इनमें गर्मी के सीजन में खरबूजा, ककड़ी के अलावा कई मौसमी सब्जियों की खेती कर रहे हैं। इस कचरे से गर्मी में भी रेगिस्तान का यह इलाका न सिर्फ हरा-भरा रहता है। श्योपुर में जिला मुख्यालय से लेकर सैकड़ों गांवों में बीड़ी बनती है। इसके लिए तेंदूपत्ता की कटिंग के बाद बच टुकड़े मजदूर घूरों पर फेंक देते हैं।
यही कचरा राजस्थान के किसान ले जाते हैं और मिट्टी के साथ मिलाकर रेत पर बिछाते हैं। बीडी पत्तों का कचरा मिट्टी में इस तरह की परत बना लेता है जिससे पानी को रेत सोख नहीं पाती। इस कारण मिट्टी में नमी बनी ही रहती है और उत्तम श्रेणी के जैविक खाद का भी काम करती है। इसके चलते इन कृत्रिम खेतों में खरबूजे और ककड़ी उगते हैं।
हम तेंदूपत्ते की कतरन मिला कचरा लाते हैं। इसे मिट्टी में मिलाकर रेगिस्तान में बिछा देते हैं। पत्ते खेत से पानी नहीं सूखने देते और खाद का काम करते हैं इसलिए इनमें खरबूजा की पैदावार अच्छी होती है। -किशनचंद कुशवाह, किसान, खंडार राजस्थान
हर साल विलुप्त हो जाते हैं खेत
बारिश में जैसे ही नदियों में उफान आता है, किनारे पर बने ये खेत विलुप्त हो जाते हैं। सर्दी के अंत में जैसे ही नदियों का जलस्तर घटता है किसान कचरा लाकर खेत बनाना शुरू करते हैं। बीड़ी के कचरे का कोई और उपयोग नहीं होता। इसलिए श्योपुर से वे या तो फ्री में या चंद पैसे देकर ये कचरा लाते हैं।
रेत में खेती करते हैं
परिषद ने इसे बंद करवा दिया। अब राजस्थान के किसान लोगों से अपने स्तर पर ही यह कचरा खरीदकर या व्यवहार में ले जाते हैं। इस कचरे से चंबल किनारे रेत में खेती की जाती है। -भोजराज सिंह स्वास्थ्य अधिकारी, नगर पालिका