आशीष और उनके बड़े भाई जोधपुर से करीब 20 किलोमीटर दूर पाली रोड के किनारे पड़ी अपनी पुश्तैनी जमीन का इस्तेमाल कर कोई कारोबार करना चाहते थे। उन्होंने महसूस किया कि जोधपुर और उसके आसपास में बढ़ती खेती के कारण कृषि उत्पादों के रखरखाव की जरूरत हाल के वर्षों में लगातार बढ़ती जा रही है और इसलिए पिछले साल दोनों भाइयों ने मिलकर वेयरहाउसिंग कारोबार में उतरने का फैसला किया। अपनी जमीन पर 6 वेयरहाउस बनाने के साल भर बाद दोनों अपने इस फैसले से काफी खुश हैं और जल्दी ही 4 और वेयरहाउस जोड़ने की योजना बना रहे हैं। दरअसल एग्री कमोडिटीज एक्सचेंज एनसीडीईएक्स और नाफेड तथा एफसीआई जैसी सरकारी एजेंसियों की सक्रियता के कारण वेयरहाउसिंग पश्चिमी राजस्थान के इस हिस्से में एक तेजी से बढ़ता हुआ कारोबार बनकर उभरा है।
जोधपुर, बीकानेर, जैसलमेर जैसे इलाकों में पिछले कुछ वर्षों में एक मौन क्रांति हो रही है और इसकी जमीन फैक्ट्रियों या प्रयोगशालाओं में नहीं, बल्कि खेतों में तैयार हुई है। कभी मरुस्थल से आने वाली सूखी गर्म हवाओं और बंजर जमीन से पहचाने जाने वाले इन इलाकों में खेत आज ग्वार, मूंगफली, सरसों, अरंडी जैसी नकदी फसलों की बोरियां उगल रहे हैं। और ये हालात तब तैयार हुए हैं जब पूरे राजस्थान के मरुस्थलीय क्षेत्र का 11.60 फीसदी जोधपुर जिले में पड़ता है और जैसलमेर जैसे जिले में तो बंजर जमीन की हिस्सेदारी और ज्यादा है। साल में केवल 15 दिनों में बरसात देखने वाले इस जोधपुर में करीब 62 फीसदी जमीन पर खेती होती है। साल में औसतन यहां केवल 318 एमएम बारिश ही होती है, उसके बावजूद कृषि उत्पादन में पिछले कुछ वर्षों में पश्चिमी राजस्थान के इस इलाके ने जो उपलब्धि हासिल की है, वह किसी चमत्कार से कम नहीं है। दरअसल इस इलाके से गुजरने वाली इंदिरा गांधी नहर परियोजना ने फसलों के लिए नई जमीन भी तैयार की है। राजस्थान गम प्रा. लिमिटेड के सीईओ भेरू जैन के मुताबिक, "इंदिरा गांधी नहर ने जोधपुर और इसके आसपास के क्षेत्रों में कृषि उत्पादन बढ़ाने में अहम भूमिका निभाई है। पहले ऐसी स्थिति नहीं थी, लेकिन अब एक तरह से ये पूरा क्षेत्र एक कृषि क्रांति के मुहाने पर खड़ा है और आने वाले सालों में आप इसे एक बड़े एग्रीकल्चर सेंटर के तौर पर देखेंगे।"
इस तरह की संभावनाओं के कारण जोधपुर खेती और फसलों से जुड़े व्यवसायों के एक बड़े केंद्र के रूप में उभरा है और वेयरहाउसिंग का नाम इनमें सबसे ऊपर है। जोधपुर शहर और इसके आसपास के इलाकों में पिछले करीब 5-6 वर्षों में 100 से ज्यादा वेयरहाउस तैयार हो गए हैं। वेयरहाउसिंग चेन ‘गोविंदम’ के मालिक जगदीश बजाज ने बताया, "एनसीडीईएक्स और नाफेड जैसी संस्थाएं अलग-अलग कमोडिटीज की खरीद और उनके भंडारण के क्षेत्र में अहम भूमिका निभा रही हैं, जिससे हाल के समय में वेयरहाउसिंग कारोबार में जबर्दस्त बढ़त आई है।" बजाज के वेयरहाउस में 10 लाख बोरियों के भंडारण की क्षमता है और वे उसमें विस्तार की भी योजना बना रहे हैं। पिछले कुछ वर्षों में किसानों ने यहांपारंपरिक तौर पर उपजाए जाने वाले ग्वार और गेहूं के अलावा मूंगफली, सरसों और अरंडी की भी बड़े पैमाने पर खेती शुरू कर दी है। बजाज के मुताबिक, "एग्री कमोडिटी एक्सचेंज एनसीडीईएक्स के आने के बाद से किसान मांग और पूर्ति की स्थिति के बारे में ज्यादा नहीं सोचते। उनको एक तरह से यह भरोसा है कि वे एक्सचेंज में अपनी उपज को आराम से बेच सकते हैं। इससे उनकी बुवाई का पैटर्न बदला है और अब वे खपत के लिहाज से नहीं, बल्कि बाजार और अपने मुनाफे के लिहाज से खेती करने लगे हैं।" पाली रोड पर वेयरहाउस चलाने वाले आशीष को भी बजाज की दलील में दम नजर आता है। आशीष ने कहा, "इस साल ग्वार की उपज बड़ी मात्रा में बाजार में नहीं आई है। इसकी जगह किसानों ने मूंगफली उपजाने में ज्यादा रुचि दिखाई। नैफेड ने लगभग सारी मूंगफली खरीद ली है और पूरे जोधपुर के वेयरहाउस में मूंगफली की बोरियां ही भरी पड़ी हैं।"
और किसानों को ही क्यों, वेयरहाउसिंग कारोबार के मजबूत होने से कृषि उत्पादों से जुड़े प्लांटों और उद्योगों को भी खासा फायदा हो रहा है। राजस्थान गम के भेरू जैन इसे समझाते हुए कहते हैं, "ग्वार गम और ग्वार सीड की प्रोसेसिंग में लगे हुए ज्यादा मिलर और प्लांट ओनर एनसीडीईएक्स प्लेटफॉर्म पर सक्रिय हैं क्योंकि एक्सचेंज के कारण उन्हें कमोडिटी से जुड़े अपने जोखिम को हेज करने में बहुत सहूलियत होती है।" हेजिंग के मार्फत ये मिलर और प्लांट मालिक सुनिश्चित कर सकते हैं कि हाजिर बाजार में जबर्दस्त तेजी के बावजूद ये अपने कम भाव पर किए गए कॉन्ट्रैक्ट को बिना नुकसान के पूरा कर सकें। इसी तरह वेयरहाउस में जमा माल से ये कच्चे माल की कमी की समस्या से भी पार पा सकते हैं। स्वाभाविक है कि अगर आने वाले सालों में जोधपुर और आसपास के इलाकों में कृषि उत्पादन में और बढ़ोतरी होती है, तो वेयरहाउसिंग कारोबार और बढ़ेगा और वह स्थिति किसानों और उद्योग, दोनों के लिए एक अच्छी खबर होगी।
लेखक भुवन भास्कर एग्री बिजनेस के जानकार हैं।