देश के हर नागरिक को खाद्य सुरक्षा देने के लिए खाद्यान्यों की बर्बादी रोकना और उत्पादन को बढ़ावा देना काफी महत्वपूर्ण है। इस दिशा में ठोस पहल कर सरकार खाद्य महंगाई को काबू में करने के साथ-साथ चालू खाता घाटे को भी नियंत्रित कर सकती है। इसके अलावा, ग्रामीण अर्थव्यवस्था को भी रफ्तार दी सकती है। हालांकि, यह बात भी सही है कि केंद्र सरकार किसानों और निजी क्षेत्र को इंसेंटिव देने के अलावा कृषि जैसे विषयों में कोई बड़ा हस्तक्षेप नहीं कर सकती है। बावजूद इसके, उम्मीद है कि सरकार बजट में कृषि क्षेत्र के लिए कुछ अहम घोषणाएं कर सकती है।
बजट से उम्मीदें –
पानी और बिजली की बचत करने वाली सिंचाई तकनीकों को मिले बढ़ावा – कृषि के संबंध में सटीक अनुमान लगाने के लिए सिंचाई की बेहतर व्यवस्था जरूरी है। इससे किसानों की नियमित आय और उपभोक्ताओं को खाद्य उत्पादों की तय समय पर आपूर्ति सुनिश्चित हो सकेगी। ऐसे में जरूरत है कि सरकार अगले दो वर्षों के लिए जल संरक्षण वाली तकनीकों जैसे ड्रिप, स्प्रींक्लर, शेड नेट्स, सोलर पम्प आदि को कर मुक्त कर दे। ऐसा करने से ज्यादा से ज्यादा किसानों तक इन तकनीकों की पहुंच हो जाएगी। साथ ही किसानों से जुड़ी बड़ी सहकारी समितियों को आवश्यक प्रबंध कौशल उपलब्ध कराकर इन तकनीकों के निर्माण को प्रोत्साहन देने की आवश्यकता है। सरकार को सिंचाई के लिए सब्सिडी नहीं देनी चाहिए क्योंकि इसका अक्सर गलत इस्तेमाल होता है। इसके बजाय सरकार को ऐसी नीतियां बनानी चाहिए, जिससे प्रतिस्पर्धा को बढ़ावा मिले।
गोदाम निर्माण में हो निवेश – अनाजों के उत्पादन के बाद इसके रखरखाव की व्यवस्था एक बड़ी समस्या है। हर साल देश इस समस्या से जूझता है। अनाजों के उत्पादन के बाद उनके रखरखाव के प्रबंधन पर सरकार को बड़ा खर्च करना चाहिए। गोदामों के निर्माण में सरकार को सिर्फ एक बार खर्च करना होगा जबकि इससे होने वाली बचत से हर साल फायदा होगा। सरकार को अगले 4 वर्षों तक हर साल 20 लाख टन अनाज के रखरखाव के लिए डब्लूडीआरए से अप्रूव्ड गोदामों के निर्माण का लक्ष्य रखना चाहिए। यह निवेश हर किसी को खाद्य उत्पादों के संरक्षण के लिए प्रोत्साहित करेगा। साथ ही खाद्य महंगाई को काबू करने के लिए यह सबसे अच्छा निवेश साबित होगा।
कृषि उत्पादन के लिए समानांनतर नेशनल मार्केट की जरूरत- अगर हम समयबद्ध तरीके से राज्य स्तर पर एपीएमसी एक्ट में बदलाव नहीं कर सकते तो केंद्र सरकार को कृषि उत्पादों के लिए इंटरनेट प्लेटफार्म पर एक वैकल्पिक नेशनल मार्केट की व्यवस्था करनी चाहिए, जोकि कमोडिटी मार्केट से जुड़ा हुआ हो। जो ट्रेडर्स मंडी में जाए बिना कृषि उत्पादों की खरीद-फरोख्त करना चाहते हैं यह प्लेटफॉर्म उनको भी सुविधा देगा। इस समय देश में मौजूद कमोडिटी एक्सचेंज की भी करीब से निगरानी रखने की आवश्यकता है। साथ ही जो एक्सचेंज नेशनल एग्रीकल्चर मार्केट का हिस्सा बनना चाहें उनके लिए उत्पादों की डिलीवरी करना अनिवार्य होना चाहिए।
बुनियादी कमोडिटीज पर टैक्स – मिलावट और हेरफेर की जांच करने के लिए बुनियादी वस्तुओं पर टैक्स हटाने की जरूरत है। दरअसल,फूड सिस्टम में कई तरह के टैक्स होने के चलते ट्रेडर्स टैक्स से बचने के लिए कई अनैतिक तरीके अपनाते हैं। इसमें मिलावट और सट्टेबाजी प्रमुख हैं। साथ ही इससे गलत तरीके से निवेश को भी बढ़ावा मिलता है। फिलहाल सरकार को बुनियादी कच्चे माल पर लगने वाले सभी टैक्स को हटा लेना चाहिए, जिससे सभी के लिए लागत एक समान हो जाएगी और बाजार में मिलावट और सट्टेबाजी पर रोक लग सकेगी।
मेक इन इंडिया को बढ़ावा देने वाला हो कस्टम ड्यूटी का ढांचा – खाद्य महंगाई को नियंत्रित करने के नाम पर आज खाद्य तेलों जैसी कमोडिटी पर विसंगत शुल्क संरचना परेशान करने वाली है। खाद्य महंगाई को कम करने, चालू खाता घाटे को नियंत्रित रखने और ग्रामीण क्षेत्रों में रोजगार के अवसर बढ़ाने के लिए खाद्य तेल, दालें और अनाज जैसी कमोडिटी से जुड़े मुद्दों को गंभीरता से लेना आवश्यक है।
आशा है कि बजट में सरकार खाद्य महंगाई को काबू में रखने के लिए आपूर्ति संबंधी दिक्कतों पर ध्यान देगी। साथ ही बजट में अगर इन रियायतों पर ध्यान दिया जाता है तो इससे आपूर्ति संबंधी दिक्कतों का समाधान मिलेगा और सरकार के राजस्व में भी वृद्धि होगी।