इस गांव के कुछ लोगों ने गांव की ही तीन महिलाओं को टोनही करार दिया और उन्हें अमानवीय यातनाएं दीं। अंधविश्वास के शिकार ग्रामीणों ने तीनों महिलाओं के सिर मुंडाकर उन्हें निर्वस्त्र कर गांव की गलियों में घुमाया था। जुल्म की शिकार बनीं महिलाएं कई सालों तक घर से बाहर तक नहीं निकल पाती थीं लेकिन अंधश्रद्धा निर्मूलन समिति के प्रयासों से अब हालात भी बदले हैं और गांव के लोगों की सोच भी।
टोनही प्रताड़ना का शिकार बनी बिसाहिन बाई की कहानी बेहद मार्मिक है। इस बार पंचायत चुनाव में गांव के उन्हीं लोगों ने जिद करके बिसाहिन बाई को गांव के वार्ड क्रमांक 13 से पंच के पद के लिए चुनाव में उतारा है जिन्होंने आज से तकरीबन 14 साल पहले उसे टोनही करार दिया था। गणतंत्र दिवस पर जब अंधश्रद्धा निर्मूलन समिति के सदस्य डॉ. दिनेश मिश्र के नेतृत्व में इस गांव पहुंचे तो बिसाहिन खेतों में मजदूरी करने गई थी। किसी तरह तीनों महिलाओं को श्यामबाई के घर आने को राजी किया गया और फिर समिति के सदस्यों ने तीनों को शॉल व श्रीफल भेंटकर सम्मानित किया।
हिम्मत नहीं हारी
वह बेहद भयावह, शर्मनाक और दुखद हादसा था। अशिक्षा व अंधविश्वास के चलते ग्रामीणों ने गांव की तीन महिलाओं तिरीथ, श्यामबाई व बिसाहिन पर टोनही होने का आरोप लगाया। तीनों पर बेइंतहा जुल्म ढाए गए। बिजली का करंट दिया गया, शरीर पर अंगारे रखे गए और सिर मुंडकर गांव की गलियों में उन्हें निर्वस्त्र घुमाया गया। घटना के बाद बड़ी मुश्किल से तिरीथ गांव से बाहर निकल पाई और मामला सामने आया। जाहिर है इस हादसे ने न सिर्फ तीनों को तोड़कर रख दिया बल्कि उन्हें अपने समाज के सामने अपराधी भी बना दिया। तीनों वर्षों तक अपने घरों में कैद रहीं। अंधश्रद्धा निर्मूलन समिति ने सहारा दिया और अवसाद से जूझ रही महिलाओं ने हिम्मत नहीं हारी। आज बिसाहिन ऐसे जुल्म की शिकार बनीं महिलाओं के लिए प्रेरणा बन गई हैं।
गांव में उत्साह
बिसाहिन बाई निषाद को पंच के पद पर खड़ा करने के बाद गांव के लोग उन्हें जिताने के लिए उत्साहित हैं। 28 जनवरी को यहां मतदान है। लचकेरा की प्रसिद्धि वैसे तो प्रवासी साइबेरियन पक्षियों के प्रजनन के ठिकाने के रूप में है लेकिन इन चुनावों में बिसाहिन का चुनाव लड़ना इस गांव की प्रसिद्धि का कारण बन गया है। 50 वर्षीय बिसाहिन निषाद जिस वार्ड से चुनाव लड़ रही हैं वहां 81 वोटर हैं जिनमें अधिकांश उनकी जाति से बाहर के हैं। आज वहां मतदान होना है और उनकी जीत के प्रति गांव के लोग आश्वस्त हैं।
मिसाल बनीं बिसाबिन
अंधश्रद्धा निर्मूलन समिति के अध्यक्ष डॉ.दिनेश मिश्र कहते हैं कि तीनों महिलाओं को महज संदेह व अंधविश्वास के चलते अमानवीय यातना दी गई थी। निरपराध महिलाएं खुद को तिरस्कृत मान घुट रही थीं। ऐसे में समिति ने उनकी जिंदगी को संवारने का जिम्मा लिया और लगातार उनके संपर्क में रहे। तमाम कोशिशों के बाद अब जाकर ग्रामीणों की सोच वैज्ञानिक बनी है और प्रताड़ित महिलाओं का सम्मान लौटाने खुद गांव वालों ने पहल की है। चुनाव में परिणाम चाहे जो हों ऐसे मामलों में प्रताड़ना की शिकार महिलाओं के लिए यह बड़ी बात है। बिसाहिन दूसरी महिलाओं के लिए प्रेरणा बन गई हैं। गांव से भ्रांति दूर हुई है।