देश में सिर पर मैला ढोने जैसा अमानवीय चलन आज भी पूरी तरह रुक नहीं पाया है। शुक्रवार को जारी सामाजिक, आर्थिक, जाति आधारित जनगणना (एसईसीसी) 2011 के मुताबिक, ग्रामीण भारत में औसतन 0.10 फीसदी लोग सिर पर मैला ढोते हैं।
यानी करीब 18.06 लाख लोग यह काम कर रहे हैं। आजादी मिलने के बाद से ही कई सरकारों ने इसे खत्म करने को कानून बनाए लेकिन यह चलन जारी है।
देश भर के दूसरे राज्यों के मुकाबले त्रिपुरा में सबसे ज्यादा लोग सिर पर मैला ढोते हैं। वहां की ग्रामीण आबादी में से ढाई फीसद लोग यह काम कर रहे हैं। यानी त्रिपुरा में 17,332 लोग सिर पर मैला ढोते हैं।
इसके बाद मिजोरम का नंबर आता है। वहां यह काम करने वालों की संख्या कुल आबादी की 0.92 प्रतिशत है। वहीं नौ राज्यों और एक केंद्र शासित प्रदेश में सिर पर मैला ढोने वालों की संख्या शून्य है।
जिन राज्यों में इस चलन को खत्म किया जा चुका है, उनमें गुजरात, हिमाचल प्रदेश, गोवा, तेलंगाना, आंध्र प्रदेश, तमिलनाडु, केरल, मणिपुर और असम शामिल हैं।
इसके अलावा कानूनी तौर पर जारी बंधुआ मजदूरों की संख्या भी चिंताजनक है। देश की कुल आबादी का 0.12 प्रतिशत हिस्सा यानी 2.06 लाख लोग आज भी बंधुआ मजदूर हैं। इसमें भी त्रिपुरा सबसे ऊपर है।
यहां 7.31 प्रतिशत यानी 50,716 बंधुआ मजदूर हैं। इसके बाद अरुणाचल प्रदेश (0.7 प्रतिशत) का नंबर आता है। जहां तक प्राचीन जनजातीय समूहों की बात है तो एसईसीसी से खुलासा हुआ है कि 0.59 प्रतिशत लोग इसके तहत आते हैं। देश भर के विभिन्न राज्यों में 10.52 लाख जनजातीय समूह हैं।