खाद्य सुरक्षा को लेकर कई नए खतरे उभर रहे हैं- भोजन के उत्पादन, वितरण और उपभोग पर जलवायु परिवर्तन का प्रभाव; खाद्य श्रृंखला का जैविक और पर्यावरणीय प्रदूषण, नई प्रौद्योगिकी व नए पैथोजन (रोग पैदा करने वाले); कीटनाशकों के प्रति बढ़ता प्रतिरोध। इसलिए सभी देशों को व्यापक खाद्य सुरक्षा नीति बनाकर कानून तथा राष्ट्रीय कार्यक्रम के जरिये उसे लागू करना होगा। हालांकि ऐसे कानून अधिकांश देशों में मौजूद हैं, निर्यात वगैरह के मामले में इनका पालन भी किया जाता है। लेकिन घरेलू बाजार के लिए इनकी अनदेखी की जाती है। इसलिए घरेलू बाजार के लिए सख्ती बरतना सबसे बड़ी जरूरत है। इसकी रोकथाम के लिए आम जनता के बीच जागरूकता फैलानी होगी। साथ ही सुरक्षित भोजन के ‘पांच मुख्य बिंदुओं’ पर ध्यान देना होगा- साफ-सफाई का ध्यान, कच्चे व पके हुए भोजन को अलग रखना, भोजन को अच्छी तरह से पकाना, भोजन को सही तापमान पर रखना, सुरक्षित पानी।
भोजन की आपूर्ति ने विश्व-स्तरीय रूप ले लिया है। ऐसे में सभी देशों के बीच खाद्य सुरक्षा प्रणाली को सशक्त बनाने की जरूरत है। राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन के कार्यक्रमों और आपातकालीन स्थितियों में भी खाद्य सुरक्षा पर ध्यान देना जरूरी है। आपदा के समय सुरक्षित पानी व गुणवत्ता पूर्ण भोजन मुख्य समस्या होती है। ऐसे समय में भोजन के दूषित होने की आशंका कई गुना बढ़ जाती है और भोजन के कारण होने वाले रोगों का खतरा बढ़ जाता है। बांग्लादेश और थाईलैंड जैसे देशों ने इस दिशा में अच्छा काम किया है। भारत ने भी खाद्य मानक और सुरक्षा प्राधिकरण की स्थापना की है। इस सिलसिले को आगे बढ़ाने की जरूरत है।
(ये लेखिका के अपने विचार हैं)