नई दिल्ली। दिल्ली में वायु प्रदूषण इतना बढ़ गया है कि वह रोजाना 80 जिंदगियां लील रहा है। अंतरराष्ट्रीय स्तर पर किए गए एक अध्ययन के लेखकों ने मंगलवार को जारी रिपोर्ट में संकेत दिया कि रेस्पिरेबल पर्टिकुलेट मैटर (PM2.5) दिल्ली में समयपूर्व होने वाली 10,000 से 30,000 मौतों के लिए जिम्मेदार हो सकता है।
यह अध्ययन इन्वायरोमेंटल साइंस एंड टेक्नोलॉजी जर्नल में प्रकाशित किया गया है। इसमें बताया गया है कि अधिकांश मौतें हार्ट अटैक और स्ट्रोक के कारण हुई हैं। विशेषज्ञों का कहना है कि यदि विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) द्वारा तय मानकों के स्तर पर दिल्ली की हवा को स्वच्छ किया जा सके, तो इन मौतों की संख्या में 85 फीसद की कमी की जा सकती है।
यह अध्ययन यूनिवर्सिटी ऑफ टेक्सास के जोशुआ एस एप्टे, यूनिवर्सिटी ऑफ मिनिसोट के जूलियन डी मार्शल, हेल्थ इफेक्ट्स इंस्टीट्यूट के एरॉन जे कोहेन और यूनिवर्सिटी ऑफ ब्रिटिश कोलंबिया के माइकल ब्रॉर ने किया है। रिपोर्ट के अनुसार यदि डब्ल्यूएचओ के मानकों का पालन हो सके, तो देश में सालाना समयपूर्व होने वाली 4 लाख मौतों को रोका जा सकता है।
अध्ययन में चेतावनी दी गई है कि यदि वर्तमान में पीएम 2.5 के स्तर को कम करने के लिए कोई कोशिश नहीं की गई, तो वायु प्रदूषण के कारण होने वाली मौतों की संख्या देश में 20 से 30 फीसद तक बढ़ सकती है। वैज्ञानिकों का कहना है कि दिल्ली में पीएम 2.5 के स्तर का औसत माध्य करीब 150 माइक्रोग्राम्स पर क्यूबिक मीटर था। यह राष्ट्रीय मानक से चार गुना और डब्ल्यूएचओ के मानक के अनुसार 15 गुना अधिक है।
अध्ययन में पाया गया है कि यदि वायु प्रदूषण को कम करके हवा की गुणवत्ता डब्ल्यूएचओ के मानक 10 माइक्रोग्राम पर क्यूबिक मीटर तक लाई जा सके, तो दुनियाभर में समयपूर्व होने वाली 21 लाख मौतों को रोका जा सकता है। अध्ययन के सह-लेखक एप्टे के अनुसार, वायु प्रदूषण के कारण सांस की बीमारियों से नहीं, बल्कि हृदय की बीमारियों और स्ट्रोक के कारण मौतें होती हैं।