भारत के बारे में नजरिये में आए इस बदलाव की मुख्य वजह सकारात्मक ऊर्जा और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की गतिशीलता है। उन्होंने न केवल आगे बढ़कर नेतृत्व किया है, बल्कि वह अगली पीढ़ी के सुधारों की भी बात कर रहे हैं। व्यक्तिगत रूप से उन्होंने भारत की कहानी और उसकी दीर्घकालीन क्षमता के साथ विश्व के नेताओं और वैश्विक निवेशकों से संपर्क किया। इसने उद्योग जगत को काफी भरोसा दिया है। चाहे घरेलू विनिर्माण को पुनर्जीवित करने और रोजगार सृजन के लिए ‘मेक इन इंडिया’ की पहल हो या भूमि अधिग्रहण और बीमा विधेयक से संबंधित अध्यादेश लाने का फैसला हो, सरकार ने आर्थिक मोर्चे पर सकारात्मक संकेत दिया है।
सबसे बड़ी बात है कि नीति निर्माण को लेकर सरकार एक नए नजरिये का परिचय दे रही है, जिसने एक बार फिर दुनिया का ध्यान भारत की तरफ खींचा है। चाहे वह विदेश या रक्षा नीतियों पर ज्यादा आकर्षक और मुखर दृष्टिकोण हो या सरकार की प्रशासनिक मशीनरी को चुस्त-दुरुस्त करने का मामला हो या सामाजिक कल्याण कार्यक्रम हों, सरकार के नीति-निर्माण में एक स्पष्ट फर्क दिख रहा है।
प्रधानमंत्री का छोटी-छोटी चीजों पर ध्यान देने और उसे अच्छी तरह से कार्यान्वित करने का नजरिया तथा राष्ट्र के लिए एक व्यापक दृष्टि अनुकरणीय है। मेरा मानना है कि स्वच्छ भारत अभियान और जन-धन योजना का देश पर गहरा प्रभाव पड़ेगा, क्योंकि इनका उद्देश्य लोगों को बुनियादी अधिकार देना है। इसके अलावा, सरकार गरीबों को सब्सिडी देने के प्रति शर्मिंदा नहीं है, बल्कि वितरण तंत्र को बेहतर बनाना उसकी प्राथमिकता है। हमारे देश में संसाधन और समाधान की कमी नहीं रही है, बदला है, तो सिर्फ उसके प्रति हमारा दृष्टिकोण। ‘डिजिटल इंडिया’ जैसी पहल भारत और इंडिया के बीच की लंबी दूरी को पाटने और अधिकतम शासन में मददगार होगी।
भारत की सबसे बड़ी ताकत यहां की युवा शक्ति (जनसांख्यिकीय लाभांश) है, जो नई सरकार के नीति-निर्माण के मूल में है। सरकार का युवाओं के कौशल निर्माण पर ध्यान केंद्रित करना सराहनीय है। भारत न केवल अपनी, बल्कि विश्व अर्थव्यवस्था के लिए मानव संसाधन की आपूर्ति का एक बड़ा केंद्र बन सकता है। कृषि एवं पर्यावरण सुधारों के साथ एक आधुनिक कुशल पारिस्थितिकी तंत्र के निर्माण का व्यापक प्रभाव पड़ना चाहिए। सांस्थानिक संरचनाओं का विकास भौतिक संरचनाओं के विकास के साथ निश्चित रूप से मेल खाना चाहिए, जो भारत को जरूर करना चाहिए।
समावेशी विकास किसी भी देश की प्राथमिकता है। और जब से भारतीय अर्थव्यवस्था उदार हुई है, इस मोर्चे पर हमने पर्याप्त कामकिया है। विभिन्न सामाजिक-आर्थिक पैमानों पर सुधार हुआ है-जैसे औसत आयु के साथ-साथ शिक्षा और स्वास्थ्य सेवा की उपलब्धता भी बढ़ी है, लेकिन अभी हमें काफी लंबा रास्ता तय करना है।
पिछले कई दशकों से विकास और सामाजिक कल्याण के नाम पर सब्सिडी देकर सरकार भारी घाटे में चली गई है। सड़क और स्कूल निर्माण से लेकर लोगों को स्वास्थ्य सेवा उपलब्ध कराने तक, सब कुछ की अपेक्षा सरकार से की जाती है। क्या सरकार को इसे जारी रखना चाहिए? बेशक सामाजिक कल्याण और विकास से मुंह नहीं मोड़ा जा सकता, लेकिन यह एक नया नजरिया रखने और कुछ कठोर फैसले लेने का वक्त है। क्या बाजार की शक्तियां और प्रतिस्पर्धा इसे बेहतर ढंग से बता सकती हैं।
दूरसंचार क्षेत्र का उदाहरण लीजिए। 1990 में भारत में दूरसंचार का घनत्व तीन फीसदी से भी कम था और ग्रामीण क्षेत्रों में यह लगभग शून्य था। लेकिन आज यह आंकड़ा 75 फीसदी है और ग्रामीण इलाकों में यह 45 फीसदी है। दूरसंचार के सकारात्मक प्रभाव और रोजगार सृजन, दक्षता एवं जीडीपी पर इसके गुणात्मक प्रभाव को देखिए। निश्चित रूप से यह आर्थिक सुधार और मुक्त बाजार के अध्ययन का सबसे अच्छा विषय है। इस दूरसंचार क्रांति का नेतृत्व निजी मोबाइल ऑपरेटरों ने किया और देश भर में डिजिटल विषमता को दूर किया। अभी ग्रामीण भारत में 38.5 करोड़ मोबाइल उपभोक्ता है, जिनमें से 90 फीसदी उपभोक्ता निजी ऑपरेटरों के नेटवर्क पर निर्भर हैं, जो दुनिया भर में न्यूनतम कॉल दर पर बात कर रहे हैं। उपभोक्ताओं के पास कई विकल्प हैं, जिसके कारण निजी ऑपरेटर अपनी कॉल दर कम रखते हैं। ऐसी ही कुछ सफल कहानियां बैंकिंग, बीमा, खाद्य प्रसंस्करण आदि के क्षेत्रों में देखने को मिल सकती हैं।
उद्योग जगत पूरी दृढ़ता के साथ सरकार के नजरिये का समर्थन करता है और भारत के विकास में निवेश करने को उत्सुक है। हमें सुधारों की नियमित खुराक और एक ऐसे व्यावसायिक वातावरण के निर्माण की जरूरत है, जो नवाचार और उद्यमशीलता को बढ़ावा दे। हमने एक अच्छी शुरुआत की है। मेरा मानना है कि जैसे पिछला डेढ़ दशक चीन के नाम रहा, उसी तरह अगला दशक भारत का हो सकता है। हमें भविष्य के भारत का निर्माण करना है।
-लेखक भारती इंटरप्राइजेज के संस्थापक और चेयरमैन हैं