साल 2014 में डेयरी सेक्टर में बड़े उतार-चढ़ाव देखने को मिला है। पिछले साल की शुरुआत 2013 की तरह डेयरी उत्पादों के आयात में तेजी के साथ हुई। यह तेजी केन्द्र सरकार की डेयरी उत्पादों के आयात-निर्यात नीति में कोई परिवर्तन न करने से देखने को मिली। इसके चलते देश में दूध की कीमतें दोनों उत्पादक और कंज्यूमर के लिए बढ़ीं। लेकिन, अच्छे आयात की यह खुशी सेक्टर में ज्यादा दिनों तक नहीं दिखाई दी। न्यूजीलैंड के साथ-साथ ग्लोबल डेयरी इंडस्ट्री में एक झटकें में सभी डेयरी उत्पादों की कीमतें लगभग 50 फीसदी तक गिर गई। इसका गंभीर असर भारत के डेयरी सेक्टर पर भी साफ देखने को मिला। हालांकि, इस झटके से भारत के डेयरी सेक्टर को अंतरराष्ट्रीय दबाव के बावजूद आयात के लिए तैयार रहने का मौका भी मिला। रूस-यूक्रेन विवाद के चलते अमेरिका और यूरोपीय देशों के डेयरी उत्पादों पर रूस ने प्रतिबंध लगा दिया। इस कदम से जहां ग्लोबल स्तर पर डेयरी उत्पादों की कीमतों में बड़ी गिरावट दर्ज हुई वहीं रूस में इन उत्पादों की गंभीर शॉर्टेज भी पैदा हो गई। इस स्थिति में भारत के एग्रीकल्चर प्रोडक्ट्स एक्सपोर्ट डेवलपमेंट अथॉरिटी, एक्सपोर्ट इंस्पेक्शन अथॉरिटी, कॉमर्स औऱ एग्रीकल्चर मंत्रालय के साथ साथ देश के कई डेयरी उत्पाद प्रोड्यूसर और एक्सपोर्टरों ने रूस में अपने उत्पादों को आयात करने के लिए वहां की सरकार और कंपनियों से संपर्क साधना शुरू कर दिया।
अक्टूबर के आखिरी हफ्ते तक देश में किसानों को हो रहे भुगतान में भारी कमी आई क्योंकि ज्यादातर डेयरी कंपनियों के पास मिल्क पाउडर स्टॉक काफी ज्यादा हो गया है। वहीं दूध की कीमतों में और अधिक गिरावट का अनुमान है क्योंकि इस सीजन में देशभर में दूध का उत्पादन बढ़ जाता है। लिहाजा, माना जा रहा है कि डेयरी प्रोडक्ट के आयात पर जोर देने से न सिर्फ गिरती कीमतों से बचा जा सकता है बल्कि कीमतों को बढ़ाने मे मदद मिलेगी और डेयरी सेक्टर को होने वाले फायदे को भी बढ़ाया जा सकता है।
इसके चलते रूस सरकार के एग्रीकल्चर मिनिस्ट्री ने अपनी एक्सपर्ट टीम को भारत मिल्क प्रोसेसिंग प्लांट्स का सर्वेक्षण करने के लिए लगाया है। यह टीम देश के डेयरी प्लांट्स के जाएजे के साथ यहां हो रहे उत्पादों के क्वालिटी मानकों का भी सर्वेक्षण कर यह पता लगा रहा है कि यहां के उत्पाद ग्लोबल मानकों पर खरे उतरते हैं कि नहीं। हालांकि, इस वक्त रूस को इन उत्पादों की ज्यादा जरूरत है लेकिन इससे भारत के उत्पादों को रूस के बाजार में जगह मिल सकती है। माना जा रहा है कि रूस चाहता है कि भारत से बटर, चीज और मिल्क पॉवडर के एक्सपोर्ट को मंजूरी दी जाए और साल के शुरुआत से इन प्रोडक्ट्स की रूस में सप्लाई हो सके।
गौरतलब है कि फिलहाल भारत से रूस को आयात महज अंगूर, कुकुम्बर, घेरकिन और फ्रेश एंड प्रोसेस्ड वेजिटेबल तक सीमित है। साल 2013-14 में रुस को एग्रीकल्चरल प्रोडक्ट का कुल एक्सपोर्ट 1,174 करोड़ रुपए का रहा। रूस भी उन तमाम देशों में शामिल है जिसने भारत से मीट और पोल्टिरी प्रोडक्ट पर कुछ सालपहले फूट और माउथ डिसीज के चलते प्रतिबंध लगा रखा है। हालांकि कुछ देशों ने इस प्रतिबंध को हटा लिया है लेकिन रूस का प्रतिबंध अभीतक जारी है। बहरहाल, हाल में रूस के राष्ट्रपति ब्लादिमीर पुतिन के भारत दौरे के बाद हालात बदले हैं और रूस ने भारत से फूड और डेयरी प्रोडक्ट के साथ बफैलो मीट के निर्यात की मंजूरी दे दी है। साल 2014 खत्म होते तक रूस ने गुजरात कोऑपरेटिव मिल्क मार्केटिंग फेडरेशन को सप्लाई के लिए हरी झंडी दे दी है।
अक्टूबर 2014 में डेयरी सेक्टर के लिए सार्क देशों ने भी अहम साझा प्रयास किया। सार्क टेक्निकल कमेटी ऑन एग्रीकल्चर एंड रूरल डेवलपमेंट ने भी सार्क मिल्क ग्रिड बनाने के प्रस्ताव पर चर्चा की। सार्क देशों में एक समानता यह है कि यहां बड़ी संख्या में दूध के छोटे उत्पादक हैं जो महज 1 से 5 गाय या भैंस के साथ उत्पादन कर रहे हैं। भारत में आंकड़ों से साफ है कि डेयरी सेक्टर के विकास से आर्थिक विकासो को तेज किया जा सकता है। भारत और उसके पड़ोसी देशों में डेयरी सेक्टर के विकास में यही अंतर है कि यहां जेयरी को विकसित करने के लिए विशेष कदम नहीं उठाए गए हैं। इसके साथ ही सरकार की तरफ से बेहतर नीति और वित्तीय मदद के बगैर इस सेक्टर में उम्मीद के मुताबिक विकास नहीं किया जा सकता है। लिहाजा, जबतक ग्रामीण इलाकों में डेयरी उद्योग को मजबूत नहीं किया जाता है, तबतक इस क्षेत्र का पूर्ण विकास नहीं किया जा सकता है।