रिपोर्ट में कहा गया है, ‘मई में आम चुनाव के बाद भारतीय जनता पार्टी की अगुवाई वाली सरकार सत्ता में आयी. सुशासन और विकास का वादा करने वाले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने गरीबी में जी रहे लोगों के लिए वित्तीय सेवा की पहुंच और साफ-स्वच्छता बढाने के प्रति कटिबद्धता दिखाई.’
एमनेस्टी ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि हालांकि, सरकार ने कॉरपोरेट से जुडी परियोजनाओं से प्रभावित समुदायों के साथ विचार विमर्श की जरुरतों को कम करने की दिशा में कदम उठाए. रिपोर्ट में जिक्र किया गया है कि अधिकारी लगातार लोगों की निजता और अभिव्यक्ति के अधिकार का उल्लंघन कर रहे हैं.
उत्तर प्रदेश और कुछ अन्य राज्यों में सांप्रदायिक हिंसा में बढोतरी हुई तथा भ्रष्टाचार, जाति आधारित भेदभाव, जातिगत हिंसा फैली है. सांप्रदायिक हिंसा का हवाला देते हुए इसमें उल्लेख किया गया है, ‘चुनाव के पहले उत्तर प्रदेश में भडकी सांप्रदायिक घटनाओं से हिंदू और मुस्लिम समुदायों के बीच तनाव बढा.
इसके लिए नेता जिम्मेदार हैं और कुछ मामलों में भडकाउ भाषणों के लिए आपराधिक मामले दायर हुये.’ रिपोर्ट में कहा गया है, ‘दिसंबर में, हिंदू समूहों पर कई मुस्लिमों और ईसाइयों को जबरन हिंदू बनाने का आरोप लगा.’ मानवाधिकार समूह ने भूमि अधिग्रहण अध्यादेश की आलोचना को भी सामने रखा जिसमें इस कवायद को हजारों भारतीयों के लिए नया खतरा बताया गया है.
इसमें कहा गया है, ‘दिसंबर में सरकार ने अस्थायी कानून पेश किया जिसमें कुछ परियोजनाओं के लिए सरकारों द्वारा भूमि अधिग्रहण के वक्त प्रभावित समुदायों से सहमति लेने संबंधी जरुरतों को हटा दिया गया और सामाजिक असर का आकलन नहीं किया गया.’ इसमें कहा गया है, ‘बडी आधारभूत संरचना परियोजनाओं के कारण हजारों लोगों पर अपने घरों और जमीन से बेदखल होने का खतरा मंडरा रहा है. सबसे आसान कमजोर निशाना नयी और विस्तारित खदानों तथा बांधों के निकट रह रहे आदिवासी समुदाय हैं.’