बिहार के गया जिले के पट्टी टोला गांव के पट्टी बंगला नामक महादलित टोला के लोग आज भी इस मिथ के शिकार हैं कि बच्चों को टीका लगवाने से वे बीमार पड़ जाएंगे। इसलिए जब कभी भी वहां सरकारी बाल टीकाकरण कैंप लगाए जाते हैं, तो माता-पिता उस दिन बहाने बनाकर अपने बच्चों को वहां नहीं ले जाते। यह समस्या कमोबेश देश की कई अन्य गरीब बस्तियों में भी है और सबूतों से पता चलता है कि जिन बच्चों को कोई भी टीका नहीं लगता, वे बचपन में होने वाली सभी बीमारियों और विकलांगता के लिहाज से सबसे ज्यादा संवेदनशील होते हैं। लगभग 30 प्रतिशत बच्चे हर साल संपूर्ण टीकाकरण का लाभ उठाने से चूक जाते हैं। लिहाजा हर साल पांच लाख बच्चे उन बीमारियों से मर जाते हैं, जिनका इलाज टीकाकरण से संभव है।
इस तस्वीर को बदलने व मुल्क के आखिरी बच्चे तक पहुंचने के लिए केंद्र सरकार ने ‘मिशन इंद्रधनुष’ नामक मुहिम शुरू किया है। इसके तहत दो वर्ष तक के सभी बच्चों और गर्भवती महिलाओं को विशेष टीकाकरण कैंपों में कवर किया जाएगा। बच्चों को सात जानलेवा बीमारियों से बचाने वाले सात टीके लगाए जाएंगे। पहले चरण में देश के 201 जिलों को चुना गया है। सरकार का लक्ष्य वर्ष 2020 तक 90 प्रतिशत बच्चों को संपूर्ण टीकाकरण के दायरे में लाना है, जबकि 2014 में 65 प्रतिशत बच्चे ही इसका लाभ उठा सके। सवाल यह है कि क्या यह लक्ष्य हासिल किया जा सकता है? मिशन इंद्रधनुष को सफल बनाने में जमीनी स्तर की स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं, चाहे वह आंगनबाड़ी कार्यकर्ता हों या एएनएम हों या आशा, की भूमिका अहम है। लेकिन हालत यह है कि देश में आंगनबाड़ी कार्यकर्ता व सहायिकाओं के सवा दो लाख पद खाली पड़े हैं।
हजारों की तादाद में एएनएम के पद खाली हैं। अकेले बिहार में ही जरूरत से 25 प्रतिशत एएनएम कम हैं। जहां एएनएम लंबी छुट्टी पर चली जाती हैं, वहां उनके स्थान पर अस्थायी एएनएम की नियुक्ति नहीं होती। एक एएनएम पर 22 कार्यों को पूरा करने की जिम्मेदारी लादी गई है। ऐसे हालात से निपटने के लिए सरकार के पास कोई ठोस योजना नहीं है। नक्सलवाद और आतंकवाद से प्रभावित इलाकों में बच्चों तक पहुंचना उतना आसान नहीं। इस तथ्य से इनकार नहीं किया जा सकता कि पोलियो उन्मूलन में भारत को सफलता मिली है, पर यह तथ्य भी नहीं भूलना चाहिए कि पिछले चार-पांच वर्षों के दौरान संपूर्ण टीकाकरण में औसतन एक प्रतिशत सालाना की दर से वृद्धि हुई है। 2015 से 2020 तक, यानी पांच वर्षों में 65 प्रतिशत से 90 प्रतिशत वाले निर्धारित लक्ष्य को पाने का मतलब है, सात प्रतिशत सालाना की दर से वृद्धि करना। लेकिन जमीनी हकीकत के मद्देनजर एक प्रतिशत से सात प्रतिशत की सालाना वृद्धि वाला लक्ष्य हासिल करना आसान नजर नहीं आता।
(ये लेखिका के अपने विचार हैं)