कुपोषण– यह है गुजरात का सच

भारत सरकार स्वास्थ्य पर कई अभियान चला रही है लेकिन कुपोषण के राज्यवार आंकडे़ जारी नहीं हुए। सरकार ने यूनिसेफ के साथ महिलाओं, बच्चों पर देश भर में ‘रैपिड सर्वे ऑफ चिल्ड्रन’ नाम से बड़ा सर्वेक्षण कराया था, जो अक्टूबर 2014 में प्रकाशित होना था। आंकड़े नहीं होने के कारण यूनिसेफ विकास योजनाओं को अमल में नहीं ला पा रही है। सरकार इस पर मौन है, जबकि बीबीसी को मिली रिपोर्ट की प्रति में इसके नतीजे चौंकाने वाले हैं।

इनके मुताबिक भारत में कुपोषण में सुधार के बावजूद इसका आंकड़ा अफ्रीकी देशों से ज्यादा है। खास तौर पर पीएम मोदी के गुजरात में यह प्रदर्शन काफी खराब रहा है। प्रसिद्ध विकास अर्थशास्त्री ज्यां द्रेज ने कहा कि रिपोर्ट के प्रकाशन में लेटलतीफी एक तरह का ‘घोटाला’ है। उन्होंने कहा कि सभी पड़ोसी देशों के पास पोषण संबंधी ताजा सर्वेक्षण हैं। इनमें बांग्लादेश, नेपाल, श्रीलंका, भूटान, पाकिस्तान और यहां तक कि अफगानिस्तान भी शामिल हैं। लेकिन भारत में इस देरी का

कारण राजनीतिक अनिच्छा हो सकती है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी एक दशक तक गुजरात के मुख्यमंत्री रहे हैं और लोकसभा� चुनावों के दौरान उन्होंने देश का विकास गुजरात मॉडल पर करने की बात कही थी। ऐसे में सर्वे के परिणाम कुछ लोगों पर स्वास्थ्य के आंकड़ों को लेकर कुछ लोगों पर यह सवाल खड़ा कर सकते हैं कि क्या इसी मॉडल का देश अनुकरण करेगा ?

गुजरात का विकास प्रभावशाली है लेकिन बच्चों की सेहत के हिसाब से प्रदेश का प्रदर्शन बहुत खराब रहा है। बीबीसी रिपोर्ट के मुताबिक गुजरात के 41.8 फीसदी बच्चे शारीरिक रूप से पूरी तरह विकसित नहीं हैं, जबकि 43.8 फीसदी बच्चों का टीकाकरण आवश्यकतानुसार नहीं हुआ है।

महाराष्ट्र ने किया सुधारः रिपोर्ट के मुताबिक एक दशक पहले गुजरात के पड़ोसी राज्य महाराष्ट्र में भी कुपोषण के आंकड़े काफी खराब थे, लेकिन महाराष्ट्र ने इस तरफ पर्याप्त ध्यान दिया और प्रदेश में बच्चों की सेहत में सुधार किया। परिणामस्वरूप कम वजन वाले बच्चों की तादात में 24 फीसदी की कमी आई और अविकसित बच्चों की दर को 41 फीसदी तक कम किया जा सका।

स्वास्थ्य पर केंद्र का रुखः भारत सरकार अपने सकल घरेलू उत्पाद का महज एक प्रतिशत ही स्वास्थ्य सेवाओं पर खर्च करती है। जबकि वर्तमान सरकार के सत्ता में आने के बाद इन खर्चों में और भी अधिक कटौती की गई है।

कोट :- ‘‘सरकार सर्वेक्षण प्रणाली की समीक्षा कर रही है लेकिन एजेंसी को रिपोर्ट प्रकाशित होने का इंतजार है। यूनिसेफ को ठोस योजना बनाने से पहले आंकड़े जुटाना जरूरी होता है, ताकि कुपोषण के कारणों को जानकर योजनाओं को उन क्षेत्रों में केंद्रित किया जाए जो सबसे ज्यादा प्रभावित हैं।” सबा मेब्रातु, भारत में यूनिसेफ प्रमुख।

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