झारखंड में अकुशल मजदूरों की न्यूनतम मजदूरी 178 रुपये प्रतिदिन तय है। अभी इस वित्तीय वर्ष में संशोधन के बाद न्यूनतम मजदूरी 190 रुपये से अधिक होने की उम्मीद है। ऐसे में कोई ग्रामीण क्यों मनरेगा में रोजगार तलाशेगा। शायद, इसी वजह से मनरेगा झारखंड में सफल नहीं हो पा रहा है। 36 लाख परिवारों में सिर्फ 11 लाख परिवार ही मनरेगा में काम मांगा।
मनरेगा के सफल नहीं होने और प्रदेश सरकार द्वारा ग्रामीण मजदूरों की रोजी के लिए कुछ ठोस उपाय अब तक नहीं कर पाई है। इससे यहां के मजदूर पलायन कर जाते हैं। लगभग नौ लाख झारखंडी मजदूर पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश, बिहार एवं अन्य प्रदेशों में काम करने जाते हैं। साथ ही खाड़ी देशों में भी 10 हजार से अधिक मजदूर काम कर रहे हैं।
"बहुत खराब मजदूरी तय हुई है। इससे मजदूर मनरेगा का काम नहीं करेंगे। राज्य सरकार की ओर से इसका विरोध दर्ज कराया जाएगा। केंद्रीय ग्रामीण विकास सचिव 15 अप्रैल को आ रहे हैं। उनसे कम से कम प्रदेश की न्यूनतम मजदूरी के बराबर तय करने का आग्रह किया जाएगा।"
– विजय कुमार सिंह, मनरेगा आयुक्त