अप्रैल, 2015 में थोक मूल्य आधारित महंगाई की दर शून्य से 2.65 फीसद नीचे थी। मई में यह थोड़ी बढ़ी है लेकिन अभी भी शून्य से 2.34 फीसद नीचे है। यदि मोदी सरकार के कार्यकाल के एक वर्ष की बात करें तो मई, 2014 में महंगाई की दर 6.18 फीसद थी। महंगाई को अपना प्रमुख चुनावी मुद्दा बनाने वाली भाजपा इस बात पर संतोष जता सकती है कि उसके कार्यकाल में महंगाई काफी कम हुई है।
दाल, प्याज के अलावा मीट, अंडा, फलों और दूध जैसे प्रोटीन उत्पादों की कीमतों में तेजी का रुख है। जानकारों का कहना है कि सरकार को अब इन उत्पादों की आपूर्ति पक्ष पर ध्यान देना चाहिए ताकि देर होने से पहले इनकी महंगाई पर लगाम लग सके। दाल की आपूर्ति बढ़ाने के लिए सरकार ने हाल ही में कदम उठाए हैं। इसके बावजूद खाद्य उत्पादों की कीमतों में 3.80 फीसद का इजाफा हुआ है जिसे जानकार बहुत चिंता का विषय नहीं मान रहे।
सीआइआई के महासचिव चंद्रजीत बनर्जी का कहना है कि खाद्य उत्पादों में तीन-चार फीसद का इजाफा चिंता की बात नहीं है। यह इस बात का संकेत है कि महंगाई की दर में बहुत ज्यादा इजाफा नहीं होगा। ऐसे में रिजर्व बैंक को ब्याज दरों को घटाने को लेकर ज्यादा परेशानी नहीं होनी चाहिए क्योंकि महंगाई की दर केंद्रीय बैंक के लक्ष्यों के मुताबिक ही है। फिक्की की अध्यक्ष ज्योत्स्ना सूरी का कहना है कि मानसून के सामान्य से कम रहने का खतरा है लेकिन सरकार ने जिस तरह से इससे निपटने का खाका तैयार किया है उससे उम्मीद बंधती है कि महंगाई ज्यादा नहीं बढ़ेगी।
जानकारों का मानना है कि महंगाई की मौजूदा स्थिति के बाद अब अगर मानसून का समर्थन मिल जाए तो ब्याज दरों में तेज कटौती का रास्ता साफ हो सकता है। रिजर्व बैंक मानसून की स्थिति के स्पष्ट होने का इंतजार करेगा। उसके बाद महंगाई इसी स्तर पर रहती है तो वह ब्याज दरों को कम करने का सिलसिला तेज कर सकता है।