एनजीटी की आपत्ति के बाद भी कोल ब्लॉक का आवंटन

रायपुर (ब्यूरो)। छत्तीसगढ़ में कोल ब्लॉक के आवंटन में नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) ने जिन कोल ब्लॉक को लेकर आपत्ति दर्ज कराई थी, अब कोल मंत्रालय उन कोल ब्लॉक का आवंटन करने की तैयारी में है। एनजीटी ने परसा ईस्ट और केटे बासन कोल ब्लॉक में पर्यावरण स्वीकृति में गड़बड़ी के कारण आपत्ति लगाई थी।

इसके साथ ही तारा कोल ब्लॉक के आवंटन पर भी सवाल खड़ा किया था। अब कोल मंत्रालय इन कोल ब्लॉक को नीलामी के बजाय आवंटन की प्रक्रिया में शामिल किया है। कोल ब्लॉक की नीलामी के पहले चरण में छत्तीसगढ़ के दो कोल ब्लॉक की नीलामी हुई है। इसमें गारे पालमा और चोटिया कोल ब्लॉक की नीलामी हुई है।

छत्तीसगढ़ बचाओ आंदोलन के संयोजक आलोक शुक्ला ने बताया कि तारा कोल ब्लॉक की नीलामी की प्रक्रिया चल रही है। जब एनजीटी ने इन कोल ब्लॉक की पर्यावरण स्वीकृति पर आपत्ति दर्ज कराई थी। ऐसे में इन कोल ब्लॉक को नीलामी में कैसे शामिल किया जा सकता है। केंद्र सरकार कोल ब्लॉक की नीलामी के समय 10 फीसदी राशि जमा करा रही है। ऐसे में जब तारा कोल ब्लॉक की नीलामी हो जाएगी तो इसकी पर्यावरण स्वीकृति भी सरकार को दिलानी होगी। ऐसे में साफ है कि पर्यावरण मानकों की अनदेखी की जाएगी।

3000 रुपए प्रति टन से ज्यादा की बोली

छत्तीसगढ़ की दो कोयला खदान 3000 रुपए प्रति टन से ज्यादा महंगी नीलाम हुई है। गारे पालमा की बंद खदान के लिए जिंदल ने सबसे ज्यादा बोली लगाई। गारे पालमा 4/5 कोल ब्लॉक हिंडाल्को को मिली। गारे-पालमा कोल ब्लॉक सीमेंट और स्टील सेक्टर के लिए आरक्षित है। वहीं चोटिया कोल ब्लॉक के लिए बालको ने सबसे ज्यादा बोली लगाकर खदान प्राप्त की। कोल ब्लॉक की नीलामी के पहले चरण में 11 कोल ब्लाक से कोयला मंत्रालय ने 60 हजार करोड़ से ज्यादा की कमाई की है। 14 फरवरी से शुरू हुए पहले चरण में 19 खदानों की नीलामी की जा रही है।

जहां विरोध, वहां नहीं होगी नीलामी

कोल मंत्रालय से हंसदेव अरण्य और रायगढ़ माड़ के 20 गांव के किसानों ने कोल ब्लाक आवंटन का विरोध किया है। इन कोल ब्लॉक को नीलामी की प्रक्रिया से दूर रखा गया है। अब इन कोल ब्लॉक का आवंटन किया जाएगा। यहां की ग्राम सभा ने प्राकृतिक पर्यावरण के नुकसान और जैव विविधता को देखते हुए कोल ब्लॉक आवंटन का विरोध किया था।

ग्रामीणों ने प्रस्ताव पास करके राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री और कोयला मंत्रालय को भेजा था, जिसमें स्पष्ट किया था कि यह क्षेत्र देश के कोयला क्षेत्र का मात्र 10 फीसदी है। यहां खदान के आवंटन से पूर्व ही पर्यावरणीय स्वीकृति, वन डायवर्सन स्वीकृति तथा ग्राम सभा स्वीकृति ली जाए।

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