जमीन में कोयला आकाश में कालिख

देश का नेतृत्व तेज आर्थिक विकास के लिए प्रतिबद्ध दिख रहा है। इसके लिए कोयला उत्पादन दोगुना-तिगुना करने की जरूरत है। पर दुर्भाग्य से अगर ऐसा हुआ तो भारत दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा कार्बन उत्सर्जक देश बन जाएगा। डेविड रोज की रिपोर्ट

वित्त वर्ष मार्च 2015 के अंत तक दुधिचुआ ने 15 मीट्रिक टन कोयला उत्पादन किया, जो ब्रिटेन के कुल कोयला उत्पादन से भी अधिक है। दुधिचुआ सिंगरौली कोयला-क्षेत्र की 16 खदानों में से एक है। एक को छोड़ कर सभी खदानें सरकार संचालित नार्दर्न कोलफील्ड्स लिमिटेड के अधीन हैं, जो कोल इंडिया की सहयोगी कंपनी है। सिंगरौली कोयला आधारित कई थर्मल बिजली संयंत्रों का घर है और कुछ खदानें तो उनकी दहलीज पर हैं। बिजली उत्पादन की उनकी कुल क्षमता करीब 20 गीगावॉट है, जो भारत की कुल राष्ट्रीय उत्पादन क्षमता का करीब दस प्रतिशत है।

सिंगरौली भारत के सबसे बड़े ऊर्जा केंद्रों में से एक हो सकता है, पर यह उपेक्षित है। खदान और पावर स्टेशनों के अलावा यह समूचा कोयला क्षेत्र मुट्ठी भर शहरों, गरीबी से जर्जर गांवों और कुछ उन समृद्ध कॉरपोरेट ‘कॉलोनियों’ का ठिकाना है, जिनके अपने स्कूल, क्लीनिक और खेल के मैदान हैं। पिछले साल इस कोयला-क्षेत्र का कुल उत्पादन करीब 87 मीट्रिक टन रहा।

सिंगरौली पर दुनिया भर की निगाहें टिकी हैं। 2013 में संयुक्त राष्ट्र के इंटरगवर्नमेंटल पैनल ऑन क्लाइमेट चेंज (आईपीसीसी) ने बताया था कि वैश्विक औसत तापमान में दो डिग्री सेल्सियस से अधिक की वृद्धि रोकने के लिए दुनिया को कार्बन-उत्सर्जन के दृष्टिकोण ‘कार्बन बजट’ को सख्ती से लागू करना चाहिए। आईपीसीसी के अनुसार, जीवाश्म ईंधन को जलाने की मौजूदा दर इसे 25 वर्षों के अंदर खत्म कर देगी।

 

भंडार और अभाव 
भारत दुनिया का पांचवां सबसे बड़ा कोयला भंडार है, पर इसके पास प्राकृतिक गैस जैसे काफी कम स्वच्छ जीवाश्म ईंधन हैं। करीब 1.3 अरब आबादी में से एक-तिहाई के पास बिजली की सुविधा नहीं है। कोयला मंत्रालय के सचिव अनिल स्वरूप बताते हैं कि पिछले साल निजी और सरकार संचालित खदानों से कुल उत्पादन 620 मीट्रिक टन रहा, जिसमें 85 प्रतिशत से अधिक बगैर सुरंग खोदे मिला। ऊपर से 400 टन आयात किया गया। वह आगे जोड़ते हैं कि सिंगरौली और दूसरी जगहों पर उत्पादन में तेज वृद्धि लाई जाएगी। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी उत्पादन बढ़ाने के पक्ष में हैं। दरअसल मोदी सकल घरेलू उत्पाद विकास दर को आठ से 10 प्रतिशत पर फिर से ले जाना चाहते हैं। एक दशक तक यानी 2011 तक भारत इस विकास-दर के साथ था।

 

स्वरूप कहते हैं, ‘हम 2020 तक भारत में कोयला उत्पादन को दोगुना देख रहे हैं और आयात पर निर्भरता घटाना चाहते हैं।’ उन्होंने कहा कि इसके बाद उत्पादन में सालाना 1.5 अरब टन की वृद्धि जारी रहेगी, जिसका ज्यादातर हिस्सा कोयला आधारित ऊर्जा संयंत्रों में जलाया जाएगा। बीते छह महीनों में सरकार ने 41 नई खनन परियोजनाओं को पर्यावरणीय मंजूरी दी है। स्वरूप कहते हैं, ‘आज से साल 2020 तक हर महीने एक नई खदान शुरू होगी।’

 

बीते अगस्त में, भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने यह फैसलासुनाया था कि साल 2010 से पहले सरकार ने जो 200 से अधिक खान लाइसेंस दिए थे, वे गैर-कानूनी थे। इस फैसले से कई परियोजनाएं बंद होने को मजबूर हुईं। मोदी सरकार ने जो कानून बनाया, उसमें यह प्रावधान है कि सबसे अधिक बोली लगाने वाले को ही कोयला ब्लॉक आवंटित किए जाएंगे। नई खदान को बढ़ावा देने से राज्य सरकारों को काफी लाभ होता है। स्वरूप के मुताबिक, ‘अब तक नीलाम हुए 209 कोयला ब्लॉक से 1,649 अरब रुपये आए, जो अगले 30 वर्षों तक राज्यों के खजाने को समृद्ध रखेंगे। इससे उनकी अर्थव्यवस्था की कायापलट हो जाएगी। उन्हें सचमुच में पूंजी की जरूरत थी। अब वे इसे हासिल करेंगे।’
सघन वन क्षेत्र के नीचे भी कई कोयला भंडार हैं। उनमें से कुछ मध्य प्रदेश में सिंगरौली के पास हैं, पर ज्यादातर छत्तीसगढ़ और झारखंड में हैं। वहां जिनकी जमीनें ‘अधिग्रहण’ के दायरे में आएंगी, वे देश के सबसे गरीब लोग हैं, ज्यादातर आदिवासी। स्वरूप जोर देकर कहते हैं कि जो भारत को नया कोल बूम देने की तैयारी कर रहे हैं, उनके लिए पर्यावरण सुरक्षा सबसे बड़ी प्राथमिकता है। वह कहते हैं कि ‘जब भी मैं सहयोगियों से बातें करता हूं तो उनसे कहता हूं कि पर्यावरण पर समझौता न हो, पर अधिक कोयला उत्पादन का कोई व्यावहारिक विकल्प नहीं है। ऊर्जा की जरूरतें पूरी की ही जानी हैं।’

 

 

कोयले की कालिख
कई पश्चिमी पर्यावरणविदों के अनुसार, भारत द्वारा कोयले का इस्तेमाल करना अभिशाप की तरह है। वे इस साल पेरिस में संयुक्त राष्ट्र जलवायु परिवर्तन सम्मेलन में कार्बन उत्सर्जन कटौती के मुद्दे पर सहमति चाहते हैं।

 

वैसे पर्यावरण और विकास के बीच संतुलन का मुद्दा हर विकासशील देश के सामने है, लेकिन भारत के विशाल क्षेत्रफल को देखते हुए उसका मान जाना असाधारण महत्व रखता है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भारत के ‘विकास के अधिकार’ को कई बार दोहरा चुके हैं। पर्यावरण मंत्री प्रकाश जावड़ेकर ने राज्यसभा में कहा, ‘हमारा उत्सर्जन बढ़ेगा, क्योंकि हम विकसित नहीं हैं और इस धरती पर मौजूद हर व्यक्ति को विकास का अधिकार है।’ हालांकि बड़े क्षेत्रफल व बड़ी जनसंख्या के कारण भारत दुनिया के दस सबसे बड़े कार्बन-उत्सर्जक देशों में से एक है। दुनिया का तापमान बढ़ाने में अब तक भारत का योगदान करीब सात प्रतिशत रहा है तो वहीं अमेरिका का 20 प्रतिशत और ब्रिटेन का पांच प्रतिशत। जावड़ेकर के नजरिये से आने वाले वर्षों में वैश्विक कार्बन उत्सर्जन में कटौती की जिम्मेदारी पश्चिमी देशों की है।

इस जिद के पीछे कुछ कड़वे तथ्य हैं। भारत दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र के तौर पर जाना जाता है और अक्सर कहा जाता है कि वह सबसे बड़ा मध्यवर्ग समेटे है, लेकिन पश्चिम की तुलना में यहां इसका अर्थ अलग है। सेंटर फॉर पॉलिसी रिसर्च में जलवायु मुद्दे के प्रमुख नवरोज दुबाश कहते हैं कि दस प्रतिशत अमीर भारतीयों में से एक-तिहाई घरों में रेफ्रिजरेटर नहीं है।

वैसे, वह वैश्विक उत्सर्जन में कटौती की जरूरत को मानते हैं। पर वह कहते हैं कि रेफ्रिजरेटर की सीमित पहुंच आपको गंभीरता का अंदाजा करा देती है। दुबाश कीएकरिपोर्ट कहती है, ‘साल 2030 तक कोयला का इस्तेमाल ढाई से तीन गुना बढ़ने का अनुमान है।’

 

बहरहाल, सिंगरौली में खनन व कोयला दहन से बढ़े ‘पर्यावरणीय बोझ’ के निशान अभी से दिख रहे हैं। 
साभार : द गार्जियन

 

 

सरकार का पक्ष
अगर आज दुनिया 0.8 डिग्री सेल्सियस अधिक गरम है, तो यह हमारी गलती नहीं है। यह उनकी ऐतिहासिक जिम्मेदारी है, जिन्होंने औद्योगिक क्रांति के साथ कार्बन उत्सर्जन की शुरुआत की।
– प्रकाश जावड़ेकर, पर्यावरण मंत्री

 

 

वैश्विक कार्बन उत्सर्जन में कटौती की जरूरत है, लेकिन भारत की ऊर्जा जरूरतों को ध्यान में रखते हुए उसे कार्बन उत्सर्जन का रास्ता मिलना चाहिए।
– नवरोज दुबाश, जलवायु मुद्दे के प्रमुख, 
सेंटर फॉर पॉलिसी रिसर्च

 

 

15 साल में भारत में तीन गुना बढ़ सकता है उत्सर्जन
अनुमान है कि देश का कार्बन उत्सर्जन 2030 तक दो से तीन गुना के बीच बढ़ सकता है और अगले दशक में भारत दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा कार्बन उत्सर्जक देश हो सकता है। अनुमान यह भी है कि देश में हर साल चार अरब से 5.7 अरब टन के बीच कार्बन डाइऑक्साइड का उत्सर्जन होगा। यह अमेरिका के कार्बन उत्सर्जन के आंकड़े को पार कर जाएगा, जिसका कार्बन उत्सर्जन चीन के बाद सबसे ज्यादा है।

 

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