चीन से आगे जाने का मतलब- मधुरेन्द्र सिन्हा

बीती सदी के नब्बे के दशक में जब जर्जर भारतीय अर्थव्यवस्था को तत्कालीन प्रधानमंत्री पी.वी. नरसिंहराव के वित्त मंत्री ने अमरबूटी पिलाई थी, तो किसी को एहसास भी नहीं था कि यह दुनिया की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्थाओं में शुमार हो जाएगी। विदेशों में बने टीवी, फ्रिज को देखकर ललचाते हुए मध्यवर्ग ने सोचा भी नहीं था कि भारत ऐसे सामान के सबसे बड़े उत्पादकों में से एक बन जाएगा। यह कमाल था हमारी जीडीपी की दर में भारी बढ़ोतरी का, जिसके बारे में पहले कोई चर्चा भी नहीं करता था या यों कहें, जिसके बारे में ज्यादातर लोग जानते भी नहीं थे। जब लोगों ने जानना शुरू किया, तो उन्हें यह देखकर हैरानी हुई कि तेजी के रथ पर सवार चीन कहां से कहां जा पहुंचा है।

जाहिर है कि उसके बाद जीडीपी दर की बढ़ोतरी के बारे में भारत में चर्चा जोर पकड़ने लगी और अब कहा जाने लगा है कि जीडीपी दर में वृद्धि के मामले में भारत चीन से आगे जा निकला है! यह बात लोगों को हैरान कर रही है कि जीडीपी विकास के मामले में भारत न सिर्फ चीन से आगे निकल गया है, बल्कि आने वाले समय में वह आगे ही रहेगा। यह हैरतअंगेज, लेकिन लगभग वास्तविक तथ्य सभी भारतीयों को आह्लादित कर रहा है। मगर लाख टके का सवाल है कि क्या इन आंकड़ों में कोई सच्चाई है? अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ) और विश्व बैंक इस मामले में भारत की तरफदारी क्यों कर रहे हैं? ऐसे कई सारे सवाल हैं, जिनके जवाब तलाशने होंगे, यह साबित करने के लिए कि भारतीय अर्थव्यवस्था के विकास की दर सचमुच चीन से ज्यादा है।

फिलहाल हमारे पास जो आंकड़े हैं, उसके मुताबिक, जनवरी से मार्च की अवधि में हमारे जीडीपी के विकास की दर 7.5 प्रतिशत थी, जबकि इसी अवधि के दौरान चीन की विकास दर सात प्रतिशत। यानी कि हम इस दौड़ में चीन से आगे हो गए। यह बात तो सारी दुनिया जानती है कि चीन में तेजी का वह दौर अब खत्म हो गया है, जो पहले देखने को मिला था। वहां विनिर्माण उद्योग में अब मंदी आ गई है और खरीदार बाजारों से दूर होते जा रहे हैं। इसके विपरीत भारत में औद्योगिक उत्पादन पहले से बढ़ा है और सेवा क्षेत्र में हमने अच्छी तरक्की की है। यदि आंकड़ों को मानें, तो 2014-15 में जीडीपी की विकास दर 7.3 प्रतिशत रही, जबकि सरकारी अनुमान 7.4 प्रतिशत था। इस दौरान चीन के जीडीपी की विकास दर 7.5 प्रतिशत थी।

इन आंकड़ों को देखने के बाद कहा जा रहा है कि यह अर्थव्यवस्था की सच्चाई नहीं बयां करते, क्योंकि ये विकास की सही तस्वीर नहीं पेश करते। इनमें आंकड़ों की बाजीगरी है, जो हकीकत से दूर है। दरअसल विकास का पैमाना सिर्फ इनसे ही तय नहीं होता। वह अर्थव्यवस्था में निवेश, कर्ज में उठाव, रोजगार वगैरह सभी से जुड़ा है और इन सभी में तेजी के लक्षण नहीं दिख रहे हैं। विकास को मापने का तरीका क्या हो, यह कहना मुश्किल है। यह इस बात पर निर्भर करता हैकि आप किस तरह के संकेतों को देख रहे हैं। अब भी निर्माण, बैंकिंग और जन प्रशासन के क्षेत्र में उत्साहवर्धक बदलाव नहीं दिख रहा है। उत्पादन क्षेत्र में जो सुधार हुआ है, वह भी बहुत ज्यादा नहीं है। और इसलिए प्रधानमंत्री मोदी ‘मेक इन इंडिया’ के माध्यम से इस पर जोर दे रहे हैं।

दरअसल जीडीपी की विकास दर तय करने वाले आंकड़े काफी हद तक भरमा रहे हैं। पहले ये आंकड़े सिर्फ दो हजार कंपनियों के मुनाफे-घाटे पर ध्यान देते थे, जो रिजर्व बैंक की तिमाही रिपोर्ट से लिए जाते थे। लेकिन अब इनकी तादाद बढ़ाकर पांच लाख कर दी गई है। इससे भी काफी फर्क पड़ा है। लेकिन इन कंपनियों को इसमें शामिल करने से कई तरह की परेशानियां आ सकती हैं, जैसे कि इनमें से ज्यादातर के कारोबारी आंकड़े समय पर नहीं मिलते हैं और कई बार तो उन पर संदेह होता है। ऐसे में जीडीपी के आंकड़ों पर भी फर्क पड़ेगा और समय-समय पर उनमें बदलाव करना होगा।

अब अप्रैल महीने के आंकड़े आ गए हैं, जिनसे पता चल रहा है कि कारखानों में उत्पादन और अन्य क्षेत्र में विकास बढ़ा है। अप्रैल में कारखानों, खदानों और अन्य सेवाओं में विकास दर 4.1 प्रतिशत थी, जबकि मार्च में यह 2.5 प्रतिशत ही थी। इससे यह भी पता चलता है कि देश की आर्थिक गतिविधियों में तेजी आई है। सरकार को इससे निश्चय ही राहत मिली है। लेकिन महंगाई का एक नया दौर भारतीय उपभोक्ताओं को सताने के लिए आ पहुंचा है। दालों-तेलों और फल-सब्जियों की कीमतें स्थिर रहने के बाद अब फिर तेजी से बढ़ने लगी हैं। अगर मानसून की बारिश ने साथ नहीं दिया, तो इसका सीधा असर अर्थव्यवस्था और फिर जीडीपी पर पड़ेगा। कृषि क्षेत्र के विकास की दर देश के भविष्य का निर्धारण करेगी, क्योंकि देश की आधी आबादी आज भी उसी पर निर्भर है। दूसरी ओर, महंगाई विकास की गति को धीमा कर सकती है। महंगाई में आधे प्रतिशत की बढ़ोतरी जीडीपी विकास की दर में उतनी ही कटौती कर सकती है।

 

जहां तक चीन की बात है, तो उसकी जीडीपी विकास दर में पहले ही 1.3 फीसदी की गिरावट आ चुकी है और वह थोड़ी मंदी की चपेट में आ गया है। वहां वस्तुओं की कीमतें लगातार बढ़ी हैं और मांग घटी है। वहां विनिर्माण क्षेत्र उस शीर्ष पर जा पहुंचा है, जहां से आगे जाने का रास्ता बंद है। इसलिए चीन की विकास दर में अब फिर से वह तेजी आने की संभावना नहीं है। वहां की सरकार सामान की घटती खपत से परेशान है। उनमें गिरावट आ रही है, जिसका असर कारखानों पर पड़ रहा है। पर यह भी सच है कि चीन की अर्थव्यवस्था का आकार भारत से चार गुना ज्यादा है। 
आंकड़े तो आंकड़े ही होते हैं। तरक्की की तस्वीर तो खेत-खलिहानों से लेकर महानगरों तक दिखनी चाहिए। तभी माना जाएगा कि हम चीन से आगे निकल रहे हैं।

 

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