भू-अधिग्रहण और किसानों की खुदकुशी के बीच मोदी सरकार ने बुधवार को किसान हितैषी फैसलों की झड़ी लगाकर अपने राजनीतिक नुकसान की भरपाई करने की भरपूर कोशिश की है। इन उपायों के तहत बेमौसम बारिश और ओलावृष्टि से बरबाद हुई फसलों के लिए सहायता राशि बढ़ाई गई है। नुकसान के आकलन के लिए 50 फीसदी सीमा को घटाकर 33 फीसदी करने, प्रभावित किसानों को कर्ज अदायगी में ज्यादा मोहलत और गेहूं खरीद मानकों में ढील देकर मोदी सरकार अपने ऊपर लगे किसान विरोधी होने के दाग को धोना चाहती है। लेकिन मोदी सरकार के इन फैसलों भी ऐसे पेंच हैं जो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के किसानों को दी जा रही एेतिहासिक राहत के दावों को कमजोर करते हैं।
राहत आकलन के लिए 33 फीसदी नुकसान की सीमा
प्रधानमंत्री ने दावा किया है कि राहत के लिए नुकसान की सीमा को 50 फीसदी से घटाकर 33 फीसदी कर दिया गया है। अब तक 50 फीसदी से ज्यादा फसल बरबाद होने पर ही किसान मुआवजे के हकदार होते थे। इस सीमा के घटकर 33 फीसदी होने से ज्यादा किसानों को राहत-सहायता मिल सकेगी। लेकिन चौंकाने वाली बात यह है कि सरकार ने देश में फसलों को हुए नुकसान का आकलन 113 लाख हैक्टेयर से घटाकर 85 लाख हैक्टेयर कर दिया है। इस तरह करीब 20 फीसदी क्षेत्र को राहत सहायता के दायरे के पहले ही बाहर कर दिया गया है। इसके अलावा जिन किसानों की 33 फीसदी से कम खेती को नुकसान हुआ है, उनके लिए कोई राहत क्यों नहीं है। क्या बीमा कंपनियां भी 50 फीसदी के बजाय 33 फीसदी नुकसान को आधार बनाकर मुआवजा देंगी, इस मामले में स्थिति स्पष्ट नहीं है।
मुआवजा के लिए दो हैक्टेयर की अधिकतम सीमा
सरकार ने मुआवजा की राशि में 50 फीसदी की बढ़ोतरी की है। इस हिसाब से गैर-सिंचित भूमि के लिए किसानों को 6750 रुपए प्रति हेक्टेयर और सिंचित क्षेत्र के लिए 13,500 रुपए प्रति हैक्टेयर का मुआवजा मिलेगा। लेकिन मुआवजे की यह व्यवस्था सिर्फ दो हैक्टेयर तक सीमित कर दी गई है। यानी ज्यादा खेती बरबाद हुई है तो भी मुआवजा सिर्फ 2 हेक्टेअर तक ही मिलेगा।
खास बात यह है कि मध्य प्रदेश और राजस्थान में जहां वर्षा आधारित खेती काफी ज्यादा है वहां किसानों के पास जमीन अधिक है। ऐसे किसानों को अधिक नुकसान की मार खुद ही झेलनी होगी। वहीं औसत उत्पादकता के हिसाब से उत्तर प्रदेश में तीन टन, हरियाणा में 4.7 टन और पंजाब में 4.8 टन गेहूं प्रति हैक्टेयर पैदा होता है। न्यूतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) के हिसाब से किसान को 45 हजार से 72 हजार रुपए प्रति हैक्टेयर की आय होती। लेकिन एक हैक्टेयर के लिए करीब 14500 रुपए का ही मुआवजा मिलेगा। वहीं ज्यादा नुकसान की स्थिति में भी मुआवजे की अधिकतम राशि 29000 रुपए पर ही अटक जाएगी।
कर्ज की रिस्ट्रक्चरिंग लेकिन ब्याज माफी क्यों नहीं
केंद सरकार ने अपने ऊपर ज्यादा वित्तीय बोझ बढ़ाए वाहवाही लूटने की खूब कोशिश की है। बैंकों से कहा गया है कि वह रबी सीजन के फसल कर्जों कीरिस्ट्रक्चरिंग करे। इसका आदेश भारतीय रिजर्व बैंक के गवर्नर रघुरान राजन ने भी दे दिया। लेकिन पहले से नुकसान झेल रहे किसानों के लिए कर्ज माफी तो दूर इस कर्ज पर ब्याज माफी का भी कदम नहीं उठाया गया है। वहीं ब्याज पर मिलने वालू छूट (इंटरेस्ट सबवेंशन) पर भी अभी स्थिति साफ नहीं है।
गेहूं खऱीद में मानकों में ढील का दिखावा
सरकार ने बारिश से बुरी तरह प्रभावित गेहूं की सरकारी खरीद के लिए सिकुड़े दाने और कटे दाने की सीमा बढ़ाई है लेकिन गेहूं में नमी की सीमा को बरकार रखा है। जबकि बारिश के चलते गेहूं का भीगना भी किसानों के लिए बड़ी दिक्कत है।