अर्थव्यवस्था की खस्ता हालत के लिए मोटे तौर पर बढ़ती हुई सब्सिडी से बढ़ते राजकोषीय घाटे को जिम्मेदार ठहराया जाता है। आजादी के बाद से ही देश में सब्सिडी देने का लंबा इतिहास रहा है। मसलन घरेलू गैस सिलेंडर, सिंचाई के पानी, बिजली का शुल्क, रेल किराया, डाक खर्च, स्वास्थ्य सुविधाएं और शिक्षा, सभी पर लागत से कम पैसा लिया जाता रहा है। दुनिया भर की अर्थव्यवस्थाएं किसी न किसी तरह सब्सिडी देती हैं। अमेरिका और यूरोपीय आर्थिक समुदाय के पास ऐसी कृषि समर्थन योजनाएं हैं, जो खेती के लिए सब्सिडी देती हैं। सभी विकसित देशों के पास एक मजबूत सामाजिक सुरक्षा योजना है, जिससे कमजोर वर्ग के लोगों की मदद की जाती है।
वित्तीय सुदृढ़ीकरण पर 28 सितंबर, 2012 को प्रकाशित विजय केलकर समिति की रिपोर्ट में कहा गया कि सब्सिडी और राजकोषीय घाटे में कमी लाने के लिए ईंधन और खाद्य सब्सिडी हमेशा जारी नहीं रखी जा सकती। इनका भारी दुरुपयोग हो रहा है और ये सब्सिडियां सही एवं जरूरतमंद लोगों तक नहीं पहुंच पा रहीं। प्रधानमंत्री की आर्थिक सलाहकार परिषद ने अप्रैल, 2013 में कहा कि पेट्रोलियम सब्सिडी से सब्सिडी का बोझ बहुत बढ़ा है। यूरिया में उच्च सब्सिडी ने उर्वरकों के प्रयोग में असंतुलन पैदा किया, जिसका असर पैदावार पर पड़ा। इसी तरह मुफ्त सिंचाई के पानी और सस्ती बिजली ने भी संसाधनों के दुरुपयोग को बढ़ावा दिया। सब्सिडी का दुरुपयोग रोकने के लिए नंदन नीलकेणी कमेटी ने स्पष्ट रूप से कहा कि जिन्हें सब्सिडी की जरूरत है, उन्हें इसे नकद सहायता (कैश ट्रांसफर) के रूप में दिया जाना चाहिए।
आर्थिक समीक्षा 2014-15 में बिजली सब्सिडी के परिप्रेक्ष्य में कहा गया है कि कमजोर उपभोक्ता कुल बिजली सब्सिडी का महज 10 फीसदी हासिल कर पाते है। गरीबों को सस्ते एलपीजी गैस से प्रति व्यक्ति महज 10 रुपये का फायदा मिलता है, वहीं अमीरों को करीब 80 रुपये प्रति व्यक्ति का फायदा पहुंचता है। सस्ते केरोसिन का करीब 46 फीसदी ही बीपीएल परिवार हासिल कर पाते हैं।
इसलिए अब सरकार सब्सिडी का दुरुपयोग रोकने की तरफ अग्रसर हुई है। जरूरतमंदों तक खाद्य सब्सिडी पहुंचाने के लिए प्रत्यक्ष लाभ हस्तांतरण (डीबीटी) योजना लागू की गई है। इसके तहत सब्सिडी पाने के हकदार लाभार्थी के बैंक खाते में नकद राशि पहुंचाई जाएगी। सब्सिडी संबंधी गड़बड़ियां कम से कम हों, इसके लिए जन धन योजना का आधार के साथ मेल और मोबाइल प्लेटफॉर्म का इस्तेमाल सीधे तौर पर किया जाएगा। इससे लाभार्थियों की बेहतर पहचान हो सकती है। अगर जेएएम नंबर का आपस में जुड़ाव हो सके और सभी सब्सिडी को मिलाकर एक कर उसे कुछ मासिक हस्तांतरण में तब्दील किया जाए, तो जरूरतमंदों को वास्तविक लाभ मिलना मुमकिन होगा।