आपदा से निपटने की हो पुख्ता तैयारी – प्रो. संतोष कुमार

लगभग आधे भारत के साथ-साथ हिमालयी राष्ट्र नेपाल और उसके आसपास के देशों में आए भूकंप ने पूरे क्षेत्र को हिलाकर रख दिया है। इस क्षेत्र में भूकंप की घटनाएं पहले भी हो चुकी हैं, लेकिन इस बार भूकंप रिक्टर स्केल पर 7.9 प्रतिशत की तीव्रता लेकर आएगा, इसकी किसी ने शायद ही कल्पना की हो। यह एक बड़े खतरे का संकेत भी है। पूरे हिमालयी क्षेत्र में भूकंपों का यदि इतिहास देखें तो छोटी तीव्रता के 200-250 और सात अथवा उससे अधिक तीव्रता के पांच-छह बड़े भूकंप आ चुके हैं।

इस तरह से आने वाले भूकंपों का चक्र बताता है कि पचास, सौ और डेढ़ सौ वर्ष के अंतराल में बड़े भूकंपों का दोहराव होता रहता है। इस आधार पर देखा जाए तो हिमालयी क्षेत्र में और अधिक बड़े भूकंप के आने की आशंका अभी भी बनी हुई है, लेकिन यह कब आएगा, कोई नहीं जानता और न ही हमारे पास अभी तक कोई ऐसी तकनीक विकसित हो सकी है जिससे भूकंपों का पूर्वाकलन किया जा सके। इसके लिए अभी भी हम जानवरों की हरकत, सांपों की गतिविधि, चिड़ियों के व्यवहार, मौसम में बदलाव और अनुमानों पर निर्भर हैं।

इस संदर्भ में एक अच्छी बात यह हुई है कि पूरे विश्व के कुल 184 देशों ने मार्च में जापान में एक बैठक की और भूकंप समेत आने वाली किसी भी आपदा के लिए मिलजुलकर काम करने के प्रति अपनी प्रतिबद्धता जताई। इस बैठक में यह बात उभरकर सामने आई कि दक्षिण एशिया क्षेत्र में कभी भी कोई बड़ी आपदा आ सकती है। यदि हम नेपाल के भूकंप के संदर्भ में विचार करें तो वहां पहले आए भूकंप का केंद्र जहां राजधानी काठमांडू की उत्तर-पश्चिम दिशा में लामजुंग में रहा, वहीं इसके अगले दिन आए भूकंप का केंद्र काठमांडू से 80 किमी पूर्व कोदारी में रहा। बाद में आने वाले भूकंप की तीव्रता प्राय: कम होती है, जिसे आफ्टर शॉक कहा जाता है, लेकिन कोदारी में आए भूकंप की तीव्रता 6.9 आंकी गई, जो अप्रत्याशित ही कही जाएगी।

हालिया भूकंप से भले ही बड़ी तबाही नेपाल में हुई, लेकिन इसके झटके भारत, अफगानिस्तान, बांग्लादेश, चीन आदि देशों में भी महसूस किए गए। भारत में बिहार और उत्तर प्रदेश अधिक प्रभावित हुए और कई लोगों के मरने की खबरें हैं। इस त्रासदी से हुए नुकसान का सही-सही आकलन अभी तक नहीं हो सका है, क्योंकि इस बारे में हम अभी तक कोई समन्वित तंत्र विकसित नहीं कर सके हैं। वास्तव में देखा जाए तो इस भूकंप का दायरा पूरा दक्षिण एशिया है।

भारत ने जिस तत्परता से नेपाल के लिए मदद का हाथ आगे बढ़ाया और आनन-फानन में राहत एवं बचाव कार्यों की शुरुआत कर दी, वह उल्लेखनीय भी है और आपदाओं से निपटने में भारत की बेहतर होती तैयारी का एक और प्रमाण भी। आपदा की स्थितियों से निपटने में भारत दिन-प्रतिदिन बेहतर हो रहा है। इसे हम हुदहुद, केदारनाथ, कश्मीर की बाढ़ जैसी आपदाओं के समय देख भी चुके हैं। आपदा से निपटने के लिए राष्ट्रीय स्तर पर एनडीआरएफ (राष्ट्रीय आपदा कार्रवाई बल) और राज्य के स्तर परएसडीआरएफ यानी राज्य आपदा कार्रवाई बल के गठन ने बहुत ही अच्छे नतीजे दिए हैं। केंद्र और राज्य सरकारें आपदा की किसी भी स्थिति में मिलजुलकर कार्य करती हैं, लेकिन कुछ राज्यों ने अभी तक एसडीआरएफ का गठन नहीं किया है। वर्तमान संकट को देखते यह अपेक्षित है कि सभी राज्य सरकारें आपस में चर्चा कर और केंद्र के साथ मिलजुलकर बचाव और राहत के कार्य में शामिल हों ताकि प्रभावित लोगों को फौरी तौर पर राहत दी जा सके। 1991 में ओडिशा में आए तूफान से जिस तरह निपटा गया, उसकी सराहना पूरी दुनिया में हुई।

इस संदर्भ में यह भी ध्यान देने योग्य है कि केंद्र और राज्य सरकारों ने इसके लिए भले ही पर्याप्त राशि मुहैया कराई है, लेकिन इसमें और अधिक बढ़ोतरी की जरूरत है ताकि प्रभावित लोगों को बचाव और राहत कार्य के बाद एक निर्धारित समयसीमा में पुनर्वास उपलब्ध कराया जा सके। आपदा की प्रक्रिया कभी खत्म नहीं होती, इसलिए इससे निपटने के लिए हमें सदैव तत्पर रहना होगा, क्योंकि कभी भी और कहीं भी कोई आपदा हमारा इम्तिहान ले सकती है। भारत में दिल्ली जैसे सघन आबादी वाले कई क्षेत्र ऐसे हैं जहां यदि कभी इतनी अधिक तीव्रता वाला भूकंप आए तो स्थिति को संभालना काफी मुश्किल होगा, क्योंकि यहां पहले से बनी तमाम इमारतें जहां जर्जर और कमजोर स्थिति में हैं, वहीं नई इमारतों को बनाते समय इसमें पर्याप्त भूकंपरोधी मानकों का अनुपालन शायद ही किया जाता है। आपदा के समय चलाए जाने वाले राहत कार्य से कहीं अधिक महत्वपूर्ण है कि हम पहले से ही अपनी तैयारी को मजबूत रखें। ऐसा करने से बड़े पैमाने पर लोगों की जीवन-रक्षा की जा सकेगी।

हमें अपनी तैयारी को दीर्घकालिक और तात्कालिक रूप से विभाजित करके देखना होगा। फिलहाल संकट से निपटने के लिए एक अधिक व्यापक रणनीति तैयार की गई है जिसमें सार्क देशों के साथ-साथ राष्ट्रीय व स्थानीय स्तर पर आपदा से निपटने की योजना है। आगामी 15 वर्षों तक इसी पर ध्यान केंद्रित किया जाएगा। भूकंप से संबंधित शोध के मुताबिक बड़े भूकंपों के आने का 50 साल का चक्र पूरा हो रहा है, इसलिए अतिसंवेदनशील क्षेत्रों में हमें विशेष सतर्कता और तैयारी रखनी होगी। इसके लिए हमें भूकंप के बाद के प्रभावों से अधिक असरकारक तरीके से निपटना होगा, जैसा कि 2001 के बाद गुजरात में हुआ। इसके लिए सड़कों, भवनों, बुनियादी सुविधाओं आदि पर विशेष ध्यान देना होगा। प्राकृतिक व मानवीय गतिविधियों के कारण हिमालयी क्षेत्र में भूकंप की संभावना बनी हुई है। धरती के अंदर कुछ ऐसे बदलाव हो रहे हैं जो भूकंप सरीखी त्रासदी को जन्म देते हैं। हमें इन प्रभावों को समझना होगा और उनके अनुरूप तैयारी करनी होगी। भारत ने पिछले कुछ वर्षों में अपने आपदा प्रबंधन का कौशल दुनिया को दिखाया है। यह सिलसिला आगे भी जारी रहना चाहिए। एक देश की ताकत की पहचान इससे भी होती है कि वह आपदाओं का सामना किस तरह करता है।

-लेखक सार्क आपदा प्रबंधन केंद्र के निदेशक हैं।

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