छत्तीसगढ़:केंद्र से तालमेल नहीं, राज्य में अल्पसंख्यक अभी भी पिछड़े

रायपुर। अल्पसंख्यकों के लिए चल रही कल्याणकारी योजनाओं में राज्य और केंद्र सरकार के बीच बेहतर समन्वय न होने से समुदाय के लोगों जीवन स्तर अभी भी पिछड़ा हुआ है। अल्पसंख्यकों के शिक्षा, स्वास्थ्य, रोजगार, प्रशिक्षण, उत्पादक ऋण के लिए हर साल करोड़ों रुपए फूंका जा रहा है, बावजूद अल्पसंख्यकों को पिछड़ेपन से छुटकारा नहीं मिल पाया है।

राजधानी में मुस्लिम और ईसाई परिवारों पर किए गए अध्ययन में पता चला कि शहर में ही मुस्लिम समुदाय में शिशु मृत्यु दर 58.8 है और मातृ मृत्यु दर 25.4 है, वहीं ईसाइयों में शिशु मृत्यु दर 49.2 है और मातृ मृत्यु दर 9.7 है, जो कि उनकी बदहाली बयां कर रही है।

फैक्ट फाइल

– 77, 963 मुस्लिम व 16,857 ईसाई रायपुर में

13, 951 गांव और 64,012 शहरी मुस्लिम

4721 गांव और 12,136। शहरी ईसाई

947 दोनों समुदाय के परिवारों पर अध्ययन

168 ईसाई व 779 मुस्लिम परिवारों में अध्ययन

पंडित रविशंकर शुक्ल यूनिवर्सिटी के अर्थशास्त्र अध्ययनशाला की ओर से रायपुर अल्पसंख्यकों (मुस्लिम और ईसाई) की सामाजिक और आर्थिक समस्या पर प्रोफेसर डॉ. रोहणी प्रसाद के मार्गदर्शन में स्कॉलर प्रियंका कुकरेजा के अध्ययन में ये दावा किया गया है।

नईदुनिया ने संवाददाता ने शहर के दो इलाकों में मुस्लिम और ईसाई परिवार की यथास्थिति जानने पड़ताल की तो कमोबेश यही परिणाम सामने आया है। अल्पसंख्यकों में कमजोर वर्गों के लिए विकास और कल्याणकारी योजनाओं के क्रियान्वयन में तेजी लाने की जरूरत है। अल्पसंख्यक वर्ग के छात्रों के लिए विशेष स्कॉलरशिप, परिवहन परमिट, खनिज पट्टों का आवंटन, प्रधानमंत्री का 15 सूत्री कार्यक्रम आंगनबाड़ी केंद्रों के जरिए कुपोषण कम करने और शिक्षा स्तर को सुधारने के लिए कई योजनाएं चल रही हैं।

केस 01

राजधानी के पंडरी से लगे कालीनगर में मुस्लिम परिवार की शबाना बेगम(परिवर्तित नाम)के पति गुजर गए हैं। उनकी पांच बेटिया हैं। इनमें दो बेटियों की शादी हो चुकी है। शवाना और उनकी बेटी दूसरों के घर बर्तन मांजकर और मजदूरी कर रही हैं। केवल एक बेटी को ही पढ़ा रही हैं। एक बेटा भी बीमारी से गुजर गया। यहां रहने वाले दूसरे मुस्लिम परिवार में भी कमोबेश आर्थिक स्थिति ठीक नहीं है। सभी मजदूरी कर गुजर-बसर कर रहे हैं।

केस 02

पंडरी झंडा चौक में रहने वाले ईसाई परिवार में सुरूवाली(परिवर्तित नाम) अपने दो बेटियों के साथ मजदूरी और दूसरों के घर काम करके अपना गुजर-बसर कर रहे हैं। घर की माली हालत ठीक नहीं है। केंद्र की कौशल विकास योजना इन घरों तक नहंी पहुंची है। दूसरे ईसाई परिवार की भी यही हालत है।

168 ईसाई परिवार की स्थिति

साक्षरों की संख्या 342

नामांकन की संख्या 191

ड्रॉप आउट दर 141

जटिल प्रसव 100प्रतिशत

स्वयं के स्वामित्व वाले मकानों की संख्या 121

किराए के घरों की संख्या 47

शिशु मृत्यु दर 20

मातृ मृत्युदर 36

व्यापार और नौकरी के बीच का अनुपात 72ः27

779 मुस्लिम परिवार की स्थिति

साक्षरों की संख्या 780

नामांकन की संख्या 788

ड्रॉप आउट दर 60

जटिल प्रसव 100 प्रतिशत

स्वयं के स्वामित्व वाले मकानों की संख्या 387

किराए के घरों की संख्या 382

शिशु मृत्यु दर 88

एमएमआर 127

व्यापार और नौकरी के बीच का अनुपात 50ः50

मुस्लिमों की स्थिति

शिशु मृत्यु दर 58.8 व मातृ मृत्यु दर 25.4

ऊंचाई और महिलाओं के वजन क्रमशः 151.1 सेमी और 20.5 बीएमआई

साक्षरता दर 59.1 व साक्षरता में जेंडर गैप 17.50प्रतिशत

शिक्षित स्नातकों का अनुपात 8.71 प्रतिशत

स्वामित्व वाले मकान 45.03

किराए के घरों 43.74

घरों में शौचालय की सुविधा 80.33

मकानों 81.06 में पानी की सुविधा है

ईसाइयों की स्थिति

शिशु मृत्यु दर 49.2 व मातृ मृत्यु दर 9.7

ऊंचाई और महिलाओं के वजन क्रमशः 152.1 सेमी 21.4 बीएमआई

साक्षरता दर 80.1और साक्षरता 21.4 प्रतिशत

शिक्षित स्नातकों का अनुपात 3.6 प्रतिशत

स्वामित्व वाले मकान 51.64

किराए के घरों 33.91

मकानों 67.49 में शौचालय की सुविधा

मकानों 82.84 में पानी की सुविधा

शिक्षा, चिकित्सा से लेकर कई योजनाएं अल्पसंख्यकों के लिए चल रही हैं , क्रियान्वयन में तेजी से ला रहे हैं।

– के मुरूंगन, सचिव, अल्पसंख्यक विकास विभाग

केंद्र की योजनाओं पर लगातार निगरानी की जा रही है, ये बात सही है कि अभी भी कुछ क्षेत्रों में विकास कम है फिर भी विकास हुआ है।

– एमआर खान, सचिव, राज्य अल्पसंख्यक आयोग

राज्य में 2001 के बाद अल्पसंख्यकों के सामाजिक और आर्थिक समस्याओं को लेकर अध्ययन कराया गया है, इसमें जो तथ्य आए हैं, उनके मुताबिक अल्पसंख्यकों का अभी भी बेहतर विकास नहीं हो पाया है।

– डॉ. रोहणी प्रसाद, रिसर्च गाइड, रविवि।

अल्पसंख्यकों के पिछड़ेपन पर केवल सरकार को दोषी नहीं ठहराया जाना चाहिए। ये जरूर है कि केंद्र और राज्य अल्पसंख्यक आयोग एवं विभाग के बीच योजनाओं के लिए बेहतर समन्वय नहीं बन पाया है।

– प्रियंका कुकरेजा, रिसर्च स्कॉलर

 

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