उन्होंने कहा कि जनसंख्या के 40 फीसदी लोग गरीबी की रेखा के नीचे रहते हैं, जो निरक्षर हैं और उनके पास मूल अवसर और संभावनाएं भी नहीं है, जिससे वे आर्थिक रूप से सशक्त नहीं हो सके। उन्होंने कहा कि राज्य विधि प्रकोष्ठ और नालसा को खास तौर से अनूसूचित जाति, जनजातियों और वंचित तबकों को जागरूक करने और न्याय प्रदान करने के लिए मिलकर काम करना चाहिए।
उन्होंने कहा कि नियमों के मुताबिक जज का काम निर्णय देना है लेकिन पिता को अपने बेटे को पति-पत्नी को एक दूसरे को तथा सांसद या विधायकों को उनके क्षेत्रों के लोगों के साथ न्याय करना चाहिए। उन्होंने कहा कि हमारा लक्ष्य समाज के उपेक्षित तबकों की मदद करना होना चाहिए। समाज में अन्याय को बर्दाश्त नहीं किया जाना चाहिए। जस्टिस ठाकुर ने कहा कि समाज के लोगों को न्याय दिलाने में गरीबी आड़े नहीं आनी चाहिए।
जनजातियों को जानकारी नहीं
इस मौके पर त्रिपुरा के मुख्य न्यायाधीश दीपक गुप्ता ने कहा कि गुवाहाटी के एक एनजीओ द्वारा किए गए सर्वे के मुताबिक जनजातियों के 86 प्रतिशत लोगों को कानून की जानकारी ही नहीं है।