‘मेक इन इंडिया’ से नहीं मिला बूस्ट, मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर से कर्ज की मांग हुई निगेटिव

नई दि‍ल्‍ली। केंद्र सरकार के पॉलि‍सी रि‍फॉर्म्‍स की घोषणाओं और कदमों का असर अर्थव्‍यवस्‍था पर नहीं पड़ रहा है। इसका अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि‍ बैंकों की ओर से प्राथमि‍क सेक्‍टर (मैन्‍युफैक्‍चरिंग, माइक्रो एंड स्‍मॉल इंटरप्राइजेज, एजूकेशन और एग्रीकल्‍चर सेक्‍टर) को दि‍ए जाने वाले लोन में तेजी से गि‍रावट दर्ज की गई। खासतौर पर मीडि‍‍यम इंटरप्राइजेज और मैन्‍युफैक्‍चरिंग सेक्‍टर की ओर से क्रेडि‍ट डि‍मांड नेगटि‍व में चली गई है। ऐसे में सरकार के मेक इन इंडि‍या प्‍लान को झटका लगने का खतरा बढ़ गया है।

मैन्‍युफैक्‍चरिंग और एमएसएमई इंडस्‍ट्री की हालत खस्‍ता

रि‍जर्व बैंक ऑफ इंडि‍या (आरबीआई) द्वारा जारी आंकड़ों के मुताबि‍क, 21 मार्च 2014 से 31 दि‍संबर 2014 के बीच मैन्‍युफैक्‍चरिंग सेक्‍टर की क्रेडि‍ट ग्रोथ -4.4 फीसदी हो गई है। वहीं, माइक्रो, स्‍मॉल एंड मीडि‍यम इंटरप्राइजेज सेक्‍टर की लोन ग्रोथ इसी अवधि‍ में मात्र 1.9 फीसदी रही। अगर मीडि‍यम इंटरप्राइजेज की बात करें तो यह आंकड़ा -0.5 फीसदी हो गया है।

सुस्‍त पड़ा प्राथमि‍क क्षेत्र को मि‍लने वाला कर्ज

आरबीआई के नि‍यमों के मुताबि‍क, बैंकों द्वारा दि‍ए जाने वाले कर्ज में 40 फीसदी हि‍स्‍सा प्राथमि‍क क्षेत्र का है। हालांकि‍, ताजा आंकडों पर नजर डालें तो देश भर के बैंकों के जरि‍ए प्राथमि‍क क्षेत्र को दि‍ए जाने वाले क्रेडि‍ट ग्रोथ में मात्र 4.1 फीसदी का इजाफा हुआ है।

अर्थशास्‍त्रि‍यों की राय

रेटिंग एजेंसी इक्रा की वाइस प्रेसि‍डेंट वि‍भा बरता के मुताबि‍क, बैलेंसशीट में फंसे कर्ज का आंकड़ा बढ़ने की वजह से बैंक अभी भी जोखि‍म नहीं ले रहे हैं। वहीं, देश में मैन्‍युफैक्‍चरिंग की गति‍वि‍धयां सुस्‍त पड़ी हुई हैं। अर्थव्‍यवस्‍था की धीमी रफ्तार ने मैन्‍युफैक्‍चरिंग की मांग को भी कम कर दि‍या है।
इंडि‍या रेटिंग एजेंसी के मुताबि‍क, बैंकों से कर्ज लेने के बाद वापस न दे पाने के मामले तेजी से बढ़ रहे हैं। कॉर्पोरेट डेट रीस्‍ट्रक्‍चरिंग (सीडीआर) सेल के मुताबि‍क, दि‍संबर 2013 में मैन्‍युफैक्‍चरिंग सेक्‍टर की ओर से कुल 1696 करोड़ रुपए के बकाया लोन थे। यह राशि‍ सि‍तंबर 2014 में बढ़कर 4421 करोड़ रुपए हो गई।

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