सालभर मिलने वाले भुट्टों के लिए प्रसिद्ध हुआ छत्‍तीसगढ़ का गांव

अनंगपाल दीक्षित, अंबिकापुर(निप्र)। छत्‍तीसगढ़ में कटनी-गुमला नेशनल हाइवे क्रमांक 43 पर स्थित सरगुजा जिले का सिलसिला गांव को यहां के मेहनतकश किसानों ने वर्ष भर स्वादिष्ट भुट्टे के लिए प्रसिद्घ कर दिया है। इस मार्ग पर आने-जाने वाले हर वाहन का पहिया सिलसिला में थम जाता हैं हर कोई यहां के किसानों की मेहनत से पैदा किए गए भुट्टे का स्वाद लेने लालायित रहता है। हर रोज इस छोटे से जगह में चार से पांच क्विंटल ताजे भुट्टे की खपत है।

यहां के किसान एक दशक से भुट्टे की पैदावार कर मालामाल हो चुके हैं। परिवार सहित किसान यहां बैठकर आग जला भुट्टा भुनते हैं। इस भुट्टे का स्वाद न सिर्फ सरगुजा जिला,बल्कि कई जिले व प्रांत के लोग ले चुके हैं। शायद यही कारण है कि आने-जाने वाले हर शख्स की वाहन यहां आकर रूक जाती है क्योंकि सिलसिला में कभी भुट्टों का सिलसिला खत्म नहीं होता।

आबाद कर दिया गांव

सरगुजा जिले में किसानों को सरकारी तौर पर आगे बढ़ाने कई तरह के अनुदान और शासकीय मदद दी जा रही है। यही नहीं प्रोत्साहन देने कई तरह की योजनाएं चलाई जा रही हैं पर यह योजनाएं केवल कागजों में ही सिमटकर रह गई है। लाख कोशिशों के बाद भी किसानों को आगे नहीं बढ़ाया जा सका है।

इन सब के बावजूद जिले में कई ऐसे किसान हैं जो अपने मेहनत के बूते अपने गांव को खेती के लिए चर्चित कर चुके हैं। कम संसाधन में किसानों ने अपने गांव को आबाद कर दिया है। ऐसा ही एक गांव है, कटनी-गुमला नेशनल हाइवे क्रमांक 43 में बसा गांव सिलसिला सरगुजा जिला मुख्यालय अंबिकापुर से लगभग 22 किलोमीटर दूर बतौली और अंबिकापुर के बीच स्थित है।

हर सीजन में मक्‍के की खेती

एक दशक पूर्व इस गांव के एक किसान ने बारिश को छोड़कर गर्मी के सीजन में नाले के पानी से सिंचाई कर मक्का लगाने की शुरूआत की। देखा-देखी दो-चार अन्य किसानों ने भी इसकी शुरूआत कर दी और सिलसिला गांव भुट्टे के लिए प्रसिद्घ हो गया। अब यहां करीब डेढ़ सौ से अधिक किसान वर्षभर हर सीजन में मक्के की खेती करते हैं और अनुदान से कई सिंचाई के साधन भी विकसित करा चुके हैं। हर सीजन में यहां मक्के की खेती हो रही है और किसान मक्के से भारी मुनाफा कमा रहे हैं।

नेशनल हाइवे के किनारे किसानों का परिवार छोटे-छोटे झाले बनाकर आग जला लोगों को भुट्टा भूनकर उपलब्ध करा रहे हैं। पहले तो इक्के-दुक्के वाहन ही यहां रूकते थे पर अब प्रतिदिन और हर सीजन में वह ठंड हो या बरसात या फिर गर्मी लोग यहां भुट्टा खाते नजर आते हैं। अब यहां सैकड़ों वाहन प्रतिदिन रूकते हैं। मीठे और स्वादिष्ठ भुट्टे के लिए प्रसिद्घ हो चुके सिलसिला गांव के किसानों द्वारा प्रतिदिन चार से पांच क्विंटल भुट्टे की खपत की जाती है। बकायदे उसे किसान भूनकर लोगों को उपलब्ध कराते हैं।

लोग चूल्हे के पास ही बैठकर इस ठंड में भुट्टे का लुत्फ उठाते हैं। किसानों ने अपनी मेहनत से सिलसिला गांव को आबाद कर दिया है। हर रोज नगद राशि लेकर किसानघर पहुंच रहे हैं जिससे उनकी आर्थिक स्थिति काफी बेहतर हो चुकी है। सिलसिला के करीब डेढ़ सौ से अधिक किसान मक्के की खेती करते हैं। जिसकी खपत सिलसिला में ही हो जाती है यह अपने आप में ही बड़ी बात है क्योंकि किसान जो पैदा कर रहा है उसे बाजार भी नेशनल हाइवे पर स्थित उनके गांव में मिल चुका है।

ताजी साग-सब्जियां भी रहती है उपलब्ध

नेशनल हाइवे पर स्थित सिलसिला गांव न सिर्फ बारहो महीने भुट्टे के लिए चर्चित है बल्कि किसान यहां हर मौसम में ताजी हरी साग-सब्जियां भी उत्पादन कर रहे हैं। भुट्टे के साथ किसानों का परिवार दिनभर ताजी सब्जियां बेचकर आर्थिक लाभ अंबिकापुर से रायगढ़ मार्ग पर आने-जाने वाला हर व्यक्ति यहां की ताजी हरी सब्जियों से वाकिफ है। भुट्टे के साथ लोग हर मौसम में हर तरह की सब्जियां यहां से खरीदते हैं। इन दिनों यहां सब्जी वाली हरी मटर, गोभी, आलू, बैगन सहित कई प्रकार की सब्जियां मिल रही है।

सीधे नगद कमा रहे सिलसिला के किसान

खेती के लिए सरगुजा में उरांव और कंवर जाति के लोग जी-जान से जुटे होते हैं। ये आदिवासी किसान अपनी मेहनत से जिस तरह खेती कर आर्थिक लाभ ले रहे हैं वह जिले के अन्य गांव के किसानों के लिए प्रेरणा का काम कर रहा है।

साग-सब्जियां उगाने के साथ बड़े पैमाने पर यहां के किसान मक्के की खेती कर रहे हैं और बड़े रकबे में गन्ने की खेती करते हैं,जिसका जूस भी सिलसिला में पूरे दिन उपलब्ध रहता है। उरांव और कंवर के साथ पनिका जाति के लोग इस गांव में निवासरत हैं जो खेती को अपना मूल व्यवसाय बना चुके हैं। प्रतिदिन सीधे नगद राशि कमाने वालों में सिलसिला के किसान शामिल हैं,जिन्हें अपनी उपज बेचने के लिए कहीं दूर जाना नहीं पड़ता।

80 से अधिक किसानों ने लगवाए बोरवेल

सरगुजा जिले के सिलसिला गांव के किसानों की मेहनत को देखते हुए कृषि विभाग ने यहां अब तक 80 से अधिक बोरवेल लगवाए हैं,जिससे किसान अपनी फसल में निर्बाध रूप से सिंचाई करते हैं। नगदी फसल मक्का, सब्जी, गन्ना के साथ यहां के किसान धान और गेहूं की भी जमकर उत्पादन करते हैं। 80 से अधिक बोरवेल के अलावे यहां का एक प्राकृतिक नाला भी किसानों के लिए वरदान बन चुका है, जिसके पानी का उपयोग यहां के किसान करते आ रहे हैं।

क्या कहते हैं किसान

सिलसिला गांव के किसान जो यहां वर्ष भर भुट्टों का सिलसिला जारी रखने का काम कर रहे हैं उन किसानों ने नईदुनिया से चर्चा के दौरान अपनी मेहनत को उत्साह से बताया। 12 वर्ष पूर्व सबसे पहले मक्का लगाने के बाद उसे सिलसिला में एक झोपड़ी बना भूनकर बेचने का काम आरंभ करने वाले किसान रामनंदन बताते हैं कि सबसे पहले उन्होंने नाले के पानी से चंद डिस्मिल जमीन पर गर्मी में मक्के की खेती की थी।

चूंकि नेशनल हाइवे से यह गांव लगा है इसलिए वह अपने मक्के को लेकर सड़क किनारे बैठ गए और कुछ देर में ही हाथोंहाथ मक्का बिक गया, बस यहां से सिलसिला शुरू हुआ और सिलसिला का नाम भुट्टेकेलिए चर्चित हो गया। गांव के किसान अमीर पटेल, जगींदर, शुभन, विश्वनाथ ने भी इसी तरह खेती की शुरूआत की और आज गन्ने के जूस निकालकर भी बेच रहे हैं। प्रतिदिन हजारों रुपए लेकर ये किसान अपने घर लौटते हैं।

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