लगभग साढ़े चार साल चली कानूनी लड़ाई के बाद हैदराबाद की एक अदालत ने राजू, उनके भाई बी रामराजू, प्रतिष्ठित ऑडिट कंपनी प्राइस वाटरहाउस के दो ऑडिटरों और छह अन्य लोगों को सात वर्ष के कठोर कारावास की सजा सुनाई। देश में कॉरपोरेट धोखाधड़ी के इस सबसे बड़े मामले में सीबीआइ ने जो आरोपपत्र तैयार किया, अदालत ने उसे ठीक पाया। इसी कारण राजू और उनके भाई पर साढ़े पांच-पांच करोड़ रुपए का जुर्माना भी ठोंका गया। जालसाजी करने पर पहली बार किसी कॉरपोरेट प्रमुख को इतनी कठोर सजा सुनाई गई है। बेलगाम ‘क्रोनी कैपिटलिज्म’ के पैरों में बेड़ियां डालने के लिए ऐसे और फैसले आने चाहिए।
वर्ष 2009 में राजू ने जब अपनी धोखाधड़ी, साजिश और विश्वासघात का खुलासा किया तब पूरा देश सकते में आ गया था। सत्यम कंप्यूटर्स देश ही नहीं, दुनिया की अग्रणी सॉफ्टवेयर कंपनियों में शुमार थी। ‘फार्चून-500′ की एक सौ पचासी कंपनियों का सत्यम से कारोबारी रिश्ता था। दुनिया के छियासठ देशों में उसके लगभग पचास हजार कर्मचारियों का जाल फैला था। एनआर नारायणमूर्ति और अजीम प्रेमजी को राजू अपना पेशेवर प्रतिद्वंद्वी मानते थे। 2006 में उन्होंने दावा किया कि सत्यम की आय एक अरब डॉलर का अविश्वसनीय आंकड़ा पार कर गई है। तब उनकी कंपनी मुंबई ही नहीं, न्यूयार्क स्टॉक एक्सचेंज में भी दर्ज थी।
राजू की सफलता से प्रभावित हो आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री चंद्रबाबू नायडू ने उन्हें प्रदेश के ‘पोस्टर बॉय’ की तरह पेश किया था। सन 2000 में जब अमेरिका के तत्कालीन राष्ट्रपति बिल क्लिंटन आंध्र के दौरे पर आए थे, तब नायडू ने राजू को मंच पर स्थान दिया। इस समारोह में रतन टाटा सहित देश के कई नामी उद्योगपति दर्शकों के बीच बैठे थे। अपने पैसे के बल पर राजू ने बड़े-बड़े नेताओं को साध रखा था। पक्ष-विपक्ष के सभी नेता उनके मित्र थे। वह जितना चंद्रबाबू नायडू के करीब थे, उतना ही उनके प्रबल प्रतिद्वंदी और कांग्रेस के पूर्व मुख्यमंत्री राजशेखर रेड्डी के भी।
लेकिन छह बरस पहले हुए खुलासे से सारे भ्रम चकनाचूर हो गए। पता चला कि राजू ने अपनी कंपनी के खातों में सात हजार करोड़ रुपए की हेराफेरी कर रखी है। वे वर्ष 2001 से लगातार खातों में हेराफेरी कर रहे थे। आठ बरस तक निरंतर जालसाजी चलती रही। सत्यम का पैसा निकाल कर प्रापर्टी और अन्य धंधों में लगाया जाता रहा। बोर्ड के सभी सदस्यों और ऑडिट करने वाली कंपनी की मिलीभगत थी, इसी वजह से किसी ने चूं तक नहीं की। बात जब हाथ से फिसल गई तब भंडाफोड़ हुआ। भेद बाहर आते ही कंपनी धड़ाम से गिर गई। एक दिन पहले जो शेयर पांच सौचौवालीस रुपए के भाव पर बिक रहा था, अगली सुबह दस रुपए पर आ गया। शेयरधारकों को चौदह हजार करोड़ रुपए का चूना लगा। देखते-देखते सत्यम कंप्यूटर्स का हवा महल ढेर हो गया।
यह बात तय है कि देश में जितने भी लोगों ने तूफानी तेजी से तरक्की कर औद्योगिक साम्राज्य खड़ा किया, उनके पीछे किसी न किसी बड़े राजनेता या दल का हाथ रहा है। बिना राजनीतिक संरक्षण के अंधाधुंध पैसा बनाना असंभव है। जब किसी पैसे वाले का पतन होता है तब भी कारण अक्सर किसी प्रभावशाली नेता की खुंदक होती है। सत्यम के उत्थान और पतन की कहानी के तार भी सत्ता के गलियारों से जुड़े हैं।
माना जाता है कि जब सत्यम कंपनी सफलता के सातवें आसमान पर थी, तब अनेक बड़े नेताओं ने राजू को अपना काला धन मोटा मुनाफा कमाने की नीयत से दे रखा था। राजू ने उनका पैसा प्रॉपर्टी में निवेश कर दिया। 2009 के लोकसभा चुनाव सिर पर आते ही इन नेताओं ने अपना पैसा वापस मांगा। लालच और अपनी काली करतूतों के कारण राजू पैसा लौटाने की स्थिति में नहीं था। बस यहीं से बात बिगड़ गई। राजू को जेल जाना पड़ा और सत्यम का साम्राज्य बिखर गया।
घोटाले का खुलासा होने के बाद राजू को गिरफ्तार कर लिया गया। अब से पहले वह बत्तीस माह जेल में काट चुका है, जिसमें दस महीने वे भी हैं, जो बीमारी की आड़ में उसने अस्पताल में बिताए थे। पिछली बार जेल में उसे हर संभव सुख-सुविधा प्राप्त थी। अदालत ने घर का बना खाना खाने की छूट दे रखी थी, अलग कमरा था, चारपाई, पंखा और टीवी था। मिलने वालों का तांता लगा रहता था।
अब बाकी बची करीब सवा चार साल की सजा काटने के लिए वह कारागार में बंद है। अब भी राजू के परिवार का अच्छा-खासा कारोबार है। हैदराबाद, बंगलुरु, चेन्नई, नागपुर सहित देश के प्रमुख नगरों में बेशकीमती जायदाद है। दुनिया के तिरसठ देशों में जमीन, घर, ऑफिस हैं सो अलग। एक मोटे अनुमान के अनुसार राजू के परिजनों के पास लगभग नौ हजार एकड़ कीमती जमीन है। इतना सब होते हुए उन हजारों लोगों को अपने नुकसान की भरपाई की कोई उम्मीद नहीं है, जो राजू के काले कारनामों के कारण बरबाद हो चुके हैं। हमारा कानून ऐसा है, जो अपराधी को सजा तो दे सकता है, लेकिन पीड़ित पक्ष को राहत नहीं दिला पाता।
बाजार आधारित अर्थव्यवस्था के दौर में औद्योगिक घरानों को फलने-फूलने का भरपूर अवसर मिला है। सरकार ने आर्थिक विकास के नाम पर कॉरपोरेट जगत को जमकर छूट दी है, लेकिन उनकी गैर-कानूनी हरकतों पर अंकुश लगाने के लिए न तो नियामक संस्था बनाई गई न ही कानूनों में आवश्यक संशोधन किए गए।
सत्यम घोटाला प्रकाश में आने के बाद 2013 में कंपनी कानून में व्यापक संशोधन किए गए और पूंजी बाजार की नियामक संस्था सेबी को भी अधिक अधिकार दिए गए। गड़बड़ी के लिए कंपनी के स्वतंत्र निदेशकों की जवाबदेही भी नए कानून में तय कर दी गई है। अब वे अपनी जिम्मेदारी से पल्ला नहीं झाड़ सकते। सत्यम का मामलाहीलें। जब जांच हुई तो पता चला कि राजू के परिवार के पास कंपनी के मात्र 2.18 फीसद शेयर हैं। शेष सारे शेयर गिरवी रखे जा चुके थे। बोर्ड में बैठे लोग अगर सतर्क होते तो यह धांधली कतई न होती। जानकारों का मानना है कि जिस बड़े पैमाने पर और चालाकी से कॉरपोरेट घोटाले किए जाते हैं, उन्हें देख कर कंपनी कानून में किए गए संशोधन नाकाफी हैं।
अनुभव बताता है कि अकूत धन और व्यापक प्रभाव का इस्तेमाल कर अक्सर कॉरपोरेट जगत के खिलाड़ी अपनी काली करतूत छिपाने में कामयाब हो जाते हैं। औसत सौ में से एक मामला पकड़ा जाता है और पकड़े गए अपराधियों में से बमुश्किल सौ में से एक को सजा होती है।
आरोपी पैसे के बल पर अपने बचाव में नामी वकीलों की फौज खड़ी कर देते हैं, जिनके सहारे कानून के शिकंजे से बचने का हर संभव प्रयास किया जाता है। सत्यम प्रमुख को सजा निचली अदालत ने सुनाई है जिसके खिलाफ उच्च और उच्चतम न्यायालय का दरवाजा खटखटाने का विकल्प खुला है। निश्चय ही राजू इस विकल्प का इस्तेमाल करेगा।
सत्यम के निदेशकों के विरुद्ध जालसाजी का मामला सेबी और प्रवर्तन निदेशालय में भी गया। वहां भी उसके खिलाफ गंभीर आरोप हैं। पिछले साल जुलाई में सेबी ने राजू, उसके भाई रामराजू और कंपनी के दो अन्य पदाधिकारियों को शेयर खरीद-फरोख्त में हेराफेरी का दोषी मान कर सजा सुनाई थी। चारों पर चौदह बरस तक स्टॉक एक्सचेंज में कारोबार करने का प्रतिबंध लगा दिया गया।
साथ ही गड़बड़ी के लिए 1848.93 करोड़ रुपए का जुर्माना भी ठोका गया। ब्याज जोड़ कर जुर्माने की रकम अब तीन हजार करोड़ रुपए हो गई है। जैसी उम्मीद थी, राजू और उसके सहयोगियों ने इस आदेश को अदालत में चुनौती दे दी। प्रवर्तन निदेशालय ने तो सत्यम से जुड़े दो सौ तेरह लोगों को विदेशी मुद्रा घोटाले का आरोपी पाया है। काला धन सफेद करने के अभियोग में आरोपपत्र दाखिल हो चुका है और राजू की कई संपत्तियां चिह्नित की जा चुकी हैं। इस मामले में भी उसे कड़ी सजा हो सकती है।
पिछले कुछ वर्षों में कॉरपोरेट गड़बड़झालों से जुड़े मामले लगातार बढ़ रहे हैं। 1992 में जब हर्षद मेहता ने शेयर बाजार को आसमान पर ले जाकर जमीन पर पटक दिया, तब पूरे देश में हंगामा खड़ा हो गया था। जनता को एक लाख करोड़ रुपए का चूना लगा था। नौ बरस बाद हिरासत में ही मेहता की मौत हो गई और इसके साथ ही यह घोटाला दफन हो गया।
हाल के वर्षों में निदेशकों की जालसाजी से कई कंपनियों के औंधे मुंह गिरने के मामले प्रकाश में आए हैं। फिलहाल सहारा ग्रुप के प्रमुख सुब्रत राय लंबे समय से जेल में हैं। सारदा चिटफंड घपले के आरोप में कंपनी के पदाधिकारियों और कई राजनीतिकों की गिरफ्तारी हो चुकी है। किंगफिशर एअरलाइंस डूब जाने से सैकड़ों कर्मचारी सड़क पर हैं और सार्वजनिक बैंकों का अरबों रुपए का कर्ज फंसा हुआ है।
अखिल भारतीय बैंककर्मी संघ ने पिछले साल एक सूची जारी की, जिसमें एक करोड़ रुपए से ज्यादा रकम के चार सौ छहबकायादारों के नाम थे। इस सूची में अनेक प्रतिष्ठित व्यक्ति और समूह हैं। पिछले पांच वर्षों में बैंक 2,04,549 करोड़ रुपए के कर्ज को बट्टेखाते में डाल चुके हैं। इसका अर्थ है कि हर साल बैंकों का चार खरब से ज्यादा पैसा डूब जाता है। हर कॉरपोरेट घोटाला अरबों-खरबों रुपए का होता है और हर घोटाले से कोई न कोई नामी हस्ती जुड़ी रहती है।
ये बड़ी-बड़ी बेइमानियां पूरी व्यवस्था पर प्रश्नचिह्न लगाती हैं। जब तक कॉरपोरेट गवर्नेंस में पूर्ण पारदर्शिता नहीं आएगी, तब तक ऐसी धोखाधड़ी रुकना असंभव है। हमारी जांच एजेंसियों को बड़े आर्थिक अपराधियों को पकड़ने के लिए समुचित प्रशिक्षण दिया जाना भी जरूरी है। इसके साथ-साथ सरकार को मौजूदा कानून और कड़े बनाने होंगे और अपराधियों को जल्द से जल्द सख्त सजा देने का इंतजाम करना होगा। तभी भविष्य में कोई कॉरपोरेट प्रमुख सत्यम के राजू जैसा अपराध करने का साहस नहीं कर पाएगा।