आदिवासी इलाक़ों के तीन हज़ार स्कूल बंद आलोक प्रकाश पुतुल

छत्तीसगढ़ सरकार ने करीब तीन हज़ार स्कूलों को बंद कर दिया है. ये सभी सरकारी स्कूल थे.

इनमें से ज्यादातर स्कूल आदिवासी बहुल पहाड़ी और जंगली इलाकों में स्थित थे.

आदिवासियों ने सरकार की इस कदम का कड़ा विरोध किया है. उन्होंने इस पर चिंता जताई है कि उनके बच्चे अब पढ़-लिख नहीं पाएंगे.

दलील

आदिवासी बहुल इलाका नारायणपुर, बस्तर, दंतेवाड़ा में इन स्कूलों को बंद किया गया है. अब इन इलाकों के बच्चों को दूसरे गांवों में जंगल, पहाड़ और दूसरी बाधाएं पार कर जानी पड़ती है.

अभी हाल ही में छत्तीसगढ़ को एजुकेशन डेवलपमेंट इंडेक्स में देश के 35 राज्यों में 28वें स्थान पर रखा गया था.

स्कूलों को बंद करने के फ़ैसले पर राज्य सरकार की दलील है कि या तो इन स्कूलों में छात्रों की तदाद बहुत कम थी और नज़दीक के इलाक़े में ही कोई दूसरा

सरकारी स्कूल चल रहा है इस वजह से ये फ़ैसला लिया गया है.

इसके अलावा शिक्षकों की कमी और इमारत जैसे भी दूसरे कारण इसके पीछे सरकार की ओर से बताए गए हैं.

सरकार ने इसे एक ‘तर्कपूर्ण कार्रवाई’ बताया है.

गुस्सा

राज्य के स्कूली शिक्षा मंत्री केदार कश्यप का कहना है, “सरकार का यह कदम शिक्षा के स्तर को सुधारेगा. अब नए सत्र में हमारा मकसद साढ़े छह लाख बच्चों को स्कूल में दाखिला करवाना है”

लेकिन आकड़े बताते हैं कि सुविधाओं में कमी और स्कूलों के दूर-दराज के इलाके में होने की वजह से 2011 से 2012 के बीच एक साल में स्कूल छोड़ने वाले बच्चों की संख्या 64,860 से बढ़कर 76204 हो गई है.

पूर्व शिक्षा मंत्री और कांग्रेस के विधायक सत्यनारायण शर्मा का कहना है, “सरकार का यह प्रयोग सभी के लिए शिक्षा के कल्याणकारी उद्देश्य के ख़िलाफ़ है. आदिवासियों में भी इस क़दम को लेकर गुस्सा है.”

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