नेपाल के हाल के विनाशकारी भूकंप और उत्तर भारत की पृथ्वी की सतह को आंदोलित करने वाली भूकंप की लहरों से पहले 100 वर्षों में 8 रिक्टर गहनता के पांच अत्यंत विनाशकारी भूकंप आ चुके हैं। 4 से 5 गहनता के 2836, 5-6 गहनता के 960, 6-7 गहनता के 113, 7-8 गहनता के 34 तथा 8 से ऊपर की गहनता के 5 भूकंप भारत की भौगोलिक सीमा को कंपा चुके हैं। भारत और पड़ोसी देशों की सीमा को मिलाकर देखें तो यह संरचना क्रमश: 7786, 2008, 494, 77 तथा 11 रही है। 2005 तक के इन आंकड़ों और इसके बाद के दो बड़े भूकंप के संकेत स्पष्ट हैं कि भारतीय उपमहाद्वीप का भूभाग पर्याप्त रूप से भूकंप संवेदी हैं।
भू-तकनीक की दृष्टि से भूकंप से होने वाली क्षति के विविध रूप हैं। पिछले एक पखवाड़े में नेपाल और सीमावर्ती भारतीय क्षेत्रों में 160 से अधिक भूकंप के झटकों की प्रवृत्तियों के सामाजिक अध्ययन से स्पष्ट है कि भूकंप को रोक पाना संभव नहीं है। काठमांडू घाटी के पास के सिंधुपाल चौक और उदयपुर दो क्षेत्र भूकंप के मुख्य केंद्र हैं। इनकी रेखीय दूरी भारतीय सीमा से 100 किलोमीटर के आसपास है। अत: नेपाल के तराई क्षेत्रों के साथ ही भारत के सीमावर्ती क्षेत्रों की भूकंप संवेदनशीलता स्वत: स्थापित है। भूमि की सतह (प्लेटों) का कंपन, भूकंपीय लहरों से मिट्टी की परतों की संरचना में बदलाव, इसमें मुलायम मिट्टी की परत के स्थान पर बालू का ऊपर आना या नीचे जाना शामिल है। भूगर्भ जल की स्थिति-संरचना में परिवर्तन, आधारभूत भूगर्भीय चट्टानों की स्थिति में परिवर्तन और विखंडन, मुलायम मिट्टी की परतों की जगह ‘सिल्ट" की परतों का निर्माण और मिट्टी की सतह के क्षेत्र का क्षरण जैसी भौगोलिक समस्याएं भूकंप के परिणामस्वरूप उत्पन्न् होती हैं। गहनता की दृष्टि से भूकंप के मुख्य केंद्रों में भूगर्भ में हो रही गतिविधियों का वैज्ञानिक अध्ययन सबसे महत्वपूर्ण बिंदु है, जो एक कठिन कार्य है। भारत में संबंधित अध्ययन कार्य के लिए महाराष्ट्र के कोयना क्षेत्र को चुनकर कुछ कार्य चल रहे हैं।
भूकंप की भविष्यवाणी और आपदा प्रबंधन दो ऐसे आयाम हैं, जिन पर तात्कालिक तौर पर ध्यान दिया जाना व प्रयास करना आवश्यक है। सटीक भविष्यवाणी तथा भूकंप संबंधी अध्ययन के लिए देश में स्थापित 40 भूकंप रिकॉर्डिंग केंद्र तथा हैदराबाद में स्थापित सुनामी वॉर्निंग सेंटर भूगर्भ की गतिविधियों तथा समुद्री लहरों काअध्ययन करते हैं, परंतु अभी तक सटीक भविष्यवाणी क्षमता संभव नहीं हो सकी है। अत: यह आवश्यक है कि भूकंप के खतरों से सीख लेकर हमें देश में भूगर्भीय हलचलों के अध्ययन के लिए समन्वित अनुसंधान की कार्यप्रणाली या सिस्टम विकसित करना होगा।
हिमालय क्षेत्र भूकंप संवेदी जोन है। हिमालय की चट्टानी पर्तों में निरंतर समायोजन संबंधी परिवर्तन की प्रक्रिया चलती रहती है। महाराष्ट्र के कोयना में बड़े मानवनिर्मित जलाशयों और पावर प्लांट के कारण भूगर्भीय हलचलें सामान्य हैं। कोयना में जिस प्रकार पृथ्वी की सतह के नीचे डेढ़ किलोमीटर गहराई तक चार पायलट बोर होल और नीचे लावा टाइप की चट्टानों को काटकर 6-7 किमी गहरा एक अन्य बोर होल बनाकर इसमें सेंसर लगाकर अध्ययन किया जाना है, उसी प्रकार के गहरे बोर होल और आधुनिक संयंत्रों की सहायता से काठमांडू, सिंधुपाल चौक, उदयपुर और तराई वाले भारतीय सीमा के कम से कम 12 स्थानों पर अध्ययन कर भूकंप का पूर्वानुमान संभव है।
हाल के अध्ययनों से यह ज्ञात हुआ है कि भूकंप की प्रत्येक घटना से समुद्री सुनामी नहीं उत्पन्न् होती और जब भूगर्भ की चट्टानें ऊपर-नीचे (वर्टिकल) क्रम में हिलती या विस्थापित होती हैं, तभी समुद्र की तलहटी से सुनामी की स्थितियां पैदा होती हैं।
संपूर्ण विश्व की धरती आठ मुख्य परतों (प्लेट्स) में विभाजित है। अफ्रीकी, अंटार्कटिक, इंडियन, ऑस्ट्रेलियन, यूरेशियन, नार्थ अमेरिकन, साउथ अमेरिकन, पैसिफिक प्लेटों में भारतीय भूपरत ऐसी परत या प्लेट है जो प्रत्येक वर्ष 20 सेंटीमीटर (8 इंच) की गति से उत्तर की ओर बढ़ती रही है। इस प्लेट का एशियाई प्लेट से 50 से 55 मिलियन वर्ष पहले टकराना प्रांरभ हुआ। 2000 से 3000 किलोमीटर क्षेत्रफल की इंडियन प्लेट इन सभी ज्ञात प्लेटों में सबसे अधिक तीव्र गति से गतिमान रही है। हाल के भूकंप के बाद हिमालय पर्वत श्रंखला तथा काठमांडू की सतह में जो परिवर्तन हुआ है, वह आगामी समय में भी ऐसे अनेक परिवर्तनों का संकेत है।
वस्तुत: भूकंप की भयावहता हमें डराती है, भयाक्रांत करती है। हिमालय की गोद में बसी नेपाल की काठमांडू घाटी के भूकंप ने नेपाल-भारत को ही नहीं, पूरे विश्व को उद्वेलित किया है। वैज्ञानिक पूर्वानुमान और अध्ययन यह बताते हैं कि भारत का भी 60 प्रतिशत हिस्सा और देश के कम से कम 38 नगर भूकंप संवेदी हैं। भारत से लगी 2500 किमी लंबी हिमालय श्रंखला के पास के क्षेत्रों में भूकंप से बचाव के कारगर प्रयासों और भविष्यवाणी के लिए पूरे क्षेत्र में फैला तंत्र विकसित करने की आवश्यकता है। जापान और दक्षिण-पूर्व एशिया के भूकंप संवेदी देशों के बचाव तंत्र और प्रशासनिक व्यवस्था का भी अध्ययन कर इसे भारतीय संदर्भ में परिष्कृत कर लागू किया जा सकता है।
-लेखक भारत के पूर्व सर्वेयर जनरल हैं।