महिला कामगारों की अनसुनी चीख- उपासना बेहार

घरेलू महिला कामगार श्रमिकों का एक ऐसा वर्ग है, जिसका शोषण आज भी जारी है। कहने को भले ही ये कामगार हों, लेकिन इन्हें नौकरानी ही माना जाता है। इनमें से कुछ अनेक घरों में कार्य करती हैं, तो कुछ एक ही घर में सीमित समय के लिए काम करती हैं, जबकि कुछ एक घर में पूर्णकालिक काम करती हैं। इन घरेलू महिला कामगारों के साथ तरह-तरह की क्रूरता, अत्याचार और शोषण होते हैं। घरेलू महिला कामगारों के खिलाफ अत्याचार के मामले आए दिन सामने आते रहते हैं। लेकिन ऐसे मामले अक्सर तभी सामने आते हैं, जब कोई बड़ी या भयावह घटना होती है, वर्ना तो ज्यादातर महिला कामगारों की चीख कोठियों की चारदीवारी में घुटकर रह जाती है। रोजी-रोटी छिनने के डर से ये अपने साथ हो रहे हिंसा की शिकायत भी नहीं कर पातीं।

घरेलू कामगार महिलाएं आजीविका के लिए सुबह से शाम तक लगातार कार्य करती हैं। काम के अत्यधिक बोझ के कारण उनकी सेहत पर बुरा असर पड़ता है, पर मजदूरी कट जाने के डर से वे छुट्टी नहीं कर पातीं। सेहत खराब होने की स्थिति में इलाज कराना भी मुश्किल हो जाता है, क्योंकि सरकारी अस्पतालों में काफी समय लगता है और निजी अस्पतालों में ज्यादा पैसे खर्च होते हैं। देश में लाखों घरेलू कामगार महिलाएं हैं, लेकिन उनके काम को गैर उत्पादक कार्यों की श्रेणी में रखा जाता है। इनका कोई निश्चित मेहनताना नहीं होता, यह पूरी तरह से नियोक्ता की मर्जी पर निर्भर करता है।

ज्यादातर घरेलू कामगार महिलाएं आर्थिक और सामाजिक रूप से पिछडे़ और वंचित समुदाय से होती हैं। उनकी यह सामाजिक स्थिति भी उनके लिए विपरीत स्थितियां पैदा करती हैं। इनके साथ यौन उत्पीड़न, चोरी का आरोप, गालियों की बौछार या घर के अंदर शौचालय आदि के उपयोग की मनाही तथा छुआछूत आम बात है।

समस्या यह है कि इनका कोई संगठन नहीं है, जो इन पर होने वाले अत्याचारों के खिलाफ आवाज उठाए। इस कारण ये नियोक्ता के साथ वेतन और सुविधाओं को लेकर मोलभाव करने की स्थिति में नहीं होतीं। यदि इनके साथ नियोक्ता या उसके परिवार का कोई सदस्य हिंसा करता है, तो पुलिस में शिकायत के अलावा और कोई फोरम नहीं है, जहां वे अपनी बात कह सकें। कुछेक शहरों में ही स्वयंसेवी संस्थाओं द्वारा घरेलू कामगार महिलाओं के संगठन बने हैं।

देश में असंगठित क्षेत्र के कामगारों के लिए सामाजिक सुरक्षा कानून है, जिसमें घरेलू कामगारों को भी शामिल किया गया है, लेकिन राष्ट्रीय स्तर पर अभी तक ऐसा कोई कानून नहीं है, जिससे उनकी कार्यदशा बेहतर हो और उन्हें सही मेहनताना मिले। हां, कार्यस्थल पर महिलाओं के साथ होने वाली लैंगिक हिंसा को रोकने के लिए जो कानून बना है, उसमें घरेलू कामगार महिलाओं को भी शामिल किया गया है। इन्हें निजी क्षेत्र में काम करने वाले कर्मचारियों की तरह न्यूनतम मजदूरी, काम के घंटों का निर्धारण, साप्ताहिक अवकाश आदि की सुविधाएं मिलनी चाहिए।

नई सरकार ने घरेलू कामगारों के लिए एक विधेयक लाने की घोषणा की है। अगर इन्हें कामगार का दर्जा मिल जाए, तो वेगरिमापूर्वक जीवन जी सकेंगी। कुछ राज्यों में इनके लिए कानून बने हैं, लेकिन देश भर में ऐसा नहीं हुआ है। इसके अलावा, असली लड़ाई तो उस सामंती सोच के साथ है, जिसे खत्म किए बिना भेदभाव और उत्पीड़न को दूर नहीं किया जा सकता।

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