…जहां महिलाएं कर रहीं हैं वनों की रक्षा

हिमालयी क्षेत्र में खूबसूरत नजारे वाले लाहौल स्पीति घाटी में 1980 के दशक में एक आंदोलन शुरू हुआ था। महिला कार्यकर्ताओं ने वनों की रक्षा में इस आंदोलन को शुरू किया था। बौद्ध आबादी बहुल इस क्षेत्र में महिलाओं के इस श्रम ने रंग लाया।

इस आंदोलन की शुरुआत कवारिंग पंचायत में शुरू हुई, जहां की आबादी 112 थी। इसमें महिलाओं की संख्या 64 थी। बाद में यह आंदोलन घाटी के अन्य हिस्सों में फैलता गया। यह घाटी समुद्र तल से 13,000 से 20,000 फीट ऊपर स्थित है। वर्तमान में 139 महिला मंडल या महिला समूह घाटी के 28 में से27 पंचायतों में सक्रिय हैं जो वनों की रक्षा में जुटे हुए हैं।

इस आंदोलन से सबसे नया जुड़ाव थिरोट पंचायत का है जो केलांग जिला मुख्यालय से करीब 40 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। संभागीय वन अधिकारी हीरालाल राणा ने बताया कि टिंडी पंचायत में दो महिला मंडलों ने अभी तक वनों की निगरानी का प्रस्ताव पारित नहीं किया है। यह सबसे अंतिम पंचायत पड़ोस के चंबा जिले के पनागी में स्थित है।

थिरोट पंचायत के महिला मंडल ने पिछले महीने प्रस्ताव पारित किया कि यदि कोई भी पेड़ काटते पकड़ा गया तो उस पर 5,000 रुपये जुर्माना लगाया जाएगा। इतना ही नहीं, उस अपराधी को समाज से बाहर भी किया जाएगा। राणा ने कहा कि थिरोट में महिला मंडल ने यह भी फैसला लिया है कि पूरे वन क्षेत्र को कटीले तार से घेरा जाएगा। इसके पहले मियार घाटी के तीन पंचायतों ने सामुदायिक भागीदारी से वन की रक्षा करने का फैसला लिया था।

थिरोट की रहने वाली बुजुर्ग डोलमा ने बताया कि यदि वनों को बचा लिया गया तो हम जैवविविधता को बचा सकेंगे। वनों की घेराबंदी गर्मियों में कराई जाएगी जिससे निवासी पशुओं को विकसित होने में मदद मिलेगी। उन्होंने कहा कि लाहौल घाटी में जलविद्युत परियोजनाओं के आने से जैवविविधता को विशाल क्षति को अब देखा जा सकता है और जैवविविधता को बचाने का यही उचित समय है।

अन्य ग्रामीण चोकपा ने कहा कि ग्रामिणों ने ग्रामीणों ने स्थानीय वनस्पति और वहां के निवासी पशुओं की रक्षा का भार लिया है। ऊंची जगहों पर भयंकर सर्दी पशुओं को नीचे की तरफ भागने के लिए बाध्य करती है। चोकपा ने कहा कि सर्दी के दौरान हम सतर्क रहते हैं क्योंकि शिकारी सक्रिय रहते हैं। गर्मियों में हम जत्थे में निकलेंगे और पास के जंगल की स्वेच्छा से निगरानी करेंगे।

वन्यजीव अधिकारी ने कहा कि जंगली बकरी की एक प्रजाति एशियाटिक आईबेक्स और हिमालयन ब्लू शिप (भेड़) या भाराल का जाड़े में विस्थापन सामान्य बात है। यहां तक कि गांवों में लाल और सामान्य लोमड़ी को भी देखा जा सकता है। राणा ने कहा कि अक्टूबर में घाटी का हर ग्रामीण को टूट कर गिरे पेड़ों को निकालने की अनुमति 10 दिनों तक दी जाती है। इसके बाद किसी भी वन संपदा को लाने की इजाजत नहीं दी जाती। स्थानीय लोगों को जाड़े के दिनों में रियायती दर पर जलावन भी मुहैया कराने की व्यवस्था है।

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