से बच्चे तक एचआईवी संक्रमण को न्यूनतम करने की पहल वर्ष 2010 से हुई। इस पहल के तहत संक्रमणों की जांच एवं इलाज तक संक्रमित महिलाओं की पहुंच सुगम बनाई गई। जरूरत पड़ने पर सीजेरियन पद्धति से प्रसूति का इंतजाम किया गया और मां के दूध के विकल्प के तौर पर कुछ अन्य सामग्री उपलब्ध कराई गई।
क्यूबा की सार्वभौमिक स्वास्थ्य प्रणाली के ‘चमत्कार’ पर पश्चिमी जगत के कई विद्वानों ने किताबें भी लिखी हैं। अपनी चर्चित किताब सोशल रिलेशंस ऐंड द क्यूबन हेल्थ मिरैकल में एलिजाबेथ काथ बताती हैं कि ‘क्यूबा में स्वास्थ्य नीति के अमल में व्यापक स्तर पर सहभागिता और सहयोग दिखता है, जिसे सार्वजनिक स्वास्थ्य को वरीयता देने की सरकार की दूरगामी नीति के तहत हासिल किया गया है।’ मंथली रिव्यू के दिसंबर, 2012 के अपने आलेख में डोन फित्ज बताते हैं कि क्यूबाई प्रणाली का सबसे आकर्षित करनेवाला पहलू यह है कि वहां डॉक्टर एवं नर्स की टीम समुदाय का ही हिस्सा होती है और पास में रहती है। इसी का परिणाम है कि सीमित संसाधनों के बावजूद क्यूबा को पोलियो, टीबी जैसी कई संक्रमणजन्य बीमारियों को खत्म करने में सफलता मिली है।