आजीवन कारावास की सजा काट चुके बंदियों का कहना है कि वे 14 वर्ष या फिर 20 वर्ष से अधिक की सजा काट चुके हैं. सुप्रीम कोर्ट के आलोक में झारखंड राज्य सजा पुनरीक्षण पर्षद का गठन किया गया था. इसमें प्रत्येक तीन माह में बैठक कर बंदियों को छोड़ने का प्रावधान था. लेकिन, 20 जून 2014 के बाद से सजा पुनरीक्षण पर्षद की बैठक नहीं हुई. बंदियों ने कहा है कि आजीवन कारावास की सजा काट चुके बंदी अब कुंठित हो गये हैं.
इससे जेल में आत्महत्या की प्रवृत्ति बढ़ेगी. बंदियों का कहना है कि इसके पूर्व जितने भी राज्यपाल व मुख्यमंत्री हुए हैं, उनके कार्यकाल में करीब 400 आजीवन सजा काट चुके बंदी रिहा हो चुके हैं. बंदियों ने कहा है कि नक्सली व उग्रवादी आये दिन गांव व शहर में हत्याओं को अंजाम दे रहे हैं. इसके बावजूद उनके लिए सरकार पुर्नवास नीति के तहत सरकारी नौकरी व अन्य सुविधाएं दे रही है.
उन्हें ओपेन जेल में रखा जा रहा है. हमलोगों ने परिस्थिति वश अपराध किया, जिसका हमें पश्चाताप भी है. भविष्य में किसी प्रकार का अपराध नहीं करने का संकल्प भी ले रहे हैं. इसके बाद भी सरकार यदि हमें रिहा नहीं करती है, तो इच्छा मृत्यु का आदेश पारित कर दे, इसे सभी 130 बंदी खुशी-खुशी स्वीकार कर लेंगे. इधर, इस मामले में जेल अधीक्षक शैलेंद्र भूषण से बात करने का प्रयास किया गया, लेकिन उनका मोबाइल बंद मिला.