करीब दस साल से सत्यार्थी सरकार से बाल श्रम उन्मूलन के लिए प्रभावी कानून बनाने और इसके लिए बने अंतरराष्ट्रीय कानून को लागू करने का अनुरोध कर रहे हैं।
अमर उजाला से बातचीत में कैलाश सत्यार्थी ने कहा कि इसके लिए वह यूपीए के दौरान तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह, यूपीए अध्यक्ष सोनिया गांधी और एनडीए सरकार के जमाने में राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से आग्रह कर चुके हैं।
उन्होंने सरकार को अपने लिखित प्रस्ताव में हर तरह के व्यवसाय और उद्योग में 14 साल से कम उम्र के बच्चों से काम लेने पर पूर्ण पाबंदी, खतरनाक उद्योगों में 18 साल से कम उम्र के किशोरों से काम लेने पर रोक, बाल मजदूरी के दोषियों पर कम से कम तीन साल की कैद और 60 हजार रुपये जुर्माने के साथ बच्चों के बकाए वेतन की पूरी वसूली, बाल श्रम उन्मूलन कानून में सभी बाल मजदूरों के पुनर्वास का अनिवार्य प्रावधान करने की मांग की है।
भारत में बाल श्रम पर नहीं सुनी जा रही बात
सत्यार्थी की पीड़ा है कि उनके अथक प्रयासों से दुनिया के 179 देश तो बाल श्रम उन्मूलन के लिए बने अंतरराष्ट्रीय कानून को लागू कर चुके हैं। लेकिन भारत में न तो अंतरराष्ट्रीय कानून ही लागू हो सका है और मौजूदा कानून में जरूरी संशोधन करके नया कानून बनाने की दिशा में कोई प्रगति भी नहीं दिख रही है।
नोबेल सम्मान मिलने की घोषणा के बाद जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से मुलाकात में जब उन्होंने यह मुद्दा उठाया तो प्रधानमंत्री ने आश्वासन दिया था, लेकिन अभी तक यह मुद्दा सरकार के एजेंडे में दिखाई नहीं दे रहा है।
पूर्ववर्ती यूपीए सरकार के दो श्रम मंत्रियों ऑस्कर फर्नांडीस और मल्लिकार्जुन खड़गे के साथ सत्यार्थी ने कई बार मुलाकात करके उन्हें बाल श्रम उन्मूलन अधिनियम 1986 में अंतरराष्ट्रीय कानून के मुताबिक जरूरी संशोधन करने पर बातचीत की। उन्होंने आश्वासन दिया था, लेकिन यह नहीं हो सका। बचपन बचाओ आंदोलन के एक कार्यक्रम में तत्कालीन श्रम मंत्री मल्लिकार्जुन खड़गे ने बाल श्रम उन्मूलन कानून में किए जाने वाले संशोधनों की घोषणा भी कर दी थी।