रोकना होगा नए काले धन को- शिवदान सिंह

देश में भ्रष्टाचार और काले धन के विरोध में तब तीव्र माहौल बना, जब अन्ना हजारे ने भ्रष्टाचार विरोधी आंदोलन के तहत यूपीए सरकार के दूसरे कार्यकाल में हुए भ्रष्टाचार के खिलाफ आवाज उठाई। उसी माहौल में हुए लोकसभा चुनाव में भाजपा के प्रधानमंत्री पद के दावेदार नरेंद्र मोदी ने वायदा किया कि महज 100 दिनों में ही वह देश से भ्रष्टाचार को खत्म कर देंगे और काला धन वापस लाएंगे। अब जबकि सरकार जल्दी ही अपना पहला साल पूरा करने वाली है, यह विश्लेषण जरूर होना चाहिए कि काला धन वापस लाने का वह वायदा आखिर कितना पूरा हुआ?
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मोदी सरकार ने सत्ता संभालते ही काले धन का पता लगाने के लिए उच्चतम न्यायालय के जुलाई, 2011 के निर्देश के अनुसार एक विशेष जांच दल का गठन जस्टिस एम.वी. शाह की अध्यक्षता में किया। विगत अक्तूबर में सरकार ने पहले केवल तीन नाम और फिर बाद में अदालत की बाध्यता के बाद अन्य 627 नाम एक सीलबंद लिफाफे में अदालत के सामने पेश किए। बताया गया कि वे नाम उन व्यक्तियों के थे, जिन्होंने विदेशों में अपना काला धन जमा कर रखा है। फिर बाद में सरकार ने अघोषित विदेशी आय एवं सम्पत्ति बिल पेश किया और 14 देशों के साथ कर सूचना आदान-प्रदान संबंधी समझौते भी किए। मगर इन तमाम प्रयासों के बाद भी वह वायदा पूरा होता नहीं दिख रहा, जो प्रधानमंत्री मोदी ने चुनाव के दौरान जनता से किया था।

असल में, काले धन की समस्या के दो पहलू हैं। पहला जो काला धन पैदा होकर विदेशी बैंकों या समानांतर अर्थव्यवस्था के रूप में देश की अर्थव्यवस्था को अव्यवस्थित करता है, और दूसरा नए काले धन को पैदा होने से रोकना। यह एक अटल सत्य है कि जो काला धन विदेशी बैंकों में जमा है, वह वापस नहीं आ पाएगा। इसकी पुष्टि इस तथ्य से होती है कि विगत अक्तूबर में विदेशी बैंकों के खाताधारकों के नाम जैसे ही अदालत को सौंपे गए, कई खाताधारकों ने अपना धन दूसरे गुमनाम बैंकों में स्थानांतरित कर दिया। लिहाजा जरूरत इसी बात की है कि सरकार ऐसे प्रयास करे, जिससे भविष्य में काले धन का विदेशों में प्रवाह रोका जा सके। इसके अलावा सरकार को यह भी देखना होगा कि पैदा होकर काला धन कहां छुपाया एवं प्रयोग किया जा रहा है। इस समय काले धन को सामान्य तौर पर रियल एस्टेट, विदेशी बैंक या सोने-चांदी की खरीद में छिपाया जाता है। इसलिए इन पर नजर रखना जरूरी है।

यदि सरकार वाकई आर्थिक भ्रष्टाचार एवं काले धन का प्रवाह रोकना चाहती है, तो उसे एक अखिल भारतीय न्यायिक सेवा एवं राष्ट्रीय कर ट्रिब्यूनल की स्थापना करनी चाहिए। इतना ही नहीं, जब यह पता है कि रियल एस्टेट में काले धन का बड़ा हिस्सा इस्तेमाल होता है, तो उसे रियल एस्टेट का कारोबार फैलने से रोकना चाहिए। अलबत्ता नए भूमि अधिग्रहण कानून के माध्यम से देश में औद्योगिक कॉरीडोर बनाने का प्रयास हो रहा है, जिससे रियल एस्टेट का कारोबार फैलेगा ही। इसलिए पहले से अधिगृहीत जमीन पर नए उद्योग-धंधे लगाने के बाद ही नए जमीनों के अधिग्रहण का प्रयास होना चाहिए।बेशक काला धन रूपी बीमारी का इलाज 100 दिन में नहीं हो सकता, पर जरूरी यह है कि सरकार इलाज की दिशा में पहल करती भी दिखे। फिलहाल ऐसी कोशिशों का कमोबेश अभाव ही दिख रहा है।

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