कर्ज में दबी वितरण कंपनियां ज्यादा बिजली नहीं खरीद रही हैं। इससे पावर प्लांट क्षमता से काफी कम बिजली पैदा कर रहे हैं। इससे आम जनता को भरी गर्मी में घंटों बगैर बिजली के रहना पड़ रहा है। हालात में सुधार नहीं होने की वजह से अगले वर्ष जनता पर बिजली बिल में बड़ी वृद्धि का बोझ भी पड़ सकता है।
इसे पूरे हालात को उद्योग जगत भी काफी गंभीर बता रहा है। उद्योग चैंबर एसोचैम ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से आग्रह किया है कि वह हस्तक्षेप करें और बिजली वितरण में सुधार के लिए राजनीतिक सहमति बनाने को कदम उठाएं। अगर ऐसा नहीं किया गया है तो देश के बिजली वितरण व्यवस्था के धवस्त होने से कोई नहीं रोक सकता है।
चैंबर ने कहा है कि बिजली वितरण कंपनियां अपनी क्षमता का महज 65 फीसद उपयोग कर रही हैं। दरअसल पहले से कर्ज में दबी ये कंपनियां बिजली खरीद नहीं रही हैं। इससे पावर प्लांटों में बिजली बनाई नहीं जा रही है। नतीजतन प्लांट की लागत बढ़ रही है। इसकी वजह से ही आम जनता को बिजली कटौती का सामना भी करना पड़ रहा है।
साढ़े पांच लाख करोड़ का बोझ
बिजली वितरण कंपनियों पर अभी तीन लाख करोड़ रुपये से ज्यादा का कर्ज है, जबकि इनका संयुक्त तौर पर कुल घाटा 2.52 लाख करोड़ रुपये के करीब है। इस तरह से बिजली वितरण कंपनियों पर 5.52 लाख करोड़ रुपये का अतिरिक्त बोझ है।
उत्तर प्रदेश, राजस्थान, हरियाणा, पंजाब, महाराष्ट्र की बिजली वितरण कंपनियों की स्थिति सबसे ज्यादा खराब है। एसोचैम के मुताबिक सबसे बड़ी समस्या यह है कि राज्य सरकारें बिजली वितरण में अपेक्षित सुधार नहीं कर रहीं हैं।
उत्तर प्रदेश के आंकड़े बताते हैं कि वहां 3.54 करोड़ आवास हैं, लेकिन 1.14 घरों में ही मीटर से बिजली कनेक्शन दिए गए हैं। इनमें से भी सिर्फ 78 लाख घरों से रेगुलर बिजली के बिल का भुगतान होता है। इस तरह से 100 लोगों की बिजली आपूर्ति का बोझ महज 35 फीसद लोग उठा रहे हैं। देश के अधिकांश राज्यों की स्थिति ऐसी ही है।
बिजली दरों में होगी तगड़ी वृद्धि
जानकारों के मुताबिक वितरण क्षेत्र की दुर्दशा की वजह से ही चालू वित्त वर्ष के दौरान अधिकांश राज्यों में विद्युत दरों में 15 से 25 फीसद की वृद्धि की जा रही है। दिल्ली में अगले कुछ दिनों के भीतर 20 फीसद की बिजली वृद्धि की जा सकती है। कनार्टक और बंगाल पहले ही ऐसा कर चुके हैं।