एक अनुमान के मुताबिक, देश में 3.81 लाख कैदी हैं, जिनमें से 2.54 लाख विचाराधीन कैदी हैं। इनमें से एक तिहाई यानी करीब 1.27 लाख कैदियों को सजा सुनाई जा चुकी है और वे जेल में बंद हैं। इस नजरिये से देखा जाए, तो अंग्रेजों का शासन कहीं बेहतर था। उस जमाने में विचाराधीन कैदियों और दोषी करार दिए गए कैदियों का अनुपात इसका ठीक उल्टा था।
ब्रिटिश शासन के दौरान देश में करीब एक तिहाई विचाराधीन कैदी ही जेल में बंद होते थे, जबकि दोषी ठहराए गए कैदियों की संख्या दो तिहाई थी। सरकार के खुद के अनुमान के मुताबिक देश में विचाराधीन कैदी जिस अपराध में जेल में बंद किए गए हैं, यदि उनको सजा सुनाई जाती, तो उस सजा से अधिक समय वे जेल में काट चुके हैं। यह देश के कानून के खिलाफ है।
इन विचाराधीन कैदियों में से कुद छोटे-मोटे चोर हैं, जो बेल बॉन्ड की राशि भर पाने में असमर्थ होने के कारण जेल में बंद हैं। कई मामलों में तो विचाराधीन कैदी एक दशक यानी करीब 10 साल से अधिक समय जेल में बिता चुके हैं, जबकि उनका मामला सुनवाई के लिए भी नहीं गया है।
देश में अभी तक ऐसा कोई डाटा बैंक नहीं है, जिससे पता चल सके कि विचाराधीन कैदियों की संख्या कितनी है, वह कितना समय जेल में बिता चुके हैं और उन्होंने किस तरह का जुर्म किया था। पिछले साल सितंबर में सुप्रीम कोर्ट ने उन सभी विचाराधीन कैदियों को रिहा करने के लिए दिसंबर 2014 तक की समय तय की थी, जिन्होंने अपने जुर्म के लिए तय अधिकतम सजा का आधा हिस्सा जेल में काट लिया है।
कानून मंत्रालय के एक वरिष्ठ अधिकारी के मुताबिक सुप्रीम कोर्ट के इस आदेश के बाद उन्हें राज्यों से ऐसा कोई अपडेट नहीं मिला है कि कितने विचाराधीन कैदियों को रिहा कर दिया गया है।