असहिष्णु होता समाज और हिंसा का उत्सव

बिहार के नालंदा में एक निजी स्कूल के निदेशक को सरेआम पीट-पीटकर मार डाला गया। देखने में, यह घटना स्थानीय लोगों के गुस्से की अभिव्यक्ति लगती है। स्कूल के दो बच्चों के गायब होने और फिर उनकी लाश मिलने के बाद लोगों का क्रोध भड़क उठा था। दो मासूमों की मौत काफी पीड़ादायक घटना है और उनकी लाश मिलने पर गुस्सा भी स्वाभाविक है, पर गुस्से में हत्या की वारदात को अंजाम देना स्वाभाविक नहीं कहा जा सकता।

चंद महीने पहले नगालैंड में रेप के एक आरोपी को जेल से निकालकर भीड़ ने मार डाला था। नालंदा व नगालैंड में घटी घटनाओं में एक साझा सूत्र दिखाई देता है। भीड़ जब हत्या पर उतारू थी, तब कुछ लोग वारदात का वीडियो बनाने में जुटे थे, तस्वीरें उतार रहे थे। इनको बाद में सोशल मीडिया पर साझा किया गया। संविधान में भीड़ के इंसाफ की कोई जगह नहीं है। गुनाह चाहे जितना भी बड़ा हो, फैसला अदालत करती है। यह समाज में बढ़ती असहिष्णुता का परिणाम है या लोगों का कानून से भरोसा उठते जाने का? इसकी गंभीर समाजशास्त्रीय व्याख्या की जरूरत है। जिस तरह से नालंदा के स्कूल में बच्चों की लाश मिली, उसी तरह कुछ वर्ष पूर्व आसाराम बापू के आश्रम में रहस्यमय परिस्थितियों में बच्चों की लाशें मिली थीं। तब काफी हंगामा मचा, जांच आयोग का गठन हुआ था। करीब सात साल बाद भी उस केस के मुजरिमों को सजा नहीं हो पाई है। निर्भया रेप केस भी फास्ट ट्रैक कोर्ट आदि से गुजरकर सुप्रीम कोर्ट में लटका है। जनता को लगता है कि आंदोलनों और सरकार-पुलिस की तमाम कोशिशों के बावजूद अपराधियों को सजा नहीं मिल पाती है या बहुत देर से मिलती है। देर से मिलता न्याय हमारी पूरी न्याय-व्यवस्था को कठघरे में खड़ा करता है। न्यायिक प्रक्रिया में हो रही देरी से समाज का सब्र टूटने लगा है। नतीजतन, नालंदा जैसी बदले की कार्रवाई बढ़ी है। ऐसी घटनाओं के काफी खतरनाक परिणाम संभव हैं, जो हमारे लोकतंत्र को कमजोर कर सकते हैं।

 

एक और खतरनाक प्रवृत्ति इन दोनों घटनाओं में देखने को मिली है। वह है इनसे जुड़े वीडियो व फोटो का व्हाट्स ऐप, फेसबुक व ट्विटर पर वायरल होना। गांधी के देश में, जिसने अहिंसा के बूते ब्रिटिश शासन को हिला दिया, हिंसा का उत्सव समझ से परे है। हत्या व बलात्कार के वीडियो और फोटो को साझा करके हम हासिल क्या करना चाहते हैं? ज्यादा दिन नहीं बीते हैं, जब व्हाट्स ऐप पर रेप की वारदात का एक वीडियो वायरल हुआ था। मामला सुप्रीम कोर्ट तक जा पहुंचा था। दरअसल, इस तरह के मामलों में अदालतें, पुलिस, सरकार से ज्यादा दायित्व समाज का है। उसे इस तरह की घटनाओं को हतोत्साहित करना चाहिए। किसी हत्या या बलात्कार के वीडियो को साझा करना सभ्य समाज के बुनियादी उसूलों से हमारे हटने का संकेत दे रहा है। इन संकेतों को समझकर जरूरी कदम उठाने होंगे, ताकि हमारा समाज बचा रह सके और बची रह सके उसकी आत्मा।
(ये लेखक के अपने विचार हैं)

 

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