बादलों में रॉकेट दागकर बारिश कराने की सोच रहा है महाराष्ट्र

महाराष्ट्र सरकार राज्य के सूखे इलाकों में कृत्रिम बारिश के उद्देश्य से क्लाउड सीडिंग तकनीक के इस्तेमाल पर विचार कर रही है। इस तकनीक में शर्करा से प्रणोदित रॉकेट को बादलों में दागा जाता है, ताकि बारिश कराई जा सके।

महाराष्ट्र के राहत एवं पुर्नवास मंत्री एकनाथ खडसे ने कहा कि क्लाउड सीडिंग के क्षेत्र के विशेषज्ञों ने उनसे संपर्क किया है। उन लोगों का दावा है कि शर्करा से प्रणोदित रॉकेटों की मदद से बारिश कराई जा सकती है। खडसे के अनुसार, हमने विशेषज्ञों से कहा है कि वे हमें जलगांव में या विदर्भ या मराठवाड़ा के किसी गांव में ऐसा करके दिखाएं। ये सूखे इलाके हैं। यदि परीक्षण सफल रहता है तो सरकार इसका इस्तेमाल कर सकती है।

इंटरनेशनल स्कूल ऑफ प्रोफेशनल स्टडीज के निदेशक एवं ट्रस्टी अब्दुल रहमान वानू ने हाल ही में खडसे के समक्ष इस संदर्भ में एक प्रस्तुति दी थी। उन्होंने कहा कि राॠकेट तकनीक का परीक्षण सिंधुदुर्ग और सांगली जैसे इलाकों में किया गया है। यह जमीन से दागे जाने पर 45 किलोमीटर की दूर स्थित लक्ष्य को भेद सकता है।

वानू ने कहा कि शर्करा एक प्रेरक शक्ति के तौर पर काम करती है और रॉकेट के शीर्ष पर मौजूद सिल्वर आयोडीन बादलों में जाकर विस्फोटित हो जाता है। इससे बादलों में एक रासायनिक क्रिया होती है, जिसके चलते 40 से 60 मिनट में बारिश हो जाती है।

 

बादलों को 80 किलोमीटर दूर ले जाना संभव
वानू ने दावा किया कि इस नवीनतम तकनीक के अनुसार, किसी सूखे क्षेत्र में बारिश करवाने के लिए एक बादल को उसकी मूल स्थिति से अधिकतम 80 किलोमीटर की दूरी तक स्थानांतरित किया जा सकता है। इस प्रक्रिया के लिए 47 प्रतिशत शुद्धता वाले सिल्वर आयोडीन की जरूरत होती है, जिसे कि अर्जेंटीना से आयात किया जाना है। इस आयात के लिए हमें राज्य सरकार से अंतिम उपभोक्ता प्रमाणपत्र (एंड यूजर सर्टिफिकेट) चाहिए। प्रमाणपत्र मिलने के बाद हम आयोडीन का आयात कर सकेंगे और कृत्रिम बारिश करा सकेंगे।

 

 

सटीक तकनीक
40 से 60 मिनट में बारिश होती है बादलों में रॉकेट दागने के बाद
45 किलोमीटर दूर के लक्ष्य को भेद सकता है सिल्वर आयोडीन युक्त रॉकेट
कृत्रिम बारिश के लिए क्लाउड सीडिंग तकनीक के प्रयोग की तैयारी
विदर्भ या मराठवाड़ा में परीक्षण सफल रहा तो व्यापक इस्तेमाल होगा

 

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