यह जानते हुए कि मोदी का विश्वास सबका साथ, सबका विकास में है, मुझे पूरी उम्मीद है कि वे कुछ लोगों के विकास को सुनिश्चित करने के लिए 60 करोड़ किसानों का साथ नहीं छोड़ेंगे। भारत में आर्थिक विकास का रास्ता देश के 6.4 लाख गांवों से होकर गुजरता है। महात्मा गांधी सदैव ग्राम स्वराज की बात किया करते थे। अपने चुनाव अभियान में मोदी ने गांधी का वृहद रूप से उल्लेख किया और कृषि को आर्थिक रूप से उपयोगी बनाने का वादा किया। कुल लागत पर 50 फीसद का मुनाफा किसानों को दिलाने की बात कही। देश में जहां भी गए, भयावह कृषि संकटग्रस्तता की बात की। उन्होंने गन्न्ा किसानों की बात की, कपास किसानों की बात की। बार-बार कृषि समृद्धता की बात की।
किसान अब पूछ रहे हैं क्या हुआ मोदी के वादों का? कहीं ये भी चुनावी जुमले तो नहीं थे? मई 2014 में प्रधानमंत्री बनने के तत्काल बाद मानसून में गिरावट के चलते कृषि कार्य प्रभावित हुआ। किसानों को आर्थिक मदद देने के बजाय सरकार ने न्यूनतम समर्थन मूल्य में नाममात्र की बढ़ोतरी करते हुए चावल के दाम 50 रुपए प्रति क्विंटल बढ़ा दिए। यह 7-8 फीसद की महंगाई की तुलना में महज 3.8 फीसद की बढ़ोतरी थी। रबी के मौसम में गेहूं की खरीद में महज 50 रुपए प्रति क्विंटल की बढ़ोतरी की गई। ऐसे समय में जब सरकारी कर्मचारियों को 107 फीसद महंगाई भत्ता मिला, क्या यह सही नहीं है कि खाद्यान्न महंगाई के लिए किसानों को दंडित किया गया? इन सबसे ऊपर खाद्यान्न् मंत्रालय ने राज्य सरकारों को किसानों को अतिरिक्त बोनस नहीं देने का निर्देश दिया। चावल और गेहूं की खरीद को अब आक्रामक रूप से प्रतिबंधित किया जा रहा है। छत्तीसगढ़ और मध्य प्रदेश में प्रति किसान केवल 15 क्विंटल खरीद की अनुमति है, जबकि शेष को बाजार के हवाले छोड़ दिया गया है। एपीएमसी अथवा कृषि उत्पाद बाजार मंडी समितियों का विस्तार करने के बजाय सरकार इन्हें खत्म कर रही है। पंजाब के मुख्यमंत्री प्रकाश सिंह बादल ने चेतावनी दी है कि यदि न्यूनतम समर्थन मूल्य को वापस लिया गया तो देश में गृहयुद्ध छिड़ जाएगा।
वर्ष 2014 में अंतरराष्ट्रीय स्तर पर खाद्यान्न् मूल्यों में गिरावट आने से कृषक अत्यधिक प्रभावित हुए। सबसे अधिक असर कपास, गन्ना और बासमती के किसानों पर पड़ा। इससे कीमतों में 40 से 60 फीसद तक की गिरावट आई। बेमौसम बरसात से देश के विभिन्न् हिस्सों में खड़ी फसलों को अत्यधिक नुकसान हुआ। इस वर्ष अब तक तेलंगाना, मराठवाड़ा व विदर्भ क्षेत्र में 500 से अधिक किसान खुदकुशीकर चुके हैं। राष्ट्रीय नमूना सर्वेक्षण संगठन (एनएसएसओ) के मुताबिक 2014 में कृषक परिवारों को कृषि कार्यों से औसतन 3078 रुपए मिलते थे। कुछ अध्ययन बताते हैं कि तकरीबन 62 फीसद किसान मनरेगा से अर्जित होने वाली आय पर निर्भर हैं और 58 फीसद किसान भुखमरी के शिकार हैं। यह तब है जबकि सातवें वेतन आयोग के तहत कर्मचारी संघ चपरासी के लिए 26,000 के न्यूनतम मासिक वेतन की मांग कर रहे हैं। हमारे पास कृषक आय आयोग क्यों नहीं है, जो प्रतिमाह किसानों की निश्चित आय सुनिश्चित कर सके? खाद्यान्न् महंगाई को नीचे बनाए रखने की कीमत किसान ही क्यों भुगतें?
कृषि संकट महज तकनीक के अभाव के चलते नहीं है, बल्कि कृषि आय को निम्न बनाए रखने के प्रयासों के कारण है। भाजपा ने अपने घोषणापत्र में जीएम बीजों का विरोध किया है, लेकिन सरकार इसे तेजी से आगे बढ़ा रही है। ऐसी कोई जीएम फसल नहीं है जो फसलों की उत्पादकता बढ़ाती हो। यह कम ही लोगों को पता है कि अमेरिका में लगातार चौथे वर्ष कैलिफोर्निया और टेक्सास में जीएम फसल सूखे की स्थिति को नियंत्रित कर पाने में नाकाम रही। प्रति बूंद अधिक फसल गैर-रासायनिक खेती में ही संभव और सफल है, न कि जीएम बीजों से। यह भी कहा जाता है कि उद्योगों को वित्तीय मदद और कर छूट से राहत इसलिए दी जाती है, ताकि अधिक राजस्व का सृजन हो, जिसका उपयोग
कृषि और ग्रामीण विकास में किया जा सके। यह सोच बदलनी चाहिए। किसान समाज पर बोझ नहीं है और न ही उद्यमिता में कमजोर है। गांव में गरीबों में भी सर्वाधिक गरीब महिला अगर बकरी खरीदना चाहती है तो वह लघु वित्तीय संस्थान से 24 फीसद की दर पर 8000 रुपए कर्ज लेती है जो साप्ताहिक भुगतान के हिसाब से 36 फीसद में तब्दील हो जाता है। दूसरी तरफ टाटा कंपनी को नैनो कार बनाने के लिए कारखाना लगाने के लिए बड़े पैमाने पर 0.1 फीसद ब्याज दर पर सस्ता कर्ज मुहैया कराया जाता है। मेरा दावा है यदि उस गरीब महिला को 0.1 फीसद ब्याज दर पर कर्ज मुहैया कराया जाए तो वह एक वर्ष में नैनो कार चलाने योग्य हो जाएगी।
देश में करीब 25 करोड़ किसान भूमिहीन हैं। यदि सरकार उनमें से प्रत्येक को 1 से 2 एकड़ जमीन मुहैया करा दे तो उनके जीवन में बड़ा बदलाव हो जाएगा। सरकार चाहती है कि आगामी 20 वर्षों में 40 करोड़ लोगों को गांवों से शहरी क्षेत्रों में स्थापित किया जाए। विश्व बैक की 2008 की रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत किराए की भूमि प्रक्रिया को तेज करे। बाद में नीति आयोग के उपाध्यक्ष अरविंद पनगढ़िया ने एक लेख लिखकर पुष्टि की कि यदि कृषि भूमि को बलात अधिग्रहीत नहीं किया जाएगा तो उद्योगों और बुनियादी ढांचा क्षेत्र को सस्ते श्रमिक कैसे मिल सकेंगे। प्रधानमंत्रीजी, कृपया किसानों को दिहाड़ी मजदूर मत बनाइए। वे शहरों में रिक्शा नहीं खींचना चाहते हैं। अपनी जमीन ही उनकी एकमात्र आर्थिक सुरक्षा है।
-लेखक खाद्य व कृषि मामलों के विशेषज्ञ हैं।