भारत के गांव क्या कहते हैं- कैरोल गियाकोमो

भारत को आर्थिक महाशक्ति बनाने और वहां की भयावह निर्धनता को कम करने में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की मुश्किलों को समझने के लिए उदयपुर से मात्र 45 मिनट की दूरी पर बसा भेसड़ा खुर्द गांव सही जगह है। यहां 29 वर्षीय कंप्यूटर सॉफ्टवेयर इंजीनियर रोहित नागड़ा मास्टर डिग्री की पढ़ाई कर रही अपनी पत्नी और परिवार के साथ रहते हैं। हालांकि नागड़ा के पास स्थानीय विश्वविद्यालय के कंप्यूटर साइंस की डिग्री है और उन्होंने दो वर्षों तक व्यावसायिक वेब डेवलपिंग का काम भी किया है, इसके बावजूद रोजगार को लेकर वह नाउम्मीद हैं। वह भारत के वित्तीय केंद्र मुंबई स्थित विभिन्न कंपनियों में वेबसाइट की नौकरी के लिए ऑनलाइन आवेदन भी कर रहे हैं, पर उनके हाथ अब तक खाली हैं।

उनके पास एक स्थानीय मंदिर के सामने चटाई पर बैठे 26 वर्षीय शंकर डोंगे उदयपुर हवाई अड्डे के पास दवा की एक छोटी-सी दुकान चलाते हैं, लेकिन उन्हें किसी बड़ी दवा कंपनी में काम करने का मौका नहीं मिला, जहां ज्यादा लाभ है। वह बताते हैं, ‘नौकरी पाने के लिए आपको गांव से बाहर जाना पड़ेगा, लेकिन नौकरी केवल प्रतिभा के बल पर नहीं मिलती। उसके लिए या तो राजनेताओं की पैरवी चाहिए या घूस। अक्सर नौकरी के बुलावे के लिए आपको पैसा देना पड़ता है।’

भारत की दो तिहाई आबादी 35 वर्ष से कम उम्र के लोगों की है। नौकरी की इतनी ज्यादा मांग और उसके रास्ते में इतनी बाधाएं भारत के ग्रामीण क्षेत्रों को छोड़कर और कहीं नहीं हैं, जहां देश की 70 फीसदी आबादी रहती है। खुद 450 परिवारों वाला यह गांव भी इससे अलग नहीं है। कई मायनों में कॉलेज की या तकनीकी शिक्षा पाने वाले नागड़ा और उनके मित्र गांव के गरीब इलाकों में रहने वाले लोगों से बेहतर हैं। नागड़ा के पिता एक स्थानीय खनन कंपनी हिंदुस्तान जिंक के जल विभाग में काम करते हैं। उनके ज्यादातर पड़ोसी किसान हैं, कुछेक के पास अपनी गाएं और बकरियां हैं। अन्य लोग घूम-फिरकर उदयपुर या बस से आठ घंटे की दूरी पर गुजरात जाकर रोजगार करते हैं। उनके पड़ोस के एक हिस्से में एक पक्की सड़क, न्यूनतम जल निकासी और बिजली की सुविधा है। कुछेक घरों में ही शौचालय हैं।

गांव के गरीब हिस्से में, जहां निचली जातियों के लोग रहते हैं, घरों में पानी के नल नहीं हैं। वहां ज्यादातर घर मिट्टी के बने हैं और बहुत कम ही बिजली आती है और पक्की सड़क भी नहीं है। यहां छह बच्चों की मां और आठ साल के बच्चे की दादी सरजन बाई जोगी का घर है, जिसकी सबसे बड़ी इच्छा यही है कि ‘बारिश होने पर वे भीगें नहीं!’ मैंने उनसे दोभाषिये के जरिये बात की। हम उनसे छोटी-सी झील के किनारे मिले, जहां उसका परिवार 60 वर्षों से रहता और काम करता है। वे मछली पकड़ने और पत्थर कूटने की मजदूरी कर मुश्किल से अपना जीवन चलाते हैं। उनका सबसे छोटा लड़का सबसे ज्यादा पढ़ा है, जिसने सातवीं की पढ़ाई पूरी की है। इस टोले में मिली कई दर्जन महिलाओं में से मुझे मात्र एक ऐसी महिला मिली, जिसने आठवीं तक पढ़ाईकी थी, और केवल एक पुरुष ने कॉलेज की डिग्री ली थी। उसे अपनी पसंद की नौकरी नहीं मिली, इसलिए वह शादी-विवाह में पार्टटाइम फोटोग्राफर के रूप में पैसे कमाता है। हाल के वर्षों में गांव के सरकारी स्कूल में दसवीं तक की पढ़ाई होने लगी है। जो छात्र ग्यारहवीं या बारहवीं की पढ़ाई करना चाहते हैं, उन्हें अब भी उसके लिए उदयपुर जाना पड़ेगा। यह कई परिवारों के लिए मुश्किल है, क्योंकि एक तो वे उतना खर्च नहीं उठा सकते, दूसरे उन्हें बेटियों की सुरक्षा का भय होता है।

शिक्षा के विस्तार से राष्ट्रीय स्तर पर साक्षरता दर में बदलाव आया है। ड्यूक यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर अनिरुद्ध कृष्ण ने, जिन्होंने इस इलाके में दशकों शोध किया है, बताया कि जहां साठ वर्ष से ज्यादा उम्र के बहुत कम लोगों को औपचारिक शिक्षा मिली है, वहीं युवा पीढ़ी के 90 फीसदी बच्चे प्राइमरी स्कूलों में पढ़ते हैं। लेकिन हाई स्कूल और कॉलेज में पढ़ने वाले शायद ही मिलते हैं। सात फीसदी से भी कम भारतीयों (ग्रामीण क्षेत्रों में 4.4 फीसदी वयस्कों) ने कॉलेज की शिक्षा ली है, और जैसा कि नागड़ा के उदाहरण से पता चलता है, शिक्षा भी सफलता की गारंटी नहीं है।

कृष्ण बताते हैं, भारत दुनिया में तेजी से विकास करने वाली अर्थव्यवस्थाओं में से एक है, लेकिन तमाम प्रगति के बावजूद यहां के 10 फीसदी से भी कम श्रमिकों को ऐसा नियमित रोजगार प्राप्त है, जिसमें कानूनी संरक्षण और सामाजिक सुरक्षा का लाभ मिलता हो। नतीजतन हर साल आबादी का पांच फीसदी हिस्सा गरीबी रेखा के दायरे में जुड़ जाता है। मोदी की आर्थिक विकास की योजना मुख्यतः विदेशी निवेश को आकर्षित करने, भारत को वैश्विक स्तर का विनिर्माण केंद्र बनाने और रक्षा उद्योग विकसित करने पर निर्भर है। और उन्होंने 2022 तक ग्रामीण इलाकों में शौचालय सहित चार करोड़ मकान बनाने का लक्ष्य निर्धारित किया है।

आर्थिक विस्तार का मतलब है, करोड़ों लोग ग्रामीण इलाकों से शहरों की तरफ जाएंगे, जैसा कि चीन समेत ज्यादातर देशों में हुआ। लेकिन भारत गांवों का देश है, जहां की आबादी रोजगार के वास्तविक अवसर या गरीबी से बाहर निकलने के उपाय के बिना दशकों से सरकारी वितरण पर निर्भर है। भेसड़ा खुर्द गांव की महिलाओं से मैंने पूछा कि क्या आप सोचती हैं कि भारत का भावी प्रधानमंत्री आपके गांव से आएगा? आखिरकार मोदी भी तो चाय बेचते हुए ही सत्ता के शिखर तक पहुंचे हैं। एक महिला ने जवाब दिया, ‘अगर हमारे गांव में शिक्षा का प्रसार हो और कड़ी मेहनत की जाए, तो ऐसा संभव है।’

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