अधूरे राज्यों के अपने-अपने संघर्ष- एस श्रीनिवासन

दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल और पुडुचेरी के मुख्यमंत्री एन आर रंगासामी में कई समानताएं हैं। दोनों विशाल बहुमत के साथ अपनी-अपनी विधानसभा में पहुंचे हैं, मगर इन दोनों को आधे-अधूरे अधिकार मिले हैं। वे अधूरे राज्यों की सत्ता में हैं। इन दोनों नेताओं को सरकारी तामझाम बिल्कुल पसंद नहीं। केजरीवाल जहां लाल बत्ती और पायलट कारों के काफिले से परहेज बरतते हैं, तो रंगासामी अपने निर्वाचन क्षेत्र का दौरा मोटरसाइकिल से करते हैं, और एक भी पायलट कार साथ नहीं रखते। वह अपने सुरक्षाकर्मियों को अक्सर अपने दौरे की जगह के बारे में भी नहीं बताते। हालांकि, वह मोटरसाइकिल खुद नहीं चलाते, बल्कि पीछे बैठकर चालक को निर्देश देते रहते हैं। इन दोनों मुख्यमंत्रियों के लक्ष्य भी एक जैसे हैं- वे केंद्र से पूर्ण राज्य का दर्जा, और अधिक धन व अनुदान मांग रहे हैं। रंगासामी तो 6,500 करोड़ रुपये की कर्ज-माफी भी चाहते हैं। पर इन दोनों मुख्यमंत्रियों की समानताएं यहां आकर खत्म हो जाती हैं।

 

अरविंद केजरीवाल ने टकराव का रास्ता चुना है और वह केंद्र सरकार के साथ जोरदार जंग लड़ रहे हैं, लेकिन रंगासामी ने राज्य स्तर पर भाजपा को अपने साथ करके केंद्र के साथ दोस्ती का रिश्ता बनाया है। केजरीवाल का शब्दकोश ‘कानूनी हक और मांग’ जैसे शब्दों से तैयार होता है, मगर रंगासामी ‘सहयोग और अनुरोध’ जैसे शब्दों का इस्तेमाल करते हैं। विडंबना यह है कि दोनों अपने-अपने उद्देश्य में नाकाम हो रहे हैं, क्योंकि केंद्र की हुकूमत ने इन दोनों मुख्यमंत्रियों की मांगों की तरफ से आंखें मूंद ली हैं। शायद यही वजह थी कि नाराज रंगासामी पिछले हफ्ते स्मार्ट सिटी कार्यक्रम के संदर्भ में आयोजित प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के दोपहर के भोज में शामिल नहीं हुए। हालांकि, उन्होंने दिल्ली की ‘उड़ान छूट जाने’ को इसका कारण बताया। राजनीतिक विश्लेषकों का भी कहना है कि विमान छूट जाने के पीछे बहुत कुछ नहीं पढ़ा जाना चाहिए, क्योंकि रंगासामी हवाई अड्डे पर अक्सर देर से पहुंचने के लिए चर्चित हैं, हालांकि सियासी पंडित यह मानते हैं कि राज्य में रंगासामी की पार्टी एनआर कांग्रेस का भाजपा से गठबंधन ठीक नहीं चल रहा है। 
देश के दूसरे केंद्र शासित क्षेत्रों की तरह पुडुचेरी भी एक अधूरा राज्य है, और वहां पर भी उप-राज्यपाल का शासन है, जिनके पास काफी शक्तियां हैं। केजरीवाल के उलट कानून-व्यवस्था व शहरी विकास, दोनों रंगासामी के पास हैं, मगर सीमित अर्थों में। वह अपने तईं इंस्पेक्टर स्तर के अधिकारियों के तबादले का ही आदेश दे सकते हैं, उससे ऊपर के अफसरों से जुड़ी किसी बात के लिए उन्हें उप-राज्यपाल की इजाजत लेनी पड़ेगी। इसी तरह, पुडुचेरी के मुख्यमंत्री एक करोड़ रुपये की परियोजनाओं व कार्यक्रमों की ही अनुमति दे सकते हैं। इससे अधिक की परियोजनाओं के लिए उन्हें पहले राज्यपाल, दूसरे शब्दों में केंद्र की इजाजत लेनी पड़ेगी। केजरीवाल के विपरीत रंगासामी एक बुजुर्ग राजनेता होने के कारण समझौतों और समन्वय की राजनीति के अभ्यस्त हैं। पिछले उप-राज्यपाल की नियुक्ति के खिलाफ उन्होंने तब कांग्रेस पार्टी से लड़ाई भी लड़ी थी, लेकिन मौजूदा उप-राज्यपाल के साथ उन्होंने अच्छे रिश्ते कायम किए हैं। वैसे,अंडमान-निकोबार द्वीप समूह के उप-राज्यपाल के पास ही अभी पुडुचेरी का अतिरिक्त प्रभार है।

 

रंगासामी अविवाहित हैं और उनका दावा है कि उन्होंने के कामराज की राह पर चलकर अपनी राजनीति को सींचा है। गौरतलब है कि कामराज नेहरू युग के बाद के नाजुक वर्षों के बड़े जन-नेता थे। तमिलनाडु के मुख्यमंत्री के तौर पर उन्होंने गरीबों की भलाई से जुड़ी कई योजनाएं चलाई थीं, जिनमें मिड-डे मील और मुफ्त स्कूली यूनिफॉर्म जैसी योजनाएं शामिल हैं। रंगासामी कामराज नहीं हैं, अलबत्ता कुंवारा रहकर वह उनके जैसा बनने की कोशिश कर रहे हैं। कांग्रेस पार्टी के वफादार कामराज ने पार्टी की खिदमत करने के लिए मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा दे दिया था और उनके इस कदम ने नेहरू समेत अनेक नेताओं को प्रेरित किया कि वे कामराज के कदम का अनुसरण करें। उसे हम ‘कामराज प्लान’ के नाम से जानते हैं। कामराज के राजनीतिक करियर का अंत कांग्रेस (ओ) के अध्यक्ष के रूप में हुआ। वह पार्टी छोड़ने के बारे में सोच भी नहीं सकते थे।

 

दूसरी तरफ, दो बार मुख्यमंत्री रह चुके रंगासामी ने साल 2011 में कांग्रेस को तोड़कर अपनी अलग पार्टी एआईएनआरसी गठित कर ली थी। कामराज ने जहां डीएमके की विभाजन की राजनीति के खिलाफ लड़ाई लड़ी थी, वहीं रंगासामी वन्नियारों के भारी समर्थन से सत्ता में पहुंचे। वन्नियार पुडुचेरी की एक मध्यवर्ती पिछड़ी जाति है। 30 सदस्यों वाली विधानसभा में रंगासामी की पार्टी के पास 16 विधायक हैं, और इसीलिए भाजपा की उन पर नजर है। भाजपा वहां से अपने प्रतिनिधि को राज्यसभा लाना चाहती है। एआईएनआरसी और भाजपा के गठजोड़ के कारण ही पिछले लोकसभा चुनाव में कांग्रेस नेता व तत्कालीन केंद्रीय मंत्री नारायण सामी को पराजय का मुंह देखना पड़ा था। 
फिलहाल भाजपा और एआईएनआरसी में चूहे-बिल्ली का खेल चल रहा है। एआईएनआरसी का जयललिता की पार्टी अन्नाद्रमुक से काफी कटु रिश्ता है। उसने तमिलनाडु में वन्नियारों की पार्टी पीएमके के साथ भी गठबंधन नहीं किया था। कांग्रेस की पुडुचेरी में अब मामूली हैसियत है। इस समय सिर्फ भाजपा है, जिसके साथ रंगासामी की पार्टी 2016 के विधानसभा चुनाव में जा सकती है। लेकिन पुडुचेरी में भाजपा की कोई ताकत नहीं है, इसीलिए रंगासामी हिचक रहे हैं। लेकिन उन्हें विकास को जमीन पर दिखाने के लिए केंद्र की मदद की जरूरत है। उन्होंने पुडुचेरी को स्मार्ट सिटी की सूची में शामिल कराने के लिए केंद्र के आगे न जाने कितनी ही गुहार लगाई थी, लेकिन उनके आखिरी कदम ने, जो केंद्र के कार्यक्रम में शामिल न होने का था, आखिरकार काम किया और अब उनके शहर को सौ स्मार्ट सिटी की सूची में शामिल कर लिया गया है। भाजपा को राज्यसभा में अपनी संख्या बढ़ाने के लिए रंगासामी की मदद चाहिए।

 

पूर्ण राज्य का दर्जा दिए जाने की दिल्ली और पुडुचेरी जैसे अधूरे राज्यों की मांग लगातार बढ़ती जा रही है। ऐसे में, सामूहिक रूप से न सही, लेकिन क्या केंद्र राज्य-दर-राज्य मामलों पर गौर करेगा? दिल्ली में पुलिस बल और डीडीए के जरिए जमीन पर वह अपना नियंत्रण रखे हुए है। इसके पीछे आशय यह है कि केंद्र सरकारकिसीराज्य के अधीन नहीं रह सकती। क्या वह वाशिंगटन डीसी की तरह लुटियंस दिल्ली को संघ शासित क्षेत्र बना सकती है? सुदूर इलाके व द्वीप क्षेत्र रणनीतिक नजरिये से केंद्रीय शासन के अधीन रखे गए थे। लेकिन अब जब उन्हें, जैसे कि पुडुचेरी को अपनी विधानसभा चुनने का हक दे दिया गया है, तो क्या शासन की आजादी भी नहीं दे दी जानी चाहिए?

 

लोगों को विकास चाहिए और उनके लिए यह कोई मुद्दा नहीं है कि यह काम कौन कर रहा है- केंद्र या राज्य? लेकिन वे यह जरूर चाहते हैं कि विकास का पहिया उनकी स्थानीय जरूरतों की पगडंडी से होकर गुजरे। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सत्ता के विकेंद्रीकरण का वादा किया है और कहा है कि वह राज्यों को ज्यादा अधिकार देंगे। क्या वह यह सुन रहे हैं?
(ये लेखक के अपने विचार हैं)

 

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